मूल्यों के बदलते स्वरूप का प्रस्तुतिकरण है -’मर्यादा व अन्य लघुकथाएं’ पुस्तक


पुस्तक समीक्षा –समीक्षक-डॉ वीरेन्द्र भाटी मंगल



बीकानेर , 9 अप्रैल। हिन्दी व राजस्थानी भाषा के चिर-परिचित साहित्यकार डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा लघुकथा लेखक के रूप में विख्यात है। इनकी नव-प्रकाशित कृति ’मर्यादा व अन्य लघुकथाएं’ एक ऐसा लघुकथा-संग्रह है जो समाज, रिश्तों, नैतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से उकेरता है। इस पुस्तक में डॉ कच्छावा ने अपनी लेखनी से न केवल सामाजिक विद्रूपताओं पर तीखा प्रहार किया है, बल्कि मानवीय मूल्यों की मर्यादा को भी स्पष्ट किया है। पुस्तक का शीर्षक लघुकथा ’मर्यादा’ एक गहरी नैतिक सीख देती है, जो इस बात पर बल देती है कि व्यक्ति को अपने मूल्यों और सीमाओं को कभी नहीं लांघना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। यह कहानी पाठक के मन में एक गूंज छोड़ जाती है, जो आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है।



इस संग्रह की अन्य लघुकथाएं भी विविध विषयों को छूती हैं जैसे पारिवारिक संबंध, सामाजिक विसंगतियाँ, स्त्री-पुरुष के बीच समानता, और नैतिक पतन। कथाएं छोटी जरूर हैं, पर उनका प्रभाव दीर्घकालिक होता है। हर कहानी का अंत चौंकाता है और पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। पुस्तक में समाहित तीन बंदर, फिगर, सात जन्म, सम्मान, हिदायत, बेटी, शांति भंग, कवरेज, बहू धर्म, प्रतिष्ठा, काम, जिम्मेदारी, दया, दाह संस्कार, रिश्तेदार अखबार, पुण्यतिथि, सपूत, पेट की आग सहित सभी लघुकथाएं विचारपरक होने के साथ साथ बोधपरक भी है। कथाओं की भाषा सरल, प्रवाहमयी और प्रभावशाली है। लेखक का शब्द चयन सधा हुआ है और हर वाक्य कहानी को एक नया आयाम देता है।
प्रस्तुत पुस्तक में संक्षिप्त, सारगर्भित एवं नैतिकता का भावनात्मक चित्रण देखने को मिलता है। इसके अलावा कथाओं में सामाजिक यथार्थ का सजीव प्रतिबिंब पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। मर्यादा व अन्य लघुकथाएं एक पठनीय, विचारोत्तेजक और संवेदनशील लघुकथा-संग्रह है, जिसे प्रत्येक साहित्यप्रेमी को पढ़ना चाहिए। यह न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत मूल्यबोध को भी समृद्ध करती है।
पुस्तक का नाम-मर्यादा व अन्य लघुकथाएं
लेखक-डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा
प्रकाशक-मींझर प्रकाशन, सुजानगढ