देश भर में हुआ 222 वां भिक्षु चरमोत्सव का आयोजन
- तेरापंथी सभा गंगाशहर के शांतिनिकेतन में किया आयोजन
गंगाशहर , 16 सितम्बर। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा गंगाशहर के तत्वावधान में साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी एवं साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी के सान्निध्य में 222 वां भिक्षु चरमोत्सव का आयोजन शांतिनिकेतन सेवा केंद्र के प्रांगण में किया गया।
इस अवसर पर बोलते हुए साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म विक्रम संवत 1786 आषाढ़ शुक्ला तेरस को कंटालिया मारवाड़ में हुआ। तेरापंथ धर्म संघ का प्रारंभ विक्रम संवत 1817 आषाढ़ी पूर्णिमा से होता है। उसी दिन आचार्य भिक्षु ने नए सिरे से व्रत ग्रहण किए। इस प्रकार उनकी दीक्षा के साथ ही तेरापंथ का सहज प्रवर्तन हुआ।
उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु को नई स्थिति में सर्वप्रथम बहुत विरोध का सामना करना पड़ा। आचार्य भिक्षु ने जो विचार प्रस्तुत किए वे नए थे इसलिए उनका भयंकर विरोध होने लगा। आचार्य भिक्षु ने इस स्थिति को देखते हुए अपने जीवन की दिशा में आत्म कल्याण को प्राथमिकता देते हुए एक दिन उपवास एक दिन आहार एकांतर तप प्रारंभ कर दिया और वन में आतापना लेना शुरू कर दिया एवं सारा समय ध्यान-साधना में लगा दिया। यह क्रम वर्षों तक चला फिर एक दिन थिरपाल और फतेहचंद दो मुनिवरों ने आचार्य भिक्षु से प्रार्थना की “ गुरुदेव तपस्या का वरदान हमें दे और आप जनता को प्रतिबोध दे”। यह तेरापंथ के विकास का प्रथम स्वर था।
आचार्य भिक्षु ने उनकी प्रार्थना को सुना और फिर एक बार जनता को प्रतिबोध देना शुरू किया। यह प्रयत्न बहुत सफल हुआ और लोगों ने आचार्य भिक्षु को सुना-समझा और उनके अनुयायी बनने लगे। जैसे-जैसे काल की लंबाई बढ़ती है, वैसे-वैसे उसका आवरण सबको आवृत करता जाता है। किंतु उन्हें अनावृत करता है, जिनका जीवन तप: पूत रहा है। आचार्य भिक्षु महान तपस्वी थे। उनकी तपस्या का वलय इतना शक्तिशाली था कि उसके परमाणु हजारों वर्षों तक अपना प्रभाव सुरक्षित रख पाएंगे। आचार्य भी भिक्षु द्वारा जो सत्य अभिव्यक्त हुआ, वह इतना चिरंतन था कि उसे वर्तमान की धारा का स्रोत कहा जा सकता है। आज के ही दिन 222 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु की आत्मा अनंत में विलीन हो गई।
इस अवसर पर साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने आगमों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने भगवान महावीर की वाणी को सहज सरल शब्दों में जनता के सामने रखा। आचार्य भिक्षु अपने युग के एक धुरीण आचार्य थे। उन्होंने यथास्थित से ऊपर उठकर सत्य की गणेषणा की जीवन में सत्य की अवधारणा के लिए उन्होंने अपने सुख और सुविधाओं का बलिदान कर दिया। उन्होंने धर्म संघ की चिरजीविता के लिए अनेक मर्यादाओं का निर्माण किया। संघ की वृहता और एक रूपता के लिए व्यक्तिगत शिष्य प्रथा को समाप्त किया।
आचार्य भिक्षु के सिद्धांत साधना के मौलिक निष्कर्ष थे – (1)धर्म और अधर्म का मिश्रण नहीं होता । (2) अशुद्ध साधन के द्वारा शुद्ध साध्य की प्राप्ति नहीं होती। (3) बड़ों के लिए छोटे जीवों का घात करना पुण्य नहीं होता। (4) अहिंसा और दया सर्वथा एक है। (5) हिंसा से धर्म नहीं होता। (6) आवश्यक हिंसा अहिंसा नहीं है। आचार्य भिक्षु के इन सिद्धांतों से जनता ने धर्म के सही स्वरूप को गहराई से समझा। आचार्य भिक्षु ने कहा कि हिंसा करना पाप है, करवाना पाप है, और उसकी अनुमोदना करना पाप है। अहिंसा का पालन करना धर्म है, करवाना धर्म है और उसके पालन की अनुमोदना करना भी धर्म है। इस अवसर पर साध्वी श्री रुचि प्रभा जी ने गीतिका प्रस्तुत की।
तेरापंथी सभा से जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि जब जब सत्य शब्द की बात सामने आती है तब आचार्य भिक्षु का चेहरा सामने आता है। आचार्य भिक्षु सत्य के पुजारी थे। उन्होंने जो धर्म क्रान्ति की वो तेरापंथ के नाम से विख्यात है। उन्होंने आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को जीवन में लागू करने की बात कहते हुए भिक्षु साहित्य निरंतर पढ़ने की बात कही। तेरापंथ युवक परिषद से ललित राखेचा एवं तेरापंथ महिला मंडल की मंत्री मीनाक्षी आंचलिया ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन सुप्रिया राखेचा किया।
तमिलनाडु स्तरीय भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला
चेन्नई ,16 सितम्बर। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा निर्देशित तमिलनाडु स्तरीय भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ युवक परिषद चेन्नई ने आयोजित किया।
भिक्षु दर्शन पर आयोजित इस कार्यशाला में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा की अध्यक्षता में यह कार्यशाला आयोजित हुई l कार्यक्रम की शुरुआत सामूहिक मंगलाचरण एवं विजय गीत से हुई। तत्पश्चात अध्यक्ष संदीप मुथा ने सभी का स्वागत एवं अभिनंदन किया l साध्वी श्री ने सभी श्रावक समाज को भिक्षु के जीवन दर्शन से अवगत करावाया।
साध्वी श्री डॉ. गवेषणा श्री जी ने कहा, आचार्य भिक्षु रहस्य पुरुष थे, उनके विचारों की गहराई विहंगांवलोकन से नहीं मापी जा सकती। उन्होंने जो व्याख्याएं दी,वे व्यावहारिक जगत को कैसी ही क्यों ना लगी पर उनमें वास्तविक सच्चाई है। आचार्य भिक्षु के सिद्धांत वाणी का स्पर्श किया जाए तो उनके मौलिक निष्कर्ष थे-धर्म अधर्म का मिश्रण नहीं होता। अशुद्ध साधन के द्वारा साध्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। सिद्धांतों का विस्तार से विश्लेषण करते हुए साध्वी श्री ने कहा, बड़े जीवों के लिए छोटे जीवों का घात करना पुण्य नहीं है, अहिंसा और दया सर्वथा एक है। हिंसा से धर्म संभव नहीं ।
साध्वी श्री मयंक प्रभा जी ने कहा, आचार्य भिक्षु संघ व्यवस्था के महान प्रवर्तक थे, संघ व्यवस्था पर अवलंबित है। आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ संघ को संगठित किया, उसकी सुव्यवस्था के लिए अनेक मर्यादाएं निर्धारित की, जैसे अपने शिष्य शिष्या ना बनाएं, सब साधु साध्वियां एक आचार्य की आज्ञा में रहे। साध्वी भी मेरूप्रभा जी ने यह संघ हमारा मथुरा काशी, अखंड तीर्थ समाये सुमधुर गीतिका प्रस्तुत की।
साध्वीश्री दक्षप्रभा जी ने आचार्य भिक्षु के सिद्धांत से संबंधित गीतिका का संगान किया। साधवी श्रीजी के व्यक्तत्व के पश्चात एक प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें सभी श्रावकों को भिक्षु दर्शन से संबंधित प्रश्नों का सही उत्तर देना था। सबसे ज्यादा अंक हासिल करने वाले दस प्रतियोगियों को पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के शुरू में सबसे पहले आने वाले तीन श्रावकों को भी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कोलकाता से पधारे कार्यशाला के राष्ट्रीय सहप्रभारी सूर्यप्रकाश डागा,मदुरै से पधारे परिषद प्रभारी नितेश कोठारी एवं माधावरम ट्रस्ट के अध्यक्ष घीसुलाल बोहरा,अभातेयुप सदस्य कोमल डागा,संतोष सेठिया, दिलीप गेलड़ा सहित कई संघीय संस्थाओं एवं परिषदों के पदाधिकारी गण, तेयुप चेन्नई के अनेक कार्यकारिणी सदस्य एवं किशोर मंडल के किशोरों सहित काफी संख्या में श्रावक समाज की उपस्थिति रही। मदुरै से 71 श्रावकों का समूह इस कार्यशाला में भाग लेने के लिए आया। कार्यक्रम का कुशल संचालन दिलीप गेलड़ा ने किया। इस कार्यक्रम के संयोजक दिलीप गेलडा एवं कोमल डागा थे।कार्यक्रम के अंत में मंत्री सुरेश तातेड ने सभी का आभार प्रकट किया।
सच्चे आत्मार्थी महापुरुष थे- आचार्य भिक्षु -मुनि दीप कुमार
कोयम्बतूर , 16 सितम्बर। तमिलनाडु के कोयम्बतूर स्थित तेरापंथ जैन भवन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री दीप कुमारजी ठाणा-2के सान्निध्य में “आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव” का आयोजन जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा-कोयम्बतूर द्वारा किया गया।
मुनिश्री दीप कुमारजी ने कहा- आचार्यश्री भिक्षु सच्चे आत्मार्थी महापुरुष थे। वे सब प्रकार की भौतिक एषणाओं से उपरत थे। साधु जीवन में पद-प्रतिष्ठा का मोह हो सकता है, शिष्यों का मोह हो सकता है। पर आचार्य भिक्षु वीतराग पथ के सच्चे पथिक थे, साधक थे। उन्होंने कहा- “तपस्या करके आत्मा का ” कार्य सिद्ध करेंगे। हमारे पीछे कोई दीक्षा लेंगे, पंथ चलेगा यह हमने नहीं सोचा था।
आचार्य भिक्षु का जीवन सत्य के लिए समर्पित था। संसार में सत्य की चर्चाएं करने वाले हजारों मिल सकते हैं, पर सत्य के मार्ग पर चलना तलवार की धार चलना है। महापुरुषों ने सत्य के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। आचार्य भिक्षु सत्यशोधक ही नही, सत्यनिष्ठ भी थे। उन्होंने सत्य की आराधना के लिए सारी सुविधाओं का परित्याग कर दिया। मुनिश्री ने कहा- आचार्य भिक्षु ने सिद्धांतो और आदर्शो के साथ कभी समझोता नहीं किया। मुनिश्री ने स्वरचित गीत का भी संगान किया।
मुनि श्री काव्य कुमारजी ने कहा- आचार्य भिक्षु समत्व के शिखर पुरुष थे। अनुभव सिद्ध पुरुष थे। उनका व्यक्तित्व “अभय से ओत-प्रोत था। कार्यक्रम के प्रारंभ में तेरापंथ महिला मंडल – कोयम्बतूर बहनों ने मंगलाचरण किया। संघगान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।