नेपाल में नोट पर छपे मैप में 3 भारतीय इलाके

  • इन पर दोनों देशों में 34 साल से विवाद; चीन समर्थक सरकार का फैसला

काठमांडू , 4 मई। नेपाल में 100 रुपए के नए नोट छपने वाले हैं। इस पर देश का एक नक्शा भी होगा। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, इस मैप में वो इलाके भी दिखाए जाएंगे, जिन्हें भारत अपना बताता है। इनमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी शामिल हैं। इन इलाकों को लेकर भारत-नेपाल के बीच करीब 34 साल से विवाद है।

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नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की अगुआई में हुई एक बैठक के दौरान शुक्रवार को यह फैसला लिया गया। सरकार की प्रवक्ता रेखा शर्मा ने कैबिनेट मीटिंग के बाद बताया कि 25 अप्रैल और 2 मई की बैठक में 100 रुपए के नोट को री-डिजाइन करने पर सहमति बनी है।

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खास बात यह है कि प्रधानमंत्री प्रचंड ने मार्च में ही नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन तोड़कर CPN-UML पार्टी के साथ सरकार बनाई। इस पार्टी के लीडर केपी शर्मा ओली हैं, जिन्हें चीन का समर्थक कहा जाता है।

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नेपाल ने 4 साल पहले नए मैप में तीनों इलाकों को अपना बताया
नेपाल ने 18 जून 2020 को देश का नया पॉलिटिकल मैप जारी किया था। इसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया था। इसके लिए नेपाल के संविधान में भी बदलाव किया गया था। भारत सरकार ने नेपाल के इस कदम को एकतरफा बताते हुए इसका विरोध किया था।

भारत अब भी इन तीनों इलाकों को अपना क्षेत्र कहता है। दोनों देश, करीब 1850 किमी की सीमा साझा करते हैं। यह भारत के 5 राज्यों- सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से गुजरती है।

दो नदियों से तय हुई भारत-नेपाल की सीमा
भारत, नेपाल और चीन सीमा से लगे इस इलाके में हिमालय की नदियों से मिलकर बनी एक घाटी है, जो नेपाल और भारत में बहने वाली काली या महाकाली नदी का उद्गम स्थल है। इस इलाके को कालापानी भी कहते हैं। यहीं पर लिपुलेख दर्रा भी है। यहां से उत्तर-पश्चिम की तरफ कुछ दूरी पर एक और दर्रा है, जिसे लिंपियाधुरा कहते हैं।

अंग्रेजों और नेपाल के गोरखा राजा के बीच 1816 में हुए सुगौली समझौते में काली नदी के जरिए भारत और नेपाल के बीच सीमा तय की थी। समझौते के तहत काली नदी के पश्चिमी क्षेत्र को भारत का इलाका माना गया, जबकि नदी के पूर्व में पड़ने वाला इलाका नेपाल का हो गया।

काली नदी के उद्गम स्थल, यानी ये सबसे पहले कहां से निकलती है, इसे लेकर दोनों देशों के बीच विवाद रहा है। भारत पूर्वी धारा को काली नदी का उद्गम मानता है। वहीं नेपाल पश्चिमी धारा को उद्गम धारा मानता है और इसी आधार पर दोनों देश कालापानी के इलाके पर अपना-अपना दावा करते हैं।

 

लिपुलेख दर्रे से गुजरती है मानसरोवर यात्रा, चीनी सेना पर निगरानी भी आसा

उत्तराखंड के पिथौराढ़ जिले में स्थित कालापानी भारत-नेपाल-चीन के बीच रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण ट्राई-जंक्शन है।
कालापानी से भारत बहुत आसानी से चीनी सेना पर नजर रख सकता है।
भारत ने पहली बार 1962 के युद्ध में यहां सेना तैनात की थी। इलाके के महत्व को देखते हुए इन दिनों यहां भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) तैनात है।
भारत से मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्री इसी इलाके के लिपुलेख दर्रे से होकर गुजरते हैं। 1962 में चीन के हमले के बाद भारत ने लिपुलेख दर्रे को बंद कर दिया था।
2015 में चीन के साथ व्यापार और मानसरोवर यात्रा को सुगम बनाने के लिए इसे दोबारा खोला गया।
मई 2020 में भारत ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को सुगम बनाने के लिए पिथौरागढ़ से लिपुलेख दर्रे तक 80 किमी लंबी नई सड़क का उद्घाटन किया था, जिसे लेकर नेपाल ने नाराजगी जताई थी।

नेपाल को उकसाने के पीछे चीन का हाथ
अंग्रेजों के साथ संधि के करीब 100 साल बाद तक इस इलाके को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ। यहां तक कि भारत ने 1962 में चीनी आक्रमण को रोकने के लिए इस इलाके में अपनी सेना तक तैनात कर दी थी। अभी भी इस इलाके के कई हिस्सों में भारतीय सेना तैनात है।

1990 में नेपाल के राजशाही से लोकतंत्र की ओर बढ़ाते ही इस इलाके को लेकर विरोध के सुर उठने लगे।  ये विवाद 2015 में तब गहराया जब कम्युनिस्ट नेता केपी ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने। ओली ने नेपाल के परंपरागत दोस्त भारत के बजाय चीन से नजदीकियां बढ़ाईं। बदले में चीन ने नेपाल में विभिन्न परियोजनाओं में अरबों डॉलर झोंक दिए, लेकिन चीन के ऐसा करने के पीछे असली मंशा सदियों से भारत के करीबी रहे नेपाल को भारत के खिलाफ उकसाने की थी। पिछले साल देश के थल सेनाध्यक्ष एम.एम नरवणे ने कहा था कि नेपाल ऐसा किसी और के बहकावे में कर रहा है। नरवणे का इशारा चीन की ओर था।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी लिपुलेख में भारत द्वारा सड़क निर्माण पर नेपाल की आपत्ति के बाद कहा था कि नेपाल को इस मुद्दे पर गुमराह किया गया है।
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