निजी अस्पताल पर प्री मैच्योर डिलीवरी में लापरवाही बरतने के कारण 19 लाख का जुर्माना
बीकानेर , 5 जून। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने अस्पताल पर 19 लाख रुपए के जुर्माने के फैसले को बरकरार रखा है। शिकायतकर्ता ने अस्पताल की लापरवाही से के कारण उसके प्री मैच्योर बच्चे की आंखों की रोशनी चली जाने के सम्बन्ध में दावा किया था। आयोग ने इस सम्बन्ध में 28 जून 2021 को जुर्माना भरने के आदेश दिए थे। इसके बाद वसुंधरा अस्पताल की ओर से इस दावे को खारिज करने की अपील की गई थी। आयोग ने याचिका खारिज कर दी है।
जुड़वां बच्चों में बेटे की आंखों की रोशनी गई
पाली निवासी एक महिला ने गर्भवती होने पर वसुंधरा अस्पताल में डाॅ. आदर्श पुरोहित से इलाज लिया था। प्री मैच्योर डिलीवरी होने के कारण अस्पताल ने भर्ती कर ऑपरेशन किया। ऑपरेशन से पहले और बाद में दोनों नवजात की सभी तरह की जांच भी की गई।
महिला ने एक पुत्री, एक पुत्र को जन्म दिया था। कुछ समय बाद पुत्र को दृष्टिदोष हो गया। महिला ने आरोप लगाया कि इलाज में लापरवाही के कारण उसका पुत्र देख नहीं सकता। पति की मृत्यु हो चुकी है, ऐसे में उसे 17 लाख का मुआवजा, इलाज खर्च के 2.33 लाख सहित अन्य खर्च दिलाया जाए और अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
19 लाख का लगाया था जुर्माना
मामला जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम जोधपुर के यहां गया तो 28 जून 2021 को सुनवाई के बाद आयोग ने फैसले में कहा- एक महीने से अधिक समय तक बच्चों की देखरेख और इलाज में ही थी। ऐसी स्थिति में न तो अस्पताल की ओर से किसी नेत्र विशेषज्ञ को बुलाकर शिकायतकर्ता के पुत्र की आंखों की जांच करवाई गई।
न ही आंखों में दृष्टि को लेकर कोई सलाह या सुझाव दिया। ऐसे में अस्पताल पीड़िता को 19 लाख रुपए बतौर क्षतिपूर्ति राशि मय ब्याज तथा परिवाद व्यय के 10 हजार रुपए अदा करे। साथ ही, अस्पताल के खिलाफ आवश्यक कार्यवाही करने के निर्णय की प्रति जिलाधीश जोधपुर और मुख्य सचिव, गृह विभाग राज सरकार जयपुर को भेजी जाए।
अस्पताल ने आयोग में लगाई थी अपील
इस आदेश के खिलाफ वसुंधरा अस्पताल की ओर से आयोग बैंच जोधपुर में अपील की गई। जिस पर सुनवाई करते हुए सदस्य संजय टाक व सदस्य (न्यायिक) निर्मल सिंह मेड़तवाल ने अपने आदेश में कहा- जब बच्चा 9 माह का हो गया तब पहली बार चिकित्सक को ऐसा आभास हुआ कि बच्चे की दृष्टि में दोष है। जबकि प्री मैच्योर बच्चों के संबंध में आवश्यक सावधानी बरतने के मानकों का इस्तेमाल किया जाता तो यह स्थिति नहीं होती।
इसके अलावा डिस्चार्ज समरी में भी आंखों की जांच केवल केटरेक्ट और डिस्चार्ज के बारे में ही की गई है। उसके सामने भी निल लिखा गया है जिससे यह साबित होता है कि इससे संबंधित जांच भी नहीं की गई थी। इस मामले में प्री मैच्योर पैदा हुए बच्चों के संबंध में चिकित्सा के दिशा निर्देशों का अनुसरण नहीं किया गया है। आयोग ने अपील खारिज करते हुए अपने फैसले को उचित माना।