पदभार संभालते ही कानून मंत्री मेघवाल से पास की नई ‘मुकदमा नीति’, अब कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार
नयी दिल्ली 11 जून। केन्द्रीय वि धि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने आज सचिवालय में अपना कार्यभार ग्रहण किया और पहले दस्तावेज के रूप में ‘राष्ट्रीय मुकदमा नीति ’ पर हस्ताक्षर किये।
केंद्रीय कानून मंत्रालय ने राष्ट्रीय मुकदमा नीति के दस्तावेज को अंतिम रूप दे दिया है। इसका उद्देश्य यह है कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित पड़े मामलों का त्वरित समाधान किया जाए। कानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने कार्यभार संभालने के तुरंत बाद राष्ट्रीय मुकदमा नीति के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। अब आने वाले दिनों में मुकदमा नीति को मंजूरी के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा। सूत्रों की मानें तो यह नीति मोदी 3.0 सरकार के 100 दिन के एजेंडे का हिस्सा है।
शास्त्री भवन स्थित विधि एवं न्याय मंत्रालय में मध्याह्न करीब 12 बजे कार्यभार ग्रहण करने के बाद मेघवाल ने कामकाज की शुरुआत का शगुन करते हुए राष्ट्रीय मुकदमा नी ति के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये।
‘न्याय प्रक्रिया में तेजी लाना सबसे बड़ी प्राथमिकता’
कार्यभार संभालने के तुरंत बाद केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और उपभोक्ता अदालतों में लंबित पड़े मामलों की न्याय प्रक्रिया में तेजी लाना है। इस मामले जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि दस्तावेज में लंबित पड़े मामलों के त्वरित समाधान का जिक्र किया गया है।
अधिकारी ने यह भी बताया कि यह पहला काम था, जिसे केंद्रीय मंत्री सबसे पहले निपटाना चाहते थे। बता दें कि राष्ट्रीय मुकदमा नीति का मसौदा पिछली अलग अलग सरकारों में कई बार तैयार किया गया। कई वर्षों से सरकारों द्वारा इसकी रूपरेखा पर विचार-विमर्श किया गया।
केंद्रीय मंत्री मेघवाल ने कहा कि नई नीति के पास होने से लंबित पड़े मामलों पर तुरंत सुनवाई होगी और आम जनता को आसानी होगी। उन्होंने कहा कि नई मुकदमा नीति को अंतिम रूप दे दिया गया है। इससे सरकार की जिम्मेदारियां और भी अधिक बढ़ जाएंगी।
यूपीए-2 सरकार में भी लाई गई थी नीति, आगे नहीं बढ़ पाई
इससे पहले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए)-2 सरकार में तत्कालीन कानून मंत्री वीरप्पा मोइली भी एक राष्ट्रीय मुकदमा नीति लेकर आए थे हालांकि, यह नीति आगे नहीं बढ़ पाई थी। 23 जून 2010 को तत्कालीन सरकार द्वारा एक बयान जारी किया गया था। इसमें कहा गया था कि अदालतों में लंबित पड़े मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए एक नीति तैयार की गई है। इसके तहत लंबित पड़े मामलों के औसत समय को 15 वर्ष से घटाकर तीन वर्ष करने की कोशिश की गई थी। हालांकि, यह नीति आगे नहीं बढ़ पाई थी।
उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ज़ोर ईजी ऑफ लिविंग यानी जीवन की सुगमता पर है। कानून मंत्रालय ने इसी को ध्यान में रखते हुए पुराने अप्रासंगिक हो चुके 1500 से अधिक कानूनों को निरस्त कर दिया है तथा आगे और भी ऐसे कानून हटाएंगे।