पद के प्रति अनासक्त चेतना का उदाहरण आचार्य तुलसी ने प्रस्तुत किया
गंगाशहर , 18 जून। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के निर्देशानुसार गंगाशहर तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आचार्य श्री तुलसी की पुण्यतिथि विसर्जन दिवस के रूप में साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी एवं प्रांजल प्रभाजी के सानिध्य में मनाई गई ।
कार्यक्रम की शुरुआत मंडल की बहनों ने तुलसी अष्टकम के द्वारा की। साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी ने स्वयं आचार्य पद का विसर्जन कर अपने युवाचार्य को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया यह उनके पद के प्रति अनासक्त चेतना का ज्वलंत उदाहरण है। और यह सभी धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के लिए अनुकरणीय है।
तुलसी के अवदान ,है बड़े महान पर तेरापंथ महिला मंडल की बहनों द्वारा शानदार नाट्य प्रस्तुति दी गई जिसमें गुरुदेव तुलसी द्वारा दिए गए अनेकों अवदानो में से कुछ अवदान -अणुव्रत ,नया मोड़, ज्ञानशाला ,आगम संपादन ,समण श्रेणी ,महिला मंडल स्थापना को दर्शाया गया।
इसी उपक्रम में -मौलिकता रहे सुरक्षित ,परिवर्तन सदा अपेक्षित विषय पर भाषण प्रतियोगिता रखी गई जिसमें 10 प्रतियोगियों ने भाग लिया। महात्मा गांधी गवर्नमेंट स्कूल उदय रामसर के प्रिंसिपल रतनलाल छल्लानी और चोपड़ा स्कूल गंगाशहर के रिटायर्ड प्रिंसिपल प्रदीप लोढ़ा ने निर्णायकों की भूमिका निभाई।
सुनीता पुगलिया, दीप्ति लोढ़ा, संगीता बोथरा ने सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागीयों का स्थान प्राप्त किया lअध्यक्ष संजू लालाणी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य ममता रांका ने अपने विचार रखें । पदाधिकारीगण,महिला मंडल के सदस्यों एवं श्रावक समाज की अच्छी उपस्थिति से सफल कार्यक्रम का आयोजन हुआ।कार्यक्रम का कुशल संचालन मंत्री मीनाक्षी आंचलिया द्वारा किया गया।
आचार्य तुलसी ने अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से पद के प्रति अनासक्त चेतना का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके जीवन से जुड़े कुछ मुख्य उदाहरण निम्नलिखित हैं. ( थार एक्सप्रेस )
1. आचार्य पद का त्याग:
आचार्य तुलसी ने 22 साल की उम्र में आचार्य पद संभाला और इसके बाद अपना जीवन जैन धर्म के प्रचार-प्रसार और समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। 1994 में, उन्होंने अपनी मर्जी से आचार्य पद त्याग दिया और अपने शिष्य महाप्रज्ञ को यह पद सौंप दिया। यह कदम उनके द्वारा पद की महत्ता से अनासक्ति और संगठन की निरंतरता के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है।
2. अहंकार से मुक्ति:
आचार्य तुलसी ने सदैव अहंकार और स्वार्थ से मुक्त होकर कार्य किया। उन्होंने अपने जीवन में व्यक्तिगत लाभ की बजाय समाज और धर्म के उत्थान को प्राथमिकता दी। उनका दृष्टिकोण सदैव दूसरों की भलाई के प्रति था, न कि स्वयं के पद और प्रतिष्ठा के प्रति।
3. समाज सुधार के कार्य:
उन्होंने ‘अणुव्रत आंदोलन’ की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य समाज में नैतिकता और आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देना था। यह आंदोलन व्यक्तिगत सुधार और नैतिक मूल्यों पर आधारित था, जिसमें आचार्य तुलसी ने किसी पद या सत्ता की अपेक्षा किए बिना अपना योगदान दिया।
4. साधारण जीवन शैली:
आचार्य तुलसी ने अपने जीवन में सादगी और विनम्रता को अपनाया। उनके जीवन का हर पहलू इस बात का प्रतीक था कि वे किसी पद या अधिकार से प्रभावित नहीं थे। उन्होंने हमेशा एक साधारण और अनुशासित जीवन जीने का प्रयास किया, जो उनके अनासक्ति के विचार को प्रदर्शित करता है।
5. निर्भीक नेतृत्व:
अपने पद पर रहते हुए भी उन्होंने कभी भी निर्णय लेते समय पद की महत्ता को प्राथमिकता नहीं दी। वे सदैव सत्य और धर्म के मार्ग पर चले, भले ही इसके लिए उन्हें अपने पद का त्याग ही क्यों न करना पड़े।
आचार्य तुलसी का जीवन और उनके द्वारा उठाए गए कदम इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि उन्होंने पद के प्रति अनासक्त चेतना को वास्तविक जीवन में अपनाया और इसका अनुपालन किया। उनके उदाहरण से यह सिद्ध होता है कि सत्यनिष्ठा, निस्वार्थ सेवा और समाज के प्रति समर्पण ही वास्तविक नेतृत्व के गुण हैं।