आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी के सान्निध्य में 25 जुलाई से पंच परमेष्ठी श्रेणी तप
बीकानेर, 22 जुलाई। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी के सान्निध्य 25 जुलाई से 11 सितम्बर 2024 तक पंच परमेष्ठी श्रेणी तप का आयोजन किया जाएगा। इस तप के लिए बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं ढढ्ढा चौक स्थित श्री जिनेश्वर युवक परिषद के कार्यालय में पंजीयन करवा रहे है।
आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने सोमवार को ढढ्ढा चौक के प्रवचन पंडाल यशराग निकेतन में कहा कि अरिहंतों की वीतरागता, सिद्धों का सिद्धत्व, आचार्यों पंचाचार, उपाध्यायों के शुभ विचार, साधुओं के सद् व्यवहार, अपनी आत्मा को पंच परमेष्ठीमय करने के लिए पंच परमेष्ठी तप अनुपम उपक्रम है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में पंच परमेष्ठी को सर्वोपरी स्थान दिया गया है।
श्री अरिहंत, सिद्ध, उपाध्याय, व साधु को पंच परमेष्ठी कहा गया है। नवकार महामंत्र में पंच परमेष्ठी की ही स्तुति वंदना की जाती है। उन्होंने कहा कि अधिकाधिक श्रावक श्राविकाएं प्रमाद को त्यागकर पंच परमेष्ठी तप पुरुषार्थ व पराक्रम करें।
बीकानेर के मुनिश्री सम्यक रत्न ने बताया कि पंच परमेष्ठी श्रेणी में उपवास, एकासना, आयम्बिल आदि करने साथ ’’णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं’’ में प्रत्येक पद के मंत्र का जाप किया जाएगा।
श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा ने बताया कि आचार्यश्री व सहवृति 17 मुनि नियमित सुबह साढ़े छह बजे ’’निगोद से निर्वाण, सुबह साढ़े दस बजे से एक घंटे तात्विक कक्षाएं, दोपहर तीन से चार बजे तक ज्ञान वाटिका के बच्चों की कक्षाएं व रात को साढ़े आठ बजे से साढ़े नौ बजे तक दिन में प्रवचन में किसी कारणवश नहीं आने वाले श्रावकों के धर्म-आध्यात्म से संबंधित जिज्ञासाओं पर संवाद कर रहे है।
श्री जिनेश्वर युवक परिषद के अध्यक्ष संदीप मुसरफ ने बताया कि विभिन्न तपस्याएं करने वाले श्रावक-श्राविकाओं के तप के पारणे की व्यवस्था डागा, सेठिया, पारख मोहल्ले के महावीर भवन में की जाएगी।
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अहम को त्यागकर अर्हम की ओर बढे़
बीकानेर, 22 जुलाई। रांगड़ी चौक की तपागच्छी पौषधशाला में जैनाचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी के आज्ञानुवर्ती मुनिश्री पुष्पेन्द्र विजय एवं मुनिश्री श्रुतानंद विजय सोमवार को नियमित प्रवचन में कहा कि अहम् का त्याग कर अर्हम की ओर बढ़े ।
उन्होंने कहा कि अहम् व पापों का त्याग करने और आत्मशुद्धि के लिए जैन धर्म में नियमित प्रतिक्रमण करने का मार्ग बताया है। माता-पिता,देव, गुरु व धर्म के उपकारों को कभी नहीं भूलना चाहिए। इनका प्रतिदिन वंदना करने से पुण्यों का उदय व पापों का क्षय होता है। इनके उपकारों को याद करते हुए झुककर श्रद्धा भाव से नमस्कार, वंदन करने वाले को आध्यात्मिक जगत में सम्राट कहा है।