बीकानेर की अनमोल विरासत महाग्रंथ का विमोचन
सूरत , 1 अक्टूबर । सूरत में गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर महाराज साहब के पावन सानिध्य में ‘बीकानेर की अनमोल विरासत’ महाग्रंथ का विमोचन किया गया। सूरत के पाल क्षेत्र में स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन संघ द्वारा आयोजित चातुर्मास के मध्य में खरतरगच्छ युवा परिषद व महिला परिषद के अधिवेशन में यह लोकार्पण किया गया।
संघवी तेजराज गुलेच्छा, संघवी विजयराज डोसी, प्रकाशचंद सुराणा, निर्मल धारीवाल, अशोक पारख, विपुल नाहटा, राजीव खजांची, अनिल सुराणा, सौ. मनीषा खजांची के द्वारा पुरे पांडाल में जिनशासन के जयघोष के साथ इस महाग्रंथ का विमोचन किया गया।
अखिल भारत से पधारे 60 से अधिक गांवों के प्रतिनिधियों के समक्ष विमोचित इस महाग्रंथ में बीकानेर के सर्वाधिक प्राचीन श्री चिंतामणि आदिनाथ जिनालय के भूगर्भ में संरक्षित प्राचीन, अद्वितीय, पंचधातुमय 1100 प्रतिमाओं के फोटो शिलालेख एवं उनका अनुवाद बहुरंगीय आर्ट पेपर पर प्रकाशित किया गया है।
बीकानेर के अनेक प्रभु भक्तों, श्री जिनहरि विहार समिति पालीताना तथा श्री खरतरगच्छ संघ ब्यावर के अर्थ सहयोग से और श्री चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास बीकानेर द्वारा प्रकाशित महाग्रंथ के संपादन एवं अनुवाद का दुरुह कार्य गच्छाधिपति गुरुदेव के शिष्य आर्य मेहुलप्रभसागर महाराज गणी द्वारा 4 वर्षों की मेहनत से किया गया है। इस पावन अवसर पर गुरुदेव ने संपादक को ग्रंथ की प्रति भेंट करते हुए इसी प्रकार अनेक संपादन के साथ उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
इस पावन अवसर पर बीकानेर का प्रतिनिधिमंडल जिसमें 60 से अधिक पुरुष महिलाएं एवं बालक बालिकाएं शामिल थी वह भी सम्मिलित हुआ।
यहां उल्लेखनीय है कि 400 से अधिक वर्ष पूर्व सिरोही क्षेत्र से लूटी गई ये मूर्तियां स्वर्ण प्राप्त करने हेतु गलाने के लिए रखी हुयी थी। अकबर के दरबार से बीकानेर गौरव दीवान कर्मचंद्र बच्छावत ने इन प्रतिमाजी के बदले में अनेक भेंट समर्पित कर इन प्रतिमाओं का अधिकार प्राप्त कर बीकानेर में सुरक्षित रखी थी।
ये प्रतिमाएं भूगर्भ में बिराजित है। अंतिम बार इन्हें सन् 2017 में पंच दिवसीय महोत्सव पूर्वक दर्शन-पूजन हेतु निकाला गया था। इस महाग्रंथ के प्रकाशन से प्रभु भक्तों को इन प्रतिमाजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता रहेगा ।