सहनशीलता बिना मुक्ति नहीं-मुनि संवेग रतन सागर महाराज
- समोसारण की रचना व पूजा, धनतेरस को
बीकानेर, 27 अक्टूबर। जैनाचार्य जिन पीयूष सागर सूरीश्वर महाराज के सानिध्य में धनतेरस मंगलवार को भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस पर चल रहे उतरा अध्ययन के विशेष व्याख्यान के तहत अखंड दीपक प्रज्जवलित किया जाएगा तथा समवशरण की रचना की जाएगी। श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा व श्री जिनेश्वर युवक परिषद के अध्यक्ष संदीप मुसरफ ने बताया कि समोशरण के दौरान परमात्मा महावीर स्वामी की स्तुति वंदना की जाएगी।
सहनशीलता बिना मुक्ति नहीं-मुनि संवेग रतन सागर महाराज
जैनाचार्य जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी महाराज के सान्निध्य में रविवार को भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक पर उत्तराध्ययन सूत्र की वांचना करते हुए मुनि संवेग रतन सागर महाराज ने कहा कि सहनशीलता के बिना मुक्ति संभव नहीं है। सहनशीलता आत्मा के तेज को बढ़ाती है तथा मन को नियंत्रित करती है।
उन्होंने कहा कि देव, गुरु व धर्म के मार्ग पर चलने वाले साधक-अराधक कष्ट या कठिनाइयों समभाव से रहते हुए सहते है, इसे परिषह कहते है। परिषह 22 प्रकार के होते है। परिषद में रहने वाले भूख लगने पर शुद्ध आहार नहीं मिलने पर भूख, व शुद्ध पानी नहीं मिलने पर प्यास, क्रोध आने पर क्षमा धारण करते हुए शांत रहते है। वध परिषह में प्रहार करने वाले के प्रति भी द्वेष नहीं करते तथा शांत रहते है।
याचना परिषह में दवाई आदि की जरूरत होने पर दीन वचनों से, हाथ के संकेत से औषधि को नहीं मांगते। अलाभ परिषह में कई दिनों तक आहार नहीं मिलने पर भी संतोष धारण करते है। रोग परिषह के दौरान रुग्णता के बाद भी ईलाज नहीं लेते, तृणस्पर्श काष्ठ फलक आदि पर बैठना, शयन करना उसमें उत्पन्न पीड़ा को सहन करना होता है। उन्होंने मल, सत्कार पुरस्कार, पूजा,अज्ञान व अदर्शन परिषह का वर्णन किया।