राजस्थान और इटली के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक सेतु थे तेस्सीतोरी
- डॉ. तेस्सीतोरी की 105वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि और शब्दांजलि आयोजित
बीकानेर, 22 नवम्बर। राजस्थानी के इटालियन विद्वान डॉ. एल पी तेस्सीतोरी की 105वीं पुण्यतिथि के अवसर पर शुक्रवार को सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा तेस्सीतोरी प्रतिमा स्थल पर श्रद्धांजलि और शब्दांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अतिरिक्त जिला कलेक्टर (प्रशासन) डॉ. दुलीचंद मीना थे। उन्होंने कहा कि तेस्सीतोरी राजस्थान और इटली के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक सेतु थे। उन्होंने बीकानेर में पांच साल से अधिक समय तक रहकर चारण और जैन साहित्य पर भरपूर शोध कार्य किया। युवाओं को इससे सीख लेनी चाहिए।
सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सचिव और मुख्य वक्ता राजेंद्र जोशी ने कहा कि संस्था द्वारा राजस्थानी के प्रोत्साहन के लिए सतत प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. तेस्सीतोरी की पुण्यतिथि के अवसर पर डॉ. एल पी तेस्सीतोरी की जयंती पर तीन दिवसीय कार्यक्रम किए जाएंगे। उन्होंने संस्था की अन्य गतिविधियों के बारे में बताया। साथ ही तेस्सीतोरी के साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तेस्सीतोरी ने ‘राव जेतसी रो’ छन्द के सम्पादन के साथ ‘वेलि क्रिसन रुक्मिणि री’ के सम्पादन का काम साधु जोरदान और बारठ देवकरण की सहायता से प्रारंभ किया। इस काव्य के सम्पादन के लिए उन्होंने आठ हस्तलिखित प्रतियों तथा ढूंढाड़ी व संस्कृत की टीका को आधार बनाकर, ग्रन्थ का उत्कृष्ट सम्पादन किया। उन्होंने बताया कि डॉ. तैस्सीतोरी का 31 वर्ष की अल्पायु में बीकानेर में 22 नवम्बर 1919 को निधन हुआ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए सहायक निदेशक (जनसंपर्क) हरि शंकर आचार्य ने कहा कि तेस्सीतोरी ने दुनिया में राजस्थानी का मान बढ़ाया। राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता के सामूहिक प्रयास उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अध्यक्षता करते हुए एन डी रंगा ने कहा कि राजस्थानी को जन-जन की भाषा बनाना जरूरी है। बच्चों को राजस्थानी से जोड़ना जरूरी है। उन्होंने लिखित और वात साहित्य के बारे में बताया।
विशिष्ट अतिथि डॉ. अजय जोशी ने कहा कि डॉ. तेस्सीतोरी ने सीमित संसाधनों के दौर में राजस्थानी साहित्य की सेवा की। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।इससे पहले कार्यक्रम संयोजक राजा राम स्वर्णकार ने स्वागत उद्बोधन दिया। उन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में बताया। इस दौरान अब्दुल शकूर सिसोदिया, एड. महेंद्र जैन, आत्मा राम भाटी, जुगल पुरोहित, शशांक जोशी, पुस्तकालयाध्यक्ष विमल शर्मा, राहुल जादूसंगत, इंद्र छंगाणी, डॉ. फारूक चौहान आदि ने तेस्सीतोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार रखे। ज्योति स्वामी ने आभार जताया। इससे पहले सभी ने तेस्सीतोरी की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की।
शिक्षक नेता को दी श्रद्धांजलि, रखा दो मिनट का मौन
कार्यक्रम के पश्चात शिक्षक नेता श्रवण पुरोहित के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस दौरान वक्ताओं ने शिक्षक हित में उनके योगदान के बारे में बताया।
महान् पुरातत्ववेत्ता, शोधार्थी, संपादक व बहुभाषाविद् थे डॉ. तैस्सितोरी- केवलिया
बीकानेर, 22 नवम्बर। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की ओर से राजस्थानी भाषा-संस्कृति के महान् साधक डॉ. एल. पी. तैस्सितोरी की पुण्यतिथि पर उनके समाधि-स्थल पर शुक्रवार को पुष्पांजलि अर्पित की गई। अकादमी कार्मिकों द्वारा डॉ. तैस्सितोरी के कृतित्व से प्रेरणा लेकर मायड़ भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए पूर्ण निष्ठा से कार्य करने का संकल्प लिया गया।
इस अवसर पर अकादमी सचिव शरद केवलिया ने कहा कि पुरातत्ववेत्ता, शोधार्थी, संपादक व बहुभाषाविद् डॉ. तैस्सितोरी ने राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति के संवर्द्धन-संरक्षण के लिये अविस्मरणीय योगदान दिया। उन्होंने भारत व यूरोप के मध्य सांस्कृतिक, साहित्यिक व भाषिक सेतु के रूप में कार्य किया। डॉ. तैस्सितोरी का बहुआयामी व्यक्तित्व था, उन्होंने बीकानेर आकर इस क्षेत्र का ऐतिहासिक सर्वेक्षण किया व अमूल्य प्राचीन ग्रंथों, प्रतिमाओं आदि की खोज की। इस अवसर पर अकादमी कार्मिकों ने डॉ. तैस्सितोरी की समाधि पर पुष्प अर्पित किये व मोमबत्तियां जलाईं। इस दौरान श्रीनिवास थानवी, केशव जोशी, कानसिंह, मनोज मोदी उपस्थित थे।