प्रकृति पर केंद्रित ‘काव्य रंग-शब्द संगत’ की आठवीं कड़ी सम्पन्न हुई
- चांदे री चांदणी सूं पै सांतरी शांति/मन करै नीं रीतै/आ रात-आ चांदे री चमक……-कमल रंगा
बीकानेर, 23 दिसम्बर। प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवक लेखक संघ द्वारा अपनी मासिक साहित्यिक नवाचार के तहत प्रकृति पर केंद्रित ‘काव्य रंग-शब्द संगत’ की आठवीं कड़ी नत्थूसर गेट बाहर स्थित लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन में आयोजित की गई। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि कविता संवेदनात्मक सूक्ष्म पड़ताल करते हुए जीवन की जटिल समस्याओं, घटनाओं एवं प्रतिघटनाओं पर अपनी बात कहती है। इसी संदर्भ में कविता गूंज की अनगूंज बनकर उसके अर्थो को पाठको तक एक सृजनात्मक यात्रा करती है।
रंगा ने आगे कहा कि आज आठवीं कड़ी में हिन्दी, उर्दू एवं राजस्थानी के विशेष आमंत्रित कवि-शायरों ने ‘चन्द्रमा’ के विभिन्न पक्षों को उकेरते हुए काव्य रस धारा से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया, कविता, गीत, ग़जल, हाइकू एवं दोहों से सरोबार इस काव्य रंगत में शब्द की शानदार संगत रही।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि ऐसे आयोजनों के माध्यम से नवाचार के साथ-साथ नव रचना वाचन होता है जिससे नगर की काव्य परम्परा को समृद्ध करने का एक सफल उपक्रम होता है। जिसके लिए आयोजक एवं संस्था साधुवाद की पात्र है। ऐसे आयोजन होना नगर के साहित्यिक वातावरण को स्वस्थ करता है।
कार्यक्रम में काव्य पाठ करते हुए वरिष्ठ कवि कमल रंगा ने अपनी कविता-चांदे री चांदणी सूं पै सांतरी शांति/मन करै नीं रीतै आ रात-आ चांदे री चमक…… के माध्यम से चन्द्रमा के वैभव को नव बोध एवं नव संदर्भो के साथ रखा। वहीं मुख्य अतिथि डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने अपनी चन्द्रमा पर केन्द्रित नई कविता-चांद थूं फगत/आभै रौ नगिनौ नीं….प्रस्तुत कर चन्द्रमा के कई रूप रखें।
वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने अपनी ताजा गजल के बेहतरीन शेर को प्रस्तुत करते हुए- देखा है शरद पूर्णिमा का चांद…..के माध्यम से चांद की शीतलता आदि के संदर्भ में कई प्रसंग रखे, वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती इन्द्रा व्यास ने अपनी ताजा रचना-चांद थूं शरद पूर्णिमा रौ/मुखड़ौ थारौ/जद निरखूं….प्रस्तुत कर चांद का मानवीकरण किया। इसी क्रम में कवि जुगल किशोर पुरोहित ने अपने ताजा गीत-चांद की पनाहो में/चांदनी का डेरा है……पेश की इसी क्रम में कवि शिवशंकर शर्मा ने अलग अंदाज में चांद की महिमा को उकेरा तो युवा कवि यशस्वी हर्ष ने शक्रिया चांद रचना-ऐ चादं तेरी रहबरी का शुक्रिया…..पेशकर चांद को कई अर्थो में खोला। अपनी कविता के माध्यम से कवि ऋषिकुमार तंवर ने चांद को एक अलग अंदाज से देखते हुए अपनी रचना में प्रस्तुत की।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्था के राजेश रंगा ने स्वागत करते हुए बताया कि प्रज्ञालय संस्था गत साढ़े चार दशकों से भी अधिक समय से साहित्य, कला, संस्कृति आदि के क्षेत्र में गैर अनुदानित संस्था के रूप में अपने स्वयं के संसाधनों पर नवाचार एवं आयोजन करती रही है।
कार्यक्रम में पुनीत कुमार रंगा, हरिनारायण आचार्य, अशोक शर्मा, नवनीत व्यास, सुनील व्यास, घनश्याम ओझा, तोलाराम सहारण, भवानी सिंह, अख्तर, कन्हैयालाल पंवार, बसंत सांखला आदि ने काव्य रंगत-शब्द संगत की रसभरी इस काव्य धारा से सरोबार होते हुए हिन्दी के सौन्दर्य, उर्दू के मिठास एवं राजस्थानी की मठोठ से आनंदित हो गए।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ इतिहासविद् डॉ. फारूक चौहान ने बताया कि अगली नवीं कड़ी नए वर्ष के ‘जनवरी माह में सूरज’ पर केन्द्रित होगी एवं 12 कड़िया पूर्ण होने तक जो रचनाकार कम से कम आठ बार सहभागी रहेगा, उनकी रचनाएं चयन उपरान्त पुस्तक आकार में प्रकाशित प्रज्ञालय संस्थान कराएगा। कार्यक्रम में सभी का आभार आशीष रंगा ने ज्ञापित किया।