विश्व का अनूठा उत्सव है मर्यादा महोत्सव

डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल

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देश में एक ऐसा धार्मिक संगठन भी है जो प्रतिवर्ष अपनी मर्यादाओं का उत्सव व्यापक स्तर पर 161 वर्षों से निरन्तर मनाता आ रहा है। हर वर्ष माघ शुक्ल पंचमी, षष्टमी एवं सप्तमी को आयोजित होने वाला यह महोत्सव अनुशासन, सेवा और मर्यादा का अनूठा उत्सव है। इस बार यह अनूठा महोत्सव तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में गुजरात के भुज-कच्छ में मनाया जा रहा है। विश्व भर के संगठनों में अपनी उत्कृष्ट मर्यादा और सेवा व्यवस्था के कारण तेरापंथ धर्मसंघ की एक विशिष्ट पहचान है। तेरापंथ धर्मसंघ में 750 से अधिक साधु-साध्वी और लाखों श्रावक-श्राविकाएं एक गुरु के अनुशासन, निर्देशन में चलते हैं। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य द्वारा वि.सं. 1921 को राजस्थान के बालोतरा से प्रारंभ किया गया यह महोत्सव तेरापंथ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षु द्वारा लिखित मर्यादाओं पर आधारित है। 260 वर्ष पूर्व लिखी गयी यह मर्यादाएं आज भी इस धर्मसंघ का प्राण है। तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा मर्यादा पत्र की स्थापना एवं मर्यादा पत्र का वाचन किया जाता है।

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इस अनूठे पर्व के बारे में तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण कहते हैं कि यूं तो अनेक महोत्सव होते हैं पर यह मर्यादाओं का यह महोत्सव पुरी दुनियां में विशेष महोत्सव है। मर्यादा के साथ अनुशासन, कर्तव्य की बात भी जुड़ी हुई है। अनुशासन, कर्तव्य एवं मर्यादा यह एक संगठन के लिए आवश्यक होते हैं। राष्ट्र के लिए भी यह चीजें उसकी सुरक्षा चिरंजीवीता के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र हो या राजतंत्र प्रणाली कोई भी हो लक्ष्य सबका एक है कि प्रजा की व्यवस्था रहे, सेवा हो और प्रजा सुख शांति से रहे। मर्यादा, कर्तव्य और अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता विनाश को प्राप्त होता है। अनुशासन ऐसा तत्व है जो ठीक रास्ते पर चलाने वाला होता है। अनुशासन सब को सुरक्षित रखता है। यह महोत्सव भी इन्हीं तत्वों पर आधारित है। आचार्य भिक्षु ने जो मर्यादाएं लिखी वह मर्यादाएं एक प्रकार की गणछत्र है। उन्होंने कहा कि आज का दिन मुख्य रूप से सेवा से जुड़ा हुआ है। हम सभी संघबद्ध साधना कर रहे हैं। धर्मसंघ में जी रहे हैं।

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सेवा एक ऐसा तत्व है जो एक दूसरे को जोड़ने वाला होता है। जैसे धागे से मणिया जुड़ा हुआ होता हैं तो माला बन जाती हैं उसी प्रकार सेवा वह धागा है जिसमें संगठन के सभी सदस्य जुड़े हुए हैं। हमारे धर्मसंघ में मैं अनुभव करता हूं कि सभी में सेवा की अच्छी भावना है। जहां अपेक्षा होती है वहां साधु-साध्वी कोई भी हो सेवा के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे संस्कार जिस धर्मसंघ में होते हैं वह भाग्यशाली होता है। जहां पर सेवा की बात आती है वहां पर पद भी गौण हो जाता है। अग्रणी हो या कोई भी पद पर हो परंतु सेवा सबसे पहले है। वृद्ध, अस्वस्थ आदि सभी की धर्मसंघ में सेवा होती है। यह जो सेवा का संस्कार है वह पुष्ट से पुष्टतर बने ऐसा प्रयास हो। हमारे इतने बालमुनि है यह धर्मसंघ की पौध है। इन को सिखाना, संभालना उनकी भी एक सेवा है। सभी के भीतर हमेशा सेवा की भावना रहे और जहां अपेक्षा हो वहां जाने के लिए हरदम तत्पर रहें। हम दूसरों को चित्त समाधि पहुंचाने का प्रयास करे।

तेरापंथ में तीन प्रकार की सेवा के कार्य होते हैं। व्यवस्था सेवा, सापेक्ष सेवा और निष्काम सेवा। निर्जरा की भावना से जो सेवा होती है उसका महत्व है। जो सेवा करता है वह महान निर्जरा करता है। धर्मसंघ में सेवा को बहुत महत्व दिया गया है। अन्य व्यक्ति भी आज जब तेरापंथ में सेवा की व्यवस्था को देखते हैं कियहां पर अग्लान भाव से सेवा होती है तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं। संघ सब की सेवा करता है। हमारे सभी पूर्वाचार्यों ने सेवा को बहुत महत्व दिया है। दीक्षा लेते ही सेवा के संस्कार जन्म घुंटी के रूप से सभी को मिलते हैं। जहा ऐसी सेवा होती है वह संघ हमेशा यूं ही चिरजीवी बना रहता है।

इस महोत्सव के दौरान आचार्यश्री मर्यादाओं के संकल्प के साथ सेवा केंद्रों के लिए साधु-साध्वियों की नियुक्तियां भी करते है जिसके अन्तर्गत तेरापंथ धर्मसंघ में वृद्ध साधु- साध्वियों के लिए देश के विभिन्न स्थानों में सेवा केंद्र स्थापित है। सेवा कार्य के लिए साधु-साध्वियों की नियुक्तियां करते है। तेरापंथ धर्मसंघ में मर्यादा महोत्सव एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जो धर्मसंघ के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख त्योहार है। मर्यादा महोत्सव तेरापंथ धर्मसंघ के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख त्योहार है, जो उन्हें अपने धर्म और संस्कृति के बारे में लोगों को जागरूक करता है। मर्यादा महोत्सव दौरान विभिन्न धार्मिक प्रवचन आयोजित किए जाते हैं, जिनमें तेरापंथ धर्मसंघ के संस्थापक आचार्य भिक्षु की शिक्षाओं और मर्यादाओं पर चर्चा की जाती है। इस अवसर पर अनुयायियों को अपने धर्म और संस्कृति के बारे में जागरूक करना और उन्हें आचार्य भिक्षु की शिक्षाओं और मर्यादाओं का पालन करने के लिए प्रेरित करना है। इस बार यह उत्सव गुजरात के भुज में 2,3 व 4 फरवरी 2025 को मनाया जा रहा है। सचमुच! किसी भी संगठन द्वारा लम्बे समय से मर्यादाओं का उत्सव विशाल महोत्सव के रूप में मनाया जाना विशेषता को दर्शाता है।

डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल

लक्ष्मी विलास, करन्ट बालाजी काॅलोनी,
लाडनूं 341306 (राजस्थान)
मो-94131793

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