तीन पीढी के रचनाकारों ने किया काव्यपाठ


- साहित्य परिषद बीकानेर इकाई का नवाचार
बीकानेर 28 फरवरी। साहित्य परिषद द्वारा आयोजित मासिक कार्यक्रम में तीन रचनाकारों ने अपनी रचनाओं की अभिव्यक्ति साझा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्य परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.अख़िलानन्द पाठक ने कहा कि साहित्य का कार्य केवल मनोरंजन नहीं वरन हमारी चेतना को जागृत करना है, जिस देश की चेतना जागृत होती है वह समाज सभ्य और श्रेष्ठ समाज कहलाता है।अपनी व्यक्तिगत पीड़ा और अनुभूति को समष्टिगत बनाना ही साहित्यकार और साहित्य का श्रेष्ठ उद्देश्य माना जाता है । साहित्य परिषद बीकानेर इकाई की अध्यक्ष डॉ बसन्ती हर्ष ने कहा कि साहित्य परिषद विभिन्न विधाओं में सृजनरत रचनाकारों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शन हेतु शीघ्र ही कार्यक्रम आरम्भ करेगी।



स्वागत उद्बोधन देते हुए राजाराम स्वर्णकार ने साहित्य परिषद बीकानेर इकाई द्वारा आगामी कार्यक्रमों को संक्षिप्त में रेखांकित किया। कवि शिवशंकर शर्मा ने अपने शब्दों में गुरु की महिमा बताते हुए कहा कि गुरु वही श्रेष्ठतम है। जिसकी शिक्षा से शिष्य चरित्रवान बन जाता है। अपनी दूसरी रचना में बताया कि “था कभी सोने की चिड़िया” ये भारत देश हमारा , सारे ही विश्व पटल पर दबदबा कायम था हमारा। नारी के सम्बंध में बताते हुए कहा कि हर रूप स्वरूप में रची बसी है। नारी हर देवी शक्ति नाम के विभिन्न रूपों में है नारी। मत सोच कभी , तेरा सपना पूरा क्यों नहीं होता। हौसलों वालों का इरादा कभी अधूरा नहीं होता। कल मिले परसों मिले , अभी अभी तो मिले थे हम। होती नहीं तसल्ली , जब तक न यार से मिल लेते हम। सुनाकर सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया।



गीतकार जुगलकिशोर पुरोहित ने ” है मां शारदे सुनो मेरी हम तो तेरी शरण में आए हैं , मां वरदान गीत का देना मेरे स्वर को भजन बना देना , हे मात .पिता तेरी गोद में जीना सीखा है। तुम्हीं से हैं संसार। बृज में होली रहे रंग गुलाल उड़े , होली खेलत है कृष्ण कन्हैया की सस्वर प्रस्तुति देकर तालियां बटोरी। पम्मी कोचर ने कर्तव्यबोध की रचनाएं सुनाई .सब कुछ था मेरे पास पर मै अभाव मै ही जीती रही। इतना घमंड क्यों , जो अपने पंखो के बल पर आसमान में उड़ान भर आये , एक मां हूँ मै अपनी बेटी के लिए पूरा जहाँ हूँ मैं , चारो और घनघोर अंधेरा है अपने हिस्से की कुछ धूप बाँट आएं सुनाकर तालियां बटोरी। कार्यक्रम में मोहनलाल जांगिड़ , असद अली , शकूर सिसोदिया , रमेशचन्द्र महर्षि , कमलकिशोर पारीक, हिमांशु आचार्य, डॉ.जगदीशदान बारठ , चित्रकार योगेन्द्रकुमार पुरोहित , शिव दाधीच साक्षी बनें। कार्यक्रम का संचालन राजाराम स्वर्णकार ने किया।