अजित फाउण्डेशन द्वारा त्रिभाषा काव्य पाठ का आयोजन

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बीकानेर, 9 मार्च। अजित फाउण्डेशन द्वारा हिन्दी, राजस्थानी एवं उर्दू भाषा में काव्य पाठ का आयोजन किया गया। हिन्दी भाषा में अपनी रचनाएं प्रस्तुत करती हुई डॉ. रेणुका व्यास ‘नीलम’ ने साहित्य के सिरमोर अज्ञेय पर अपनी सद्य रचना ‘‘नहीं हैं अज्ञेय’’ प्रस्तुत की तथा प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण की आरे इशारा करते हुए ‘‘कटता है जब भी हरा पेड़’’ रचना का वाचन कर समां बांध दिया। उन्होंने अपनी लम्बी कविता महाभारत की महिला पात्र पर केन्द्रित ‘‘गांधारी’’ का सुनाकर महिला की दुविधा की ओर इशारा किया।

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उर्दू में अपनी नज्में प्रस्तुत करती हुई शारदा भारद्वारा ने साम्प्रदायिक सौहार्द, समभाव पर अपनी नम्ज ‘‘खुदा हर चेहरे पर मासूमियत….’’ प्रस्तुत करते हुए अपनी रचनाओं का वाचन आरम्भ किया। भारद्वाज ने सरस्वती वंदना को उर्दू भाषा में रचकर उर्दू साहित्य में अपनी नवीनधर्मिता को सबके सामने रखा।

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राजस्थानी भाषा में अपनी कविताएं प्रस्तुत करती हुई डॉ. कृष्णा आचार्य ने ‘‘माता म्हारी सुरस्त है, मांड मांडणा आखर झोली भर दे’’ रचना सुनाकर सबका मन मोह लिया। आपने ‘‘बेटी’’ पर अपनी सद्य रचना ‘‘काळजे री कोर बेटिया’’ कविता सुनाकर बेटियों के सम्मान को बहुत अधिक गहरा कर दिया। होळी एवं कुदरत के मिजाज को केन्द्र में रखते हुए आपने ‘‘प्रीत रा परिन्दा गासी प्रीत रा गीतळडा’’ गीत सुनाकर सबका मन मोह लिया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार इन्द्रा व्यास ने अपनी कविता ‘‘मशहूर होने की ख्वाहिश नहीं..’’ रचना एवं सद्य रचित मुक्तक प्रस्तुत किए। वहीं किशोर साहित्यकार आनन्द छंगाणी ने भाई-बहन के रिश्ते पर अपना गीत ‘‘अब तो लेवण आ रे वीरा…’’ सुनाया। यह गीत लोक देवता रामदेव जी एवं उनकी बहन सुगणा पर केन्द्रित था।कार्यक्रम के आरम्भ में संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने संस्था की गतिविधियों के बारे में बताते हुए कहा कि आज का कार्यक्रम इस मायने में अनूठा है कि इसमें तीनो महिला रचनाकार महिलाएं है अपने विषय में निष्णात है।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. अजय जोशी ने धन्यवाद एवं आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि सभी कवियत्रियों ने अपने रचना धर्म के साथ न्याय करते हुए श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया जोकि बहुत ही उम्दा था।
कार्यक्रम में राजेन्द्र जोशी , राजाराम स्वर्णकार, रमेश भारद्वाज, मोहम्म्द फारूक चौहान, बाबू लाल छंगाणी, डॉ. अजय जोशी, आनन्द छंगाणी आदि उपस्थित रहे।

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