शासन माता की पुण्य तिथि व होली का सामूहिक आयोजन हुआ

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  • शासनमाता कनक प्रभाजी एक उच्चकोटी की आत्म साधिका थी

गंगाशहर, 15 मार्च। उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमलकुमार के पावन सान्निध्य में बोथरा भवन में होली का कार्यक्रम आयोजित किया गया व शासनमाता कनकप्रभाजी की पुण्यतिथि का भी कार्यक्रम हुआ। मुनिश्री में अपने उद्‌गार व्यक्त करते हुए कहा कि होलिका पर अग्नी देवी तुष्ट थी, उसको अग्नि देवी का वरदान मिला हुआ था कि “मैं कभी तुम्हें नहीं जलाउंगी”। होलिका अपने मद में मस्त थी कि इतना बड़ा वरदान मुझे मिला है परंतु उसका चित नियंत्रित नहीं था। उसका ईलोजी के साथ मोह का तार जुड़ चुका था। परंतु संपर्क नहीं हो सका, यह चर्चा का विषय बन गया। होलिका का भाई हिरण्य कस्यप अपने पुत्र प्रहलाद की चंचलता से दुखी था उसने होलिका से कहा कि इसे तूंअग्नि में जला दे, फिर मैं तेरी शादी ईलोजी से करवा दूंगा। होलिका भतीजे को लेकर अग्नी में प्रविष्ट हुई उसकी इस दुर्नीति से देवी अप्रसन्न हो गई जिसके चलते प्रह‌लाद बच गया , होलिका जल गई। ईलोजी को जब पता चला कि होलिका जल गई। ईलोजी बेभान होकर अपने कपड़ों को फाड़कर उस राख से अपने शरीर को भस्मीभूत कर लिया। आज उसी उपलक्ष्य में लोग होली में बेभान होकर रंग गुलाल से पागल से नजर आते हैं।

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मुनिश्री ने उद्बोधन देते हुए कहा कि शासनमाता कनक प्रभाजी एक उच्चकोटी की आत्म साधिका थी। तीन तीन आचार्यों का गहरा विश्वास प्राप्त किया।अपने लेखन, वक्तृत्व, अनुशासनशीलता से सबको अपना बना लिया था। अपनी पापभीरुता व कर्तव्यपरायणता से साध्वी ही नहीं साध्वी प्रमुखा , महाश्रमणी, संघ महानिदेशिका, असाधरण साध्वीप्रमुखा शासनमाता के ख़िताब को प्राप्त किया। इतने इतने अलंकरण प्राप्त होने पर भी उन्हें अहं नहीं था। सबके प्राथ विनम्र व्यवहार था। मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि साध्वीप्रमुखा पद पर आसीन हुई वह दृश्य भी देखने का अवसर मिला तो अंतिम श्वास के समय साक्षी बनने का अवसर भी प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में मुनि श्रेयांस कुमार जी, मुनि विमल विहारी जी, मुनि नमि कुमारजी के अलावा जैन लूणकरण छाजेड़, जतनलाल , दीपक आंचलिया तथा महिला मंडल की बहिनों ने भी अपने भावपूर्ण विचार रहने। रात्रिकालीन भक्ति संध्या में भंवरलाल डाकलिया , मनोज छाजेड़, पवन छाजेड़ , चैनरूप , राजेन्द्र बोथरा, तोलाराम श्यामसुखा , मोहन भंसाली आदि ने अपने मधुर गीतों और वक्तव्य से साध्वीप्रमुखा जी के जीवन का चित्रण किया। संतों व श्रावकों के सहगान ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस अवसर पर तपस्या , सामायिक,मौन व क्षमा की पंचरंगी होने से साधना का सुन्दर क्रम बन गया । लोग रंग चंग से बच गये।

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