आचार्य भिक्षु ने सत्य की प्राप्ति हेतु अभिनिष्क्रमण किया

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गंगाशहर , 6 मई। आचार्य भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस पर मुनि श्री कमल कुमार जी ने प्रवचन में उपस्थित जन मानस को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु सिद्ध पुरुष थे, उन्होंने व्यक्तियों को महत्व नहीं दिया सिद्धांतों को महत्व दिया। सिद्धांतों के साथ सत्य के लिए विक्रम संवत 1817 चैत्र सुदी नवमी को अभिनिष्क्रमण किया। शुद्ध साधु जीवन पालन करना ही उनका मुख्य लक्ष्य था। उनका संकल्प बहुत मजबूत था। हमारे दिल दिमाग में आचार्य भिक्षु के सिद्धांत प्रत्येक क्षण बने रहे और हमारा भी कर्तव्य है कि आचार्य भिक्षु के दर्शन को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करते रहे। मुनिश्री ने कहा कि अहिंसा- संयम तप आचार्य भिक्षु के दर्शन क्रांति के मुख्य आधार थे। आज भी इन सिद्धांतों के बल पर धर्म संघ आगे बढ़ रहा है।आचार्य भिक्षु के संघर्ष द्रोपदी के चीर की तरह थे । फिर भी आचार्य भिक्षु ने समता से सहन किया । त्याग तपस्या और स्वाध्याय के माध्यम से सारे संघर्षों का सामना किया l और भगवान महावीर की वाणी को सरल भाषा में आम जनता को प्रतिबोध दिया l आचार्य भिक्षु के पास धर्म और धर्म की कसौटी थी- संयम और असंयम। जो कार्य संयम की कसौटी पर खरा उतरे वह धर्म और खरा ना उतरे वह अधर्म। संयम धर्म है असंयम अधर्म।

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आचार्य भिक्षु

मुनि श्री श्रेयांश कुमार जी ने मुक्तकों के माध्यम से अपनी भावांजलि व्यक्त की l मुनि श्रेयांश कुमार जी ने कहा कि आज के दिन मुनि श्री विमल विहारी जी को संयम जीवन के 32 वर्ष पूरे हो गए। मुनि श्री प्रबोध कुमार जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु सत्य के पुजारी थे। सत्य का अन्वेषण करना उनके जीवन का परम लक्ष्य था। सत्य की खोज में आचार्य भिक्षु ने अनेक संघर्षों का सामना किया। बचपन, युवावस्था और साधु जीवन तीनों ही काल में सत्य के साथ रहे । कभी भी असत्य के साथ नहीं रहे । उनका मुख्य घोष था आत्मा के कारज सारसा मर पूरा देसा। विघ्न हरण मंगल करण स्वाम भिक्षु रो नाम, गुण ओलख सुमिरन किया सरे अचिंत्या काम। अथार्त हमें इस मंत्र के रहस्य को पकड़ने की जरूरत है। स्वामी जी गुणों के भंडार थे। हमें आचार्य भिक्षु के गुणों की आराधना करनी चाहिए।

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मुनि श्री विमल विहारी जी ने कहा कि आज से 265 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने बगड़ी से किसी विशेष प्रयोजन से प्रस्थान किया, जिसे अभिनिष्क्रमण कहा जाता है l उन्होंने अपनी एक घटना को बताते हुए कहा कि मेरे 32 वर्ष पूर्व बहुत सिर दर्द होता था, आचार्य तुलसी ने कहा कि दीक्षा ले लो सब ठीक हो जाएगा और आज मुझे 32 साल हो गए और मुझे मालूम ही नहीं की सर दर्द क्या होता है l दीक्षा के बाद आज तक सर दर्द नहीं हुआ l आचार्य भिक्षु ने बहुत कष्ट सहन किए, उन्हे पूरा आहार नहीं मिलता था, रहने को जगह नहीं मिलती थीl साधु जीवन में उन्होंने इतना कष्ट उठाया फिर भी वह हमेशा सत्य की लौ को जगाते रहे। मुनि श्री मुकेश कुमार जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु की बुद्धि विलक्षण व तेज थी। वे सरल तरीके से जवाब देते थे । मौत से सबको डर लगता है, हमें किसी पर प्रहार करने का करने का अधिकार नहीं है। छहों ही प्रकार के जीवों को अपनी आत्मा के समान मानो।

मुनि श्री नमी कुमार जी ने कहा कि आज का दिन तेरापंथ धर्म संघ के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है l आज के दिन के कारण ही हमें तेरापंथ का नंदनवन मिला l आचार्य भिक्षु ने सिद्धांतों और मर्यादाओं के लिए नया पथ चुना । पूरे जैन धर्म में तेरापंथ धर्म संघ की एक अलग पहचान है। एक गुरु एक विधान, मर्यादाएं सेवा भावना, साधु संतों का जीवन कितना आनंदमय बीत रहा है ये सब आचार्य भिक्षु की व्यवस्थाओं की दृष्टि से ही संभव हो सका है ।

इस अवसर पर आसकरण पारख, पवन छाजेड़, कमल भंसाली, दीपक आंचलिया,भंवर लाल , मनीष , देवेन्द्र ,ललित , श्रीमती मधु छाजेड़,श्रीमती रेणु बाफना, श्रीमती उषा देवी डाकलिया, कनक देवी गोलछा सहित 21 से अधिक वक्ताओं ने भाषण, गीतिकाओ, कविताओं, मुक्तकों के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी।

स्व. श्रीमती भंवरी देवी नाहर

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