तेरापंथ भवन में अक्षय तृतीया को हुए 21 पारणे

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गंगाशहर, 30 अप्रैल. आज प्रवचन के कार्यक्रम में आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी व मुनि श्री श्रेयांस कुमार जी एवं शासन श्री साध्वी श्री मंजू प्रभा जी, शासन श्री साध्वी बसंत प्रभा जी,शासन श्री साध्वी श्री शशि रेखा जी, शासन श्री साध्वी श्री कुन्थु श्री जी, साध्वी श्री विशद प्रज्ञा जी, साध्वी श्री जिन बाला जी, साध्वी श्री लब्धि यशा जी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया कार्यक्रम आयोजित हुआ।
इस अवसर पर उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी ने अपने उद्बोधन में भगवान ऋषभदेव जी का वर्णन करते हुए कहा कि उनका जन्म अवसर्पिणी के तीसरे आरे के अन्त में हुआ। उस समय यौगलिक युग था। उस समय नाभी- मरूदेवा के पुत्र ऋषभ कुमार प्रथम राजा बने। ऋषभ का राज्याभिषेक हुआ राज्य संचालन के लिए नगर बसाया, जिसका नाम विनीता अयोध्या नगरी रखा। राजा ऋषभ ने राज कार्यों के कुशल संचालन के लिए तरह-तरह की व्यवस्था की। आसी, मासी, कृषि व हकार, मकार, धिक्कार नीति लागू की। साम दाम भेद और दंड नीति का प्रवर्तन किया। कृषि कार्यों का शुभारंभ , खाद्य समस्या का समाधान राजा ऋषभ ने किया। कृषि कार्यों के साथ विवाह पद्धति, शिल्प कला और व्यवसाय, सामाजिक परंपराओं का सूत्रपात किया। धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया। जीवन के अंतिम भाग में वह राज्य त्याग कर मुनि बने ,मोक्ष धर्म का प्रवर्तन हुआ। जब ऋषभदेव राजा थे उनकी प्रेरणा से एक बैल के मुख पर छींकी बांधी गई जिससे 12 घंटे से अधिक तक वे बैल खाने पीने से वंचित रह गए। उससे उन्हें अंतराय कर्म का बंधन हो गया। जब अंतराय कर्म का उदय हुआ तो मुनि ऋषभ को 13 महीना 10 दिन तक आहार पानी नहीं मिला। वैशाख सुदी तीज अक्षय तृतीया के दिन पौत्र श्रेयांश ने ऋषभदेव को 108 घड़ो के इक्षु रस से पारणा करवाया। जिनका मनोबल मजबूत होता है वह अपना इतिहास बना लेते हैं। मुनि श्री ने कहा कि वर्षीतप से बहुत लाभ होते है। आत्मा के लिए पूरा समय मिल जाता है। सामायिक ,संवर, त्याग प्रत्याख्यान के माध्यम से बहुत अधिक कर्म निर्जरा कर सकते हैं। हमें वर्षीतप करने का प्रयास करना चाहिए । प्रयत्न करने से सिद्धि मिलती है। छोटी-छोटी बातों में निराश हताश मत बनो। श्रमण संस्कृति पुरुषार्थ की संस्कृति है सभी को श्रम करने की प्रेरणा दी।
शासन श्री साध्वी शशि रेखा जी ने कहा कि गुरुदेव की शक्ति से पुरे बीकानेर चोखले में उत्साह और प्रसन्नता का माहौल है। तेरापंथ धर्म संघ अनुशासित धर्म संघ है जिसका असर प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और व्यवहार में होता है।
साध्वी श्री विशद प्रज्ञा जी ने कहा कि भारत में सात वार होते हैं और 13 त्यौहार आते हैं यह भारतीय संस्कृति की विशेषता है। अक्षय तृतीया एक ऐसा त्यौहार है जो त्याग और तपस्या का प्रतीक बन गया है। इस दिन साधु ,साध्वी एवं श्रावक श्राविका चारों तीर्थ वर्षीतप का पारणा करते हैं। और फिर से वर्षीतप करने का संकल्प लेते हैं। आचार्य तुलसी ने वर्षीतप पारणा के आयोजन का रूप दिया। जिसने जन जन को वर्षीतप करने की सामुहिक प्रेरणा मिलती है।
इस अवसर पर साध्वी श्री लब्धि यशा जी ने कहा कि त्याग में बहुत शक्ति होती है। वर्षीतप तेरह महीनों से अधिक की साधना है। इस साधना से हम हमारे अन्तराय कर्मो का क्षय कर सकते है।
साध्वी श्री संकल्प श्री जी ने इस अवसर पर कहा कि अक्षय तृतीया हमे अन्तराय कर्मो से बचने की प्रेरणा देती है। जो भी हम जाने अनजाने में कर्मो का बन्धन हो जाता है उसे वर्षीतप की साधना से दूर किया जा सकता है।
साध्वी श्री मृदुला कुमारी जी ने कहा कि आज भगवान ऋषभ का दिन है। बैसाख सुदी तीज अक्षुण्ण है। आज तक कभी भी इस तिथि का क्षरण नही हुआ है।अक्षय तृतीया कभी टुटती नही है भगवन ऋषभ ने इसी दिन अपने अन्तराय कर्मो के बन्धन को तोड़ा था। तेरह महीनों से अधिक दिनों की तपस्या के बाद पारणा हुआ था। इसलिए यह दिन अक्षय है। तपस्या में ताकत होती है। सनातन धर्म में कहा जाता है कि भगवान ब्रह्म जी ने सृष्टि की रचना से पूर्व तपस्या की। जब तक द्वारका नगरी में तपस्या का क्रम चलता रहा तब तक द्वारका नगरी को कोई जला नही पाया। भगवान ऋषभ ने तपस्या से मोक्ष का वरण किया। भगवान महावीर स्वामी भी तपस्या से तीर्थंकर महावीर बने।
मुनिश्री श्रेयांस कुमार जी, मुनिश्री मुकेश कुमार जी ने गीत व साध्वी श्री दीप माला जी, साध्वी श्री गौरव प्रभा जी, साध्वी श्री करूणा प्रभा जी ने अपने विचार अभिव्यक्त किये। एवं भगवान ऋषभ को भावांजली अर्पित की।
आज वर्षीतप पारणा के महोत्सव में उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी ने 46 वे, मुनि श्री मुकेश कुमार जी ने प्रथम, साध्वी श्री मृदुला कुमारी जी ने 20 वां, साध्वी श्री गौरव प्रभा जी ने 9 वां, साध्वी श्री दीप माला जी ने दूसरा वर्षीतप का पारणा किया।
98 वर्षीय गोरा देवी सेठिया ने 38 वां वर्षीतप का पारणा किया। श्रीमती पांची देवी छाजेड़ ने 34 वां, श्रीमती कंचन देवी रांका ने 18 वां, श्रीमती विनोद देवी सुराणा ने 16 वां , श्रीमती सुंदर देवी सामसुखा ने 14 वां, श्रीमती राजू देवी बेद ने 14वां, श्रीमती पिंकी सुराणा ने 8वां, श्रीमती कुसुम चोपड़ा ने 6वां, श्रीमान जतन लाल दुगड़ ने 4वां, श्रीमती इंदु देवी चोपड़ा ने 3 वां, श्रीमती कांता देवी बोथरा ने 3 वां, श्रीमती रेखा देवी सेठिया ने 3 वां, श्रीमती लक्ष्मी देवी रांका ने 2वां, श्रीमती अभिलाषा बोथरा ने 1 वां, श्रीमती सरला देवी गोलछा ने 1वां, श्रीमती सरोज देवी दुगड़ ने 1 वां वर्षीतप का पारणा किया। कुल 21 पारणे हुए।
आचार्य श्री शान्ति प्रतिष्ठान से किशन बैद, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा से जतन लाल संचेती, महिला मंडल से संजू देवी लालाणी, अणुव्रत समिति से मनीष बाफना, तेरापंथ न्यास से जतन जी दूगड़, ने वर्षीतप पारणा के पावन अवसर पर सभी तपस्वी जनों के प्रति मंगलकामना व्यक्त की तपस्या की अनुमोदना की तथा तप के मार्ग में ओर अधिक आगे बढ़ने की कामना की।
तेरापंथी सभा गंगाशहर ने सभी वर्षीतप करने वाले श्रावक श्राविकाओं का साहित्य पताका और अभिनंदन पत्र से तप की अनुमोदना की गई।

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