हिंदी पत्रकारिता दिवस पर संवाद कार्यक्रम: डॉ. आचार्य बोले — “अगर पत्रकार भाषा से चूके, तो भरोसे से भी चूकेंगे”

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बीकानेर, 30 मई। हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर बीकानेर एडिटर एसोसिएशन ऑफ न्यूज पोर्टल्स और बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संवाद कार्यक्रम में प्रख्यात साहित्यकार और चिंतक डॉ. नंदकिशोर आचार्य ने पत्रकारिता की भूमिका, जिम्मेदारियों और नैतिकता पर गहन विचार साझा किए। कार्यक्रम का विषय था “हमारा समय और हिंदी पत्रकारिता”, जिसकी अध्यक्षता डॉ. आचार्य ने की।अपने उद्बोधन में उन्होंने स्पष्ट कहा, “पत्रकारिता एक पेशा है, लेकिन इसकी सार्थकता तभी है जब यह पेशेवर नैतिकता के साथ जुड़ी हो।” उन्होंने पत्रकारों को चेताया कि यदि वे भाषा के प्रति असावधान रहेंगे, तो समाज का भरोसा भी खो देंगे। डॉ. आचार्य ने पत्रकारिता को केवल मिशन कहने की बजाय उसे जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से जुड़ा पेशा बताया। उन्होंने कहा कि जैसे चिकित्सा और शिक्षा में नैतिकता ज़रूरी है, वैसे ही पत्रकारिता में भी यह अनिवार्य है। “सच को कहने का साहस और भाषा की मर्यादा—इन दोनों के बिना पत्रकारिता केवल दिखावा बनकर रह जाएगी,”

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उन्होंने कहा भाषा की अशुद्धता बन सकती है कानूनी खतरा
डॉ. आचार्य ने पत्रकारों को भाषा की शुद्धता के प्रति जागरूक किया और बताया कि आज कई पत्रकार अज्ञानवश ऐसे शब्दों का प्रयोग कर बैठते हैं जो न केवल अर्थ का अनर्थ करते हैं, बल्कि कानूनी दृष्टि से भी गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। उन्होंने ‘आरोपी’ बनाम ‘आरोपित’, ‘मुलज़िम’ बनाम ‘मुलज़ाम’ जैसे शब्दों का उदाहरण देकर पत्रकारों को सावधानी बरतने की सलाह दी।

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संवाद नहीं, सजगता है पत्रकारिता का ध्येय
डॉ. आचार्य ने कहा कि पत्रकारिता का उद्देश्य सिर्फ सूचना देना नहीं, बल्कि समाज को सजग, संवेदनशील और सचेत बनाना है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को ज्ञान और विवेक के साथ काम करना चाहिए। “अगर ज्ञान नहीं है, तो पहले उसे अर्जित करें। मीडिया कोई शोर मचाने का औज़ार नहीं, बल्कि दिशा देने का साधन है,” उन्होंने कहा।

मंच पर गूंजीं बेबाक बातें
डॉ. आचार्य ने अपने अनुभव साझा करते हुए एक प्रसंग का उल्लेख किया जब उन्होंने मंच से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को निर्भीकता से जवाब दिया था। यह प्रसंग उन्होंने पत्रकारिता की साहसिकता और उत्तरदायित्व के प्रतीक के रूप में रखा।

आत्ममंथन की जरूरत- कार्यक्रम का समापन करते हुए उन्होंने पत्रकारों को आत्मचिंतन की सलाह दी—
“आप जो कर रहे हैं, वह आपको क्या बना रहा है?” उन्होंने कहा कि हर पेशेवर को यह प्रश्न स्वयं से पूछना चाहिए। पत्रकार यदि समाज को दिशा देने का दावा करते हैं, तो उन्हें पहले अपनी भाषा, विचार और जिम्मेदारी को दिशा देनी होगी।

पत्रकारिता बने मिशन, न कि उपकरण” — हेम शर्मा का ओजस्वी संदेश

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्री हेम शर्मा का भावपूर्ण और चिंतनशील वक्तव्य पत्रकारिता जगत के लिए मार्गदर्शक बनकर उभरा। उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से पत्रकारिता के बदलते स्वरूप पर गहरी चिंता व्यक्त की और पत्रकारों से आह्वान किया कि वे पत्रकारिता को केवल एक औजार या पेशा न समझें, बल्कि उसे राष्ट्र निर्माण के मिशन के रूप में अपनाएं।

पत्रकारिता की आत्मा खो रही है
हेम शर्मा ने दो टूक कहा कि आज पत्रकारों को यह सावधानी बरतनी होगी कि वे खुद को मात्र ‘उपकरण’ न बनने दें। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, और इसकी गरिमा बनाए रखना पत्रकार समुदाय का पुनीत कर्तव्य है। उन्होंने पत्रकारिता के नाम पर हो रही अव्यवस्थाओं और स्वार्थ साधन के प्रयासों पर भी तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ लोग इस पेशे को ‘गैर-पत्रकारिता’ का प्रतीक बना चुके हैं।

इतिहास गूगल के हवाले, पत्रकारिता की आत्मा लुप्त
श्री शर्मा ने पत्रकारिता के इतिहास और मूल्यों को रेखांकित करते हुए कहा कि आज पत्रकारिता का इतिहास तक गूगल के हवाले हो चुका है। उन्होंने याद दिलाया कि भारत में पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल गजट से हुई थी और स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारों ने जेल जाकर बलिदान दिए थे। उन्होंने अफसोस जताया कि अब ऐसे त्याग के उदाहरण दुर्लभ हो गए हैं।

‘पैकेजिंग पत्रकारिता’ से लोकतंत्र को खतरा
उन्होंने 1990 के दशक को पत्रकारिता के पतन की शुरुआत बताया, जब “पैकेजिंग पत्रकारिता” का चलन शुरू हुआ और खबरों के साथ सौदेबाज़ी होने लगी। उन्होंने कहा, “यह वह दौर था जब पत्रकार सत्ता को दिशा नहीं देते थे, बल्कि सत्ता के पिछलग्गू बनते चले गए।” उन्होंने डॉ. नंदकिशोर आचार्य जैसे चिंतकों को आज की पत्रकारिता का प्रकाश स्तंभ बताते हुए उनके विचारों की महत्ता को रेखांकित किया।

युवाओं के नाम संदेश
श्री शर्मा ने युवाओं से आग्रह किया कि पत्रकारिता को केवल करियर या रोजगार का माध्यम न समझें। उन्होंने कहा, “पत्रकार वही बने, जिसके पास विचार हो, विवेक हो और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का भाव हो। पत्रकारिता तभी सार्थक होगी, जब वह लोकतंत्र को मजबूत करने का माध्यम बनेगी, न कि उसके लिए खतरा।”

सम्मान व संवाद: विचारों से भरा मंच
इस अवसर पर बीकानेर प्रेस क्लब के नव निर्वाचित पदाधिकारियों—अध्यक्ष कुशाल सिंह मेड़तिया, महासचिव विशाल स्वामी, कोषाध्यक्ष गिरिराज भादानी, व सदस्य मुकुंद खंडेलवाल—का शॉल, साफा और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया गया। आनंद आचार्य ने संवाद सत्र का संचालन किया, जिसमें सुमित शर्मा, बुलाकी शर्मा, सुधा आचार्य, शिव कुमार सोनी और बलदेव रंगा सहित कई वक्ताओं ने पत्रकारिता की ज्वलंत चुनौतियों और संभावनाओं पर विचार प्रस्तुत किए। गिरिराज मोहता ने कार्यक्रम का आभार प्रकट किया।

आयोजन में रही विशिष्ट सहभागिता
इस विचारोत्तेजक आयोजन में बुलाकी शर्मा, नीरज दैया, मुकेश व्यास, जी.के. नागपाल, महेश शर्मा, योगेंद्र पुरोहित, उमेश आचार्य, महेंद्र जोशी, अर्चना, मोनिका रघुवंशी, सुभाष पुरोहित, तलत रियाज सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने सहभागिता की। कार्यक्रम के सफल संचालन में समिति निदेशक ओमप्रकाश सुथार, सचिव विनय थानवी और एसोसिएशन टीम के प्रकाश सामसुखा, योगेश खत्री, अजीज भुट्टा, बलजीत गिल, उमेश पुरोहित, राजेंद्र छंगाणी, विजय कपूर, सुमेश्ता बिश्नोई सहित अन्य सदस्यों की अहम भूमिका रही। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार हेम शर्मा मुख्य अतिथि और समिति की उपाध्यक्ष विभा बंसल विशिष्ट अतिथि रहीं। आयोजन का संयोजन एसोसिएशन अध्यक्ष आनंद आचार्य ने किया।

 

 

 

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