राहुल गांधी बनाम चुनाव आयोग, महाराष्ट्र चुनाव में गड़बड़ी के आरोपों पर कांग्रेस ने उठाई पारदर्शिता की मांग, मांगा वीडियो फुटेज और वोटर डेटा

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नई दिल्ली, 26 जून। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर कथित गड़बड़ियों के आरोपों पर कांग्रेस और चुनाव आयोग आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल उठाने के बाद अब पार्टी ने एक नई रणनीति के तहत आयोग से विस्तृत डेटा की मांग की है।

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चुनाव आयोग द्वारा राहुल गांधी को बैठक के लिए आमंत्रित किए जाने के जवाब में कांग्रेस ने एक पत्र लिखकर महाराष्ट्र की मशीन-रीडेबल डिजिटल वोटर लिस्ट और महाराष्ट्र व हरियाणा के मतदान दिवस के सीसीटीवी फुटेज की मांग की है। पार्टी का कहना है कि ये डेटा मिलने के बाद ही वह चुनाव आयोग से मिलकर अपना विश्लेषण प्रस्तुत करेगी।

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कांग्रेस की मांग: पारदर्शिता और जवाबदेही
कांग्रेस द्वारा भेजे गए पत्र में लिखा गया है:

“हम अनुरोध करते हैं कि इस पत्र की तारीख से एक सप्ताह के भीतर महाराष्ट्र की मतदाता सूची की मशीन-रीडेबल, डिजिटल कॉपी और महाराष्ट्र तथा हरियाणा के मतदान दिवस के वीडियो फुटेज हमें प्रदान किए जाएं। यह एक लंबे समय से लंबित अनुरोध है, जिसे चुनाव आयोग आसानी से पूरा कर सकता है।”

पार्टी के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने भी इस मांग को दोहराते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:

 

“चुनाव आयोग के पत्र का कांग्रेस का जवाब — पारदर्शिता की मांग, डेटा के आधार पर संवाद की पहल।”

राहुल गांधी का आरोप: “यह वोट चोरी है”
इस पूरे विवाद की शुरुआत राहुल गांधी के उस बयान से हुई जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस के निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूची में पांच महीनों में 8% की असामान्य वृद्धि को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने दावा किया कि कुछ बूथों पर 20-50% तक वृद्धि दर्ज हुई और अज्ञात व्यक्तियों ने वोटिंग की। उन्होंने इसे “वोट चोरी” करार दिया।

गांधी ने कहा:

“यह अलग-अलग गड़बड़ियां नहीं हैं, यह एक संगठित वोट चोरी है। और चुनाव आयोग? या तो चुप है या सहभागी।”

उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग देशभर में हाल ही में हुए चुनावों की डिजिटल, मशीन-रीडेबल समेकित मतदाता सूचियों को सार्वजनिक करे।

चुनाव आयोग की भूमिका पर उठे सवाल
राहुल गांधी और कांग्रेस की यह रणनीति सीधे चुनाव आयोग की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाती है। यदि आयोग कांग्रेस की मांगों को नजरअंदाज करता है, तो विपक्ष को और अधिक राजनीतिक हथियार मिल सकते हैं।

राजनीतिक मायने

यह विवाद सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है — यह देशभर में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता, डेटा की सार्वजनिक उपलब्धता, और राजनीतिक दलों की जवाबदेही जैसे बड़े मुद्दों को उजागर करता है। आगामी चुनावों में यह मुद्दा विपक्ष की रणनीति का प्रमुख हिस्सा बन सकता है।

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