आचार्य बद्रीप्रसाद साकरिया जयंती पर संगोष्ठी आयोजित, विद्वानों ने किया साहित्यिक योगदान का स्मरण

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बीकानेर, 26 जून। रोटरी राजस्थानी शोध संस्थान पुस्तकालय परिसर में आज राजस्थानी भाषा के प्रख्यात साहित्यकार आचार्य बद्रीप्रसाद साकरिया की 129वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर साहित्य, भाषा और समाज सुधार के क्षेत्र में उनके अप्रतिम योगदान को याद करते हुए वक्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्य अतिथि डॉ. मदन सैनी ने आचार्य साकरिया को एक तपस्वी साहित्यकार बताया और कहा कि वे विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मातृभाषा राजस्थानी के उत्थान को समर्पित कर दिया। डॉ. सैनी ने अपने शोध ‘राजस्थानी में राम काव्य’ पर काम करते हुए साकरिया जी के साथ बिताए गए संस्मरण भी साझा किए।

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डॉ. कृष्णलाल बिश्नोई ने साकरिया जी के बीकानेर प्रवास को अपनी साहित्यिक यात्रा का स्वर्णकाल बताया और कहा कि उन्होंने राजस्थान भारती के संपादन से लेकर हरिरस, राजस्थानी शब्दकोश और टैस्सीटोरी पर भी गहन कार्य किया। राजेन्द्र जोशी ने कहा कि राजस्थानी के दुर्लभ शब्दों को साकरिया जैसे साहित्य साधक ही जनता तक पहुँचा सकते हैं। वे बहुविधा में पारंगत थे और शायद ही कोई रस या विधा हो, जिसमें उन्होंने कार्य न किया हो।

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डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि आचार्य साकरिया न केवल शब्दों के साधक थे, बल्कि समाज सुधारक के रूप में भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है। हिंदी उपन्यासों में आंचलिकता की परंपरा को मजबूत करने का श्रेय भी उन्हें दिया जाना चाहिए। डॉ. नमामी शंकर ने साकरिया जी को “प्रेरक मौन साधक” की संज्ञा देते हुए कहा कि उनका साहित्यिक योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा। विशेष अतिथि एवं रोटरी क्लब के कोषाध्यक्ष मनमोहन कल्याणी ने बताया कि बीकानेर प्रवास के दौरान आचार्य साकरिया ने अपना निजी पुस्तकालय रोटरी क्लब को भेंट कर शोधार्थियों को एक अनमोल धरोहर सौंप दी। इस पुस्तकालय के माध्यम से उनके समग्र साहित्य तक पहुंच संभव हो पाई है।

संगोष्ठी का संचालन करते हुए पृथ्वीराज रतनू ने कहा कि साकरिया जी राजस्थानी के सच्चे हिमायती और साहित्य की विभिन्न विधाओं के मौन साधक थे। उनकी प्रकाशित कृतियाँ साहित्य-जगत की अमूल्य धरोहर हैं। अध्यक्षीय संबोधन में रोटरी क्लब अध्यक्ष सुनील सारड़ा ने आचार्य बद्रीप्रसाद साकरिया को राजस्थानी भाषा का गौरव बताया और कहा कि उनके जैसे साहित्यिक साधक को युगों-युगों तक स्मरण किया जाएगा।

संगोष्ठी में डॉ. मोहम्मद फारूख, सुभाष बिश्नोई, राजीव बिश्नोई, मुनीष बजाज, विमलचंद भोजक और महेन्द्र सिंह राठौड़ सहित कई विद्वानों ने भागीदारी की। कार्यक्रम के अंत में अमर सिंह खंगारोत ने सभी अतिथियों और विद्वानों का आभार प्रकट किया।

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