सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को ‘अवैध’ बता दिया है
नयी दिल्ली , 16 फ़रवरी। शुरू से ही विवादों में घिरी केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक क़रार दिया है. इस स्कीम के तहत जनवरी 2018 और जनवरी 2024 के बीच 16,518 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे गए थे और इसमें से ज़्यादातर राशि राजनीतिक दलों को चुनावी फंडिंग के तौर पर दी गई थी. पिछले कुछ सालों में सामने आई रिपोर्ट्स में ये पता चला कि इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को मिला था. इन बॉन्ड्स पर पारदर्शिता को लेकर कई सवाल उठ रहे थे और ये आरोप लग रहा था कि ये योजना मनी लॉन्डरिंग या काले धन को सफ़ेद करने के लिए इस्तेमाल हो रही थी.
इलेक्टोरल बॉन्ड्स की वैधता पर सवाल उठाते हुए एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), कॉमन कॉज़ और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत पांच याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
एडीआर के संस्थापक और ट्रस्टी प्रोफ़ेसर जगदीप छोकर कहते हैं, “ये फैसला क़ाबिल-ए तारीफ़ है. इसका असर ये होगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम बंद हो जाएगी और जो कॉरपोरेट्स की तरफ से राजनीतिक दलों को पैसा दिया जाता था जिसके बारे में आम जनता को कुछ भी पता नहीं होता था, वो बंद हो जाएगा. इस मामले में जो पारदर्शिता इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम ने ख़त्म की थी वो वापस आ जाएगी.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए मिली धनराशि की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देनी होगी. ये जानकारी चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करनी होगी.
इस जानकारी के सार्वजनिक होने पर ये साफ़ हो जाएगा कि किसने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा और किसे दिया.
इस मामले से बतौर याचिकाकर्ता जुड़े रहे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी कहते हैं, “इस फैसले का हम स्वागत करते हैं. ये स्कीम असंवैधानिक थी और लेवल प्लेइंग फील्ड (समान अवसर) को ख़त्म करती थी. अगले तीन हफ़्तों में ये जानकारी सार्वजानिक करनी होगी कि किसने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे और किसे दान दिया. तो अब पता चलेगा कि क्या क्विड प्रो क्वो (कुछ पाने के एवज़ में कुछ देना) हुआ, किस से कितना लिया और उनके लिए क्या किया.”
येचुरी कहते हैं कि शुरू से ही उनकी और उनकी पार्टी की राय ये थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक भ्रष्टाचार को वैध बनाने का साधन है.
वो कहते हैं, “इसलिए हमने विरोध किया और तब से लेकर आज तक हमारी पार्टी ने एक भी इलेक्टोरल बॉन्ड स्वीकार नहीं किया. बाकी पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड ले रही थीं लेकिन हमारी पार्टी नहीं ले रही थी इसीलिए कोर्ट ने हमारी याचिका को सुना.”
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि राजनीतिक चंदे को लेकर भविष्य में कौन सी ऐसी व्यवस्था लागू हो जिसकी पारदर्शिता पर सवाल खड़े न हों?
सवाल ये भी है कि गुरुवार को देश की सबसे ऊंची अदालत के निर्णय के बाद राजनीतिक दलों की फंडिग आगे किस तरह से होगी और क्या बॉन्ड्स को असंवैधानिक मात्र क़रार देने से सबकुछ बिल्कुल ठीक हो जाएगा?
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की खंडपीठ ने केंद्र की मोदी सरकार के साल 2018 में लाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को ग़ैर-क़ानूनी क़रार दिया है क्योंकि इसके तहत चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी जा सकती थी.
सरकार की स्कीम को अदालत में चैलेंज करने वालों का कहना था कि इसमें काला धन को सफ़ेद किए जाने से लेकर, किसी काम को किए जाने के समझौते के तहत बड़ी कंपनियों या व्यक्तियों से चंदा लिया जा सकता है
पत्रकार नितिन सेठी द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सदस्य हैं और इलेक्टोरल बॉन्ड्स के मुद्दे पर इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग कर चुके हैं.
वो कहते हैं, “भ्रष्टाचार पर जो एक क़ानूनी जामा पहना दिया गया था वो सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स को रद्द करते हुए उतार दिया है. कोर्ट के फ़ैसले में कहा गया है कि अप्रैल 2019 से लेकर अभी तक जिन शैल कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के रास्ते से राजनीतिक दलों को पैसा दिया था वो पूरा ब्योरा बाहर आए. ये कोर्ट की तरफ से उठाया गया एक साहसिक क़दम है.”
सेठी के मुताबिक़ ये याद रखना चाहिए कि “काला धन और बेहिसाब धन राजनीति में आने का ये एक ज़रिया है.“
वो कहते हैं, “ये तो एक गदंगी थी जो और फैल गई थी लेकिन अभी बहुत से सुधारों की गुंजाइश है जो दिखता नहीं कि अभी जल्दी होंगे. आगे की तरफ देखें तो मुझे शक है कि सरकार नहीं चाहेगी कि ये बाहर आए कि कौन उनको पैसा देता था. हमने ये पाया था कि सबसे ज़्यादा पैसा इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी को और उन सरकारों को आता था जो राज्यों में सत्ता में हैं. मुझे लगता है कि कोशिश होगी कोर्ट के ज़रिए या किसी के ज़रिए केस फ़ाइल करके कि वो डेटा बाहर न आए. जो 16,500 करोड़ रुपये लिए गए उसका ब्यौरा बाहर न आए.”