लोकसभा चुनावों से ठीक पहले बीजेपी ने खट्टर को सीएम पद से क्यों हटाया और नायब सैनी को सीएम क्यों बनाया ?
नयी दिल्ली , 13 मार्च। कांग्रेस नेता राहुल गांधी बीते दिनों ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में ओबीसी की भागीदारी पर बात करते दिख रहे हैं. राहुल गांधी ने ब्यूरोक्रेसी में भी ओबीसी अधिकारियों की संख्या का मुद्दा संसद में उठाया था. लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बीजेपी को इस संबंध में घेरती हुई नज़र आती रही है. दूसरी तरफ़ बीजेपी ने हरियाणा में मंगलवार को अहम फ़ैसला लिया. मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़े के बाद जाटों के दबदबे वाले हरियाणा में बीजेपी ने अपने ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है. इससे पहले मध्य प्रदेश में भी मोहन यादव को सीएम बनाया गया था. वो भी ओबीसी समुदाय से आते हैं.
खट्टर के इस्तीफ़ा देते ही साढ़े चार साल पुराना बीजेपी और जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी का सरकार में गठबंधन में ख़त्म हो गया. ऐसे में सवाल पूछा जा रहा है कि लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आख़िर बीजेपी ने खट्टर को सीएम पद से क्यों हटाया और नायब सैनी को सीएम क्यों बनाया?
चुनाव से पहले चेहरे बदलना बीजेपी की रणनीति का हिस्सा
चुनाव से पहले राज्यों में मुख्यमंत्री बदलना बीजेपी की परखी हुई रणनीति है. इसकी शुरुआत 2021 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के इस्तीफ़े से होती है. विजय रूपाणी के इस्तीफ़े के बाद पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को बीजेपी ने गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया था. अगले साल ही यानी 2022 में गुजरात में विधानसभा चुनाव होना था. रूपाणी की पूरी कैबिनेट ने इस्तीफ़ा दे दिया था और रातोंरात मुख्यमंत्री से लेकर गुजरात का पूरा मंत्रिमंडल नया हो गया था. एक साल बाद गुजरात में चुनाव हुआ और बीजेपी ऐतिहासिक बहुमत के साथ सातवीं बार सत्ता में लौटी थी. बीजेपी ने गुजरात के बाद कर्नाटक, उत्तराखंड और त्रिपुरा में भी मुख्यमंत्रियों को बदल दिया था. कर्नाटक को छोड़ दें तो मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति बीजेपी के हक़ में गई थी.
हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति को बीजेपी की ओबीसी केंद्रित राजनीति के आईने में देखा जा रहा है. बीजेपी संदेश देना चाहती है कि कांग्रेस भले ओबीसी की बात कर रही है लेकिन वो हक़ीक़त में इसे करके दिखा रही है. 77 सदस्यों वाले मोदी मंत्रिमंडल में सबसे ज़्यादा 27 मंत्री ओबीसी हैं. बीजेपी के 303 लोकसभा सांसदों में 85 ओबीसी हैं.
हरियाणा में जाति का आंकड़ा
हरियाणा में क़रीब 44 फ़ीसदी आबादी ओबीसी है. माना जा रहा है कि पार्टी सैनी को सीएम बनाकर ओबीसी मतदाताओं को लुभाना चाहती है. हरियाणा में बीजेपी के एक तबके का कहना है कि खट्टर को बदलने की पहल एक साल से हो रही थी, पार्टी कोशिश कर रही थी कि ज़्यादा दलित, ओबीसी चेहरों को सामने लाया जाए. इसके अलावा फरवरी 2024 में खट्टर के ख़िलाफ़ कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाई थी. हालांकि ये प्रस्ताव गिर गया था. मगर खट्टर के कार्यकाल में लाया गया ये दूसरा अविश्वास प्रस्ताव था. कहा जा रहा है कि खट्टर के प्रति अविश्वास की स्थिति बीजेपी के अंदर भी थी. पार्टी कार्यकर्ताओं में खट्टर को लेकर नाराज़गी थी.ऐसे में खट्टर को हटाकर बीजेपी की कोशिश है कि चुनावों में नए चेहरे के साथ उतरा जाए.
द टेलीग्राफ अख़बार से एक बीजेपी नेता ने कहा, ”खट्टर और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच कटाव सा था. काम तो अच्छा ही कर रहे थे.” बीजेपी के कई नेताओं ने कहा कि खट्टर के बारे में पार्टी को फीडबैक दिया गया था. कुछ महीने पहले हरियाणा के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने बीजेपी का हाथ थामा था. तंवर के रूप में बीजेपी को राज्य में दलित चेहरा मिला, जिनकी हरियाणा की आबादी में हिस्सेदारी 20 फ़ीसदी है. बीजेपी की कोशिश है कि ओबीसी-दलित चेहरों की बदौलत जाटों की नाराज़गी से हो सकने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके. हरियाणा की 90 सीटों में से 40 सीटों पर जाटों का दबदबा रहता है. कहा जा रहा है कि बीते साल अक्तूबर में जाट ओपी धनखड़ को अध्यक्ष पद से हटाए जाने से नाख़ुश हैं.
खट्टर और धनखड़ के बीच पार्टी और सरकार में मतभेद थे. बीजेपी के लोगों की मानें तो खट्टर पीएम मोदी के ख़ास हैं और लोकसभा चुनावों में उन्हें करनाल से टिकट दी जा सकती है. वहीं तंवर को कुरुक्षेत्र से टिकट दी जा सकती है. नायब सैनी कुरुक्षेत्र सीट से सांसद थे.जाट वोट और खट्टर के इस्तीफ़े की वजह हरियाणा की राजनीति जाट और ग़ैर-जाट वोट के इर्द-गिर्द घूमती है.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि सैनी को सीएम बनाकर बीजेपी पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों के वोट हासिल करना चाहती है क्योंकि बीजेपी ब्राह्मण, पंजाबी, बनिया और राजपूत वोटों को लेकर आश्वस्त है.बीजेपी ने पार्टी सर्वे में ये पाया कि किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के प्रदर्शन के कारण खट्टर के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर है.
बीजेपी के लिए हरियाणा में जाट वोट चुनौती की तरह हैं.
2019 लोकसभा चुनावों में राज्य की 10 सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही थी. इन चुनावों में बीजेपी को 58 फ़ीसदी वोट मिले थे और इसमें जाटों ने अहम भूमिका अदा की थी. 2019 लोकसभा चुनाव बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद हुए थे और बीजेपी की जीत में जानकार इस घटना को भी अहम मानते हैं. वहीं जब विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी का वोट शेयर घटकर 36 फ़ीसदी हो गया था. बीजेपी हरियाणा में बदलाव करके आगामी चुनावों में ख़ुद को मज़बूत करना चाहती है.
मनोहर लाल खट्टर बन सकते हैं पंजाब के नए राज्यपाल, विधायकी से भी दे दिया इस्तीफा
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री अब पंजाब के राज्यपाल बन सकते हैं। उन्होंने ने आज करनाल सीट से विधायक के पद से भी इस्तीफा दे दिया। अब अनुभवी नेता की नई भूमिका को लेकर चर्चा जोरों पर चल रही है।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल अपने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। वह करनाल विधानसभा सीट से विधायक थे। सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि उन्हें भाजपा हाई कमान पंजाब का नया गवर्नर बना सकता है।मनोहर लाल विधायक रहते राज्यपाल नहीं बन सकते थे, इसलिए उन्होंने ने इस्तीफा दिया है। अगर भाजपा ने यह दांव खेला तो इस से पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार की टेंशन बढ़ जाएगी। अभी पंजाब के गवर्नर बनवारी लाल पुरोहित हैं। पुरोहित और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की तनातनी लंबे समय से ही चली आ रही है।
अब अगर मनोहर लाल को यह जिम्मेदारी मिली तो वह पंजाब के गवर्नर के रूप में चंडीगढ़ के साथ हरियाणा पर भी नजर रखेंगे। बता दें कि पंजाब के गवर्नर एवं चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने 2 फरवरी को इस्तीफा दे दिया था। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को भेजे अपने इस्तीफा पत्र में उन्होंने ने पद छोड़ने का कारण निजी बताया था। लेकिन राज्यपाल का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया था। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि पुरोहित का इस्तीफा स्वीकार न करना भाजपा के
हरियाणा में उलटफेर के गेम प्लान का हिस्सा था।
हालांकि उन्होंने ने इसको लेकर बयान जारी कर पुरोहित ने कहा था कि इस्तीफा देना पूरी तरह से व्यक्तिगत था। उन्होंने कहा था कि उन्हें रुकने और अपना काम जारी रखने के लिए कहा गया था। बनवारी लाल पुरोहित ने अगस्त 2021 को पंजाब के गवर्नर का पद संभाला था। बता दें कि मनोहर लाल खट्टर ने हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद करीब साढ़े 9 साल तक संभाला और उसके बाद मंगलवार को अचानक ही इस्तीफा दे दिया। इसके साथ ही हरियाणा में जननायक जनता पार्टी को गठबंधन से बाहर कर दिया गया। अब भाजपा निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार चला रही है। 90 सदस्यों वाली विधानसभा में उसे 48 का समर्थन हासिल है। फ्लोर टेस्ट में भी आज सरकार ने बहुमत साबित कर दिया।