पुरुषार्थ के मूर्त रुप थे आचार्य महाप्रज्ञ – मुनि हिमांशुकुमार
- आचार्य महाप्रज्ञ का 105वॉ जन्मोत्सव प्रज्ञा दिवस पर
- प्रेक्षाध्यान को आनन्दमय जीवन के लिए उपयोगी बताया
केएलपी पट्टालम्, चेन्नई , 3 जुलाई। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का 105वॉ जन्मदिवस प्रज्ञा दिवस के रूप में मुनि श्री हिमांशुकुमारजी ठाणा 2 के सान्निध्य में जैन तेरापंथ परिवार केएलपी की आयोजना में केएलपी अभिनन्दन अपार्टमेंट के संयम वाटिका, पट्टालम्, चेन्नई में मनाया गया।
धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए मुनि हिमांशुकुमार ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ प्रबल गुरु कृपा, भाग्य और पुरुषार्थ के मूर्त रुप थे। आपके जीवन में आगे बढ़नें के लिए प्रबल गुरु कृपा का विशेष योगदान रहा। उन्होंने अपने दीक्षा गुरु आचार्य कालूगणी और शिक्षागुरु आचार्य तुलसी दोनों की विशेष कृपा प्राप्त की।
आचार्यश्री के भाग्य का उल्लेख करते हुए मुनिश्री ने आगे कहा कि उन्होंने जिस किसी कार्य को प्रारंभ किया, उसे कुशलता से निष्पत्ति पूर्ण रूप में सम्पन्न किया। महाप्रज्ञ की पुरुषार्थ साधना को सरल शब्दों में अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री ने जो प्राप्त किया, वह हम भी पुरुषार्थी बन प्राप्त कर सकते है। उपस्थित जन समूह को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रदत्त प्रेक्षाध्यान पद्धति को हम जाने, समझें और प्रतिदिन की चर्या में जोड़ें। श्वास प्रेक्षा एवं दीर्घ श्वास के नियमित प्रयोग से जीवन को रुपान्तरित और आनंदमय बनाया जा सकता है।
इससे पूर्व मुनि हेमन्तकुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी प्रज्ञा का जागरण किया। ‘प्रज्ञा’ शब्द का विवेचन करते हुए बताया कि हमारे भीतर से जो स्वतः स्फुरित होता है, जिसके लिए हमें बाह्य साधन आदि कि उपेक्षा नहीं होती, उसे प्रज्ञा कहते हैं। महाप्रज्ञ का प्रारंभिक जीवन सामान्य ही था। जब उन्होंने पुरुषार्थ को अपनाया, तब उनकी विशेषता की यात्रा प्रारंभ हुई और आगे बढ़ते हुए वे एक अध्येता कवि, लेखक, व्याख्याकार, प्रवचनकार आदि के रूप में विश्व विख्यात हुए।
मुनिश्री ने जीवन में पुरुषार्थ को अपनाने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आलस्य हमारे जीवन के किसी भी रुप और अवस्था के लिए अच्छा नहीं है। हमें आलस्य का त्याग करना है। महाप्रज्ञ की साहित्य सृजन की यात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी में भाषा में विपुल साहित्य का सृजन किया था, जिसका हमें अध्ययन करना चाहिए। आज के समाज में स्थानीय भाषा, मातृ- भाषा, राष्ट्रीय भाषा के प्रति घट रही जागरुकता और बढ़ती हुई अनदेखी को चिंतनीय बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपनी विरासत और संस्कृति का सम्मान करना है तथा हमारी साहित्यिक धरोहर का अध्ययन करते हुए, उसका सम्मान बढ़ाते हुए अपने जीवन को रुपांतरित करना है। इस अवसर पर केएलपी की बहनों ने आचार्य महापुज्ञ के प्रति श्रद्धास्वर प्रस्तुत करते हुए गीतिका का संगान किया।