आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के प्रवचनों, विचारों एवं साहित्य से जैन-अजैन सभी प्रभावित – मुनि कमल कुमार


आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का 106 वां जन्म दिवस आयोजित हुआ




बीकानेर , 23 जून। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का 106 वां जन्मदिवस उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी के सानिध्य में बोथरा भवन गंगाशहर में मनाया गया। इस अवसर पर मुनि श्री कमल कुमार जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि बालक नथमल का भाग्योदय गंगाशहर में हुआ। उन्हें प्रतिक्रमण का आदेश गंगाशहर में मिला। मुनि नथमल को महाप्रज्ञ अलंकरण भी गंगाशहर में मिला। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी हजारों लोगों के जीवन निर्माता थे, भाग्य विधाता थे, आगमों के ज्ञाता थे, उनका व्यक्तित्व विराट था। उनकी माता बालू जी जो उनके साथ ही दीक्षित हुई थी उनकी अंतिम अवस्था में चित समाधि के लिए आचार्य महाप्रज्ञ जी ने एक गीतिका का निर्माण किया “चैत्य पुरुष जाग जाए”। इस गीतिका में अकूत मत्रों का भंडार है जो आज भी हजारों लोगों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। मुनिश्री ने आगे कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के प्रवचनों, विचारों एवं साहित्य से जैन-अजैन सभी प्रभावित थे। आज भी हजारों लोग उनके साहित्य का स्वाध्याय करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी आध्यात्म के शिखर शिरोमणी थे, साथ में वैज्ञानिक भी थे। उनके सभी अवदानों में वैज्ञानिकता झलकती थी। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के साथ एक पुस्तक भी लिखी थी जिसका नाम है सुखी परिवार समृद्ध राष्ट्र।अहिंसा यात्रा के समय मुम्बई के भिन्डी बाजार में मुस्लिम लोगों ने आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जो स्वागत -अभिनन्दन किया गया था वो ऐतिहासिक था।


मुनिश्री विमल विहारी जो कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की जन्म भूमि टमकोर से है उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जन्म 14 जून, 1920 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के टमकोर गांव में हुआ था। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के दसवें आचार्य थे। लगभग उन्होंने 10 वर्ष की आयु में ही दीक्षा ग्रहण कर ली थी। उनके बचपन का नाम नथमल था। उनके पिता का नाम तोलारामजी और माता का नाम बालूजी था। आचार्य महाप्रज्ञ जी आचार्य श्री तुलसी के प्रति बहुत समर्पित थे। मुनि नथमल से आचार्य महाप्रज्ञ बनने तक में आचार्य तुलसी का बहुत श्रम था। प्राकृत भाषा पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी।
मुनि श्री श्रेयांस कुमार जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की करूणा, प्रज्ञा,एवं गुरु भक्ति पर लोगों का ध्यान आकृष्ट हुआ। मुनि श्रीश्रेयांश कुमार जी ने गीतिका के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किए।
तेरापंथ न्यास के ट्रस्टी जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि तेरापंथ के इतिहास में आचार्य श्री महाप्रज्ञ का नाम स्वर्णाक्षरों से अंकित है। उन्होंने आगम सम्पादन , प्रेक्षा ध्यान , जीवन विज्ञान जैसे आयाम देकर समाज व मानव जाती का कल्याण किया। उन्होंने साहित्य सम्पदा से तेरापंथ ही नहीं सम्पूर्ण समाज को लाभान्वित किया। उनकी पुस्तकों की मांग सर्व समाज में परिलक्षित होती है। प्रेक्षा ध्यान आज विश्व के कई देशों में अपनाया गया है। गंगाशहर पर उनकी कृपा हमेशा बनी रही। आवश्यकता इस बात की है कि हम उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारें।
कार्यक्रम में तेरापंथी सभा से रतन लाल छल्लाणी ने कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी संकल्प के धनी थे। उन्होंने अपने गुरु तुलसी के प्रति पूर्णतया समर्पित रहने का संकल्प प्रथम दिन लिया उसको जिंदगी भर निभाया। करुणा के सागर थे उनके बारे में बोलना व लिखना जल्द संभव नहीं हैं। टीपीएफ से पूर्व महापौर नारायण चोपड़ा, आचार्य श्री तुलसी शांति प्रतिष्ठान से धर्मेंद्र डाकलिया, गंगाशहर नागरिक परिषद से जतन लाल दूगड़ , तेरापंथ युवक परिषद से मांगीलाल बोथरा, तेरापंथ महिला मंडल से श्रीमती बिंदु छाजेड़, अणुव्रत समिति से मनोज छाजेड़, कन्या मंडल से सुश्री प्रिया संचेती ने अपने वक्तव्य के माध्यम से आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के प्रति अपने भाव व्यक्त किए।