समर्पण और विनम्रता के जीवंत पुरुष थे आचार्य श्री महाप्रज्ञ : साध्वी डॉ गवेषणाश्री
चेन्नई , 4 मई। ( स्वरूप चन्द दांती ) युवा मनीषी आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या डॉ साध्वी गवेषणाश्री के सान्निध्य में प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञजीकी 15 वीं पुण्यतिथि का कार्यक्रम तेरापंथ सभा भवन, पल्लावरम् में आयोजित हुआ।
डॉ साध्वी गवेषणाश्री ने कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञजी का जीवन सत्यं शिवं सुंदरम से भरा हुआ था। जैसे एक छोटी बूंद में अथाह सागर लहरा रहा है, एक बीज में विशाल वटवृक्ष की क्षमता छिपी हुई है, एक किरण में सहस्त्रा॑शु– सूर्य का तेज छिपा हुआ है, उसी प्रकार आचार्य श्री महाप्रज्ञजी का जीवन अंधेरी राहों में प्रकाश पथ है। उनका हर एक वाक्य प्रेरणा है, समस्या का समाधान है। आप राष्ट्र संत नहीं अपितु विश्व संत थे, वे ग्रंथ नहीं, महाग्रंथ थे।
साध्वी मयंकप्रभा ने कहा कि अज्ञ से महाप्रज्ञ की यात्रा का महत्वपूर्ण सूत्र है– समर्पण और विनम्रता। निःस्प्रह समर्पण और उत्कृष्ट विनम्रता ने आपको नत्थु से अज्ञ और अज्ञ से महाप्रज्ञ बना दिया। आपका ध्येय था– अहिंसा ही मेरा धर्म है और समर्पण ही मेरी प्रार्थना है।
साध्वी दक्षप्रज्ञा ने आराध्य की अर्चना में सुमधुर गीतिका प्रस्तुति की। मंच का कुशल संचालन साध्वी मेरूप्रभा जी ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत कन्या मंडल के मंगलाचरण “महाप्रज्ञ अष्टकम” से हुई। तेरापंथ सभा के उपाध्यक्ष किरणजी गिरिया ने स्वागत भाषण दिया। प्रेक्षा प्रशिक्षिका प्रियंका कटारिया ने कविता के द्वारा, तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने गीतिका के द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति की। तेरापंथ सभा के मंत्री दिलीप भंसाली ने आभार ज्ञापन किया।
माधावरम ट्रस्ट अध्यक्ष घीसुलालजी बोहरा, शासनसेवी तेजराजजी पूनमिया आदि ने सहभागिता के साथ अपने विचार रखें।