आचार्य श्री महाश्रमण जी का 16 वां पदाभिषेक दिवस बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया


गंगाशहर, 07 मई । युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी, मुनिश्री श्रेयांस कुमार जी, शासन श्री साध्वी शशिरेखाजी, सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी श्री विशदप्रज्ञाजी, साध्वी श्री लब्धियशाजी के सान्निध्य में शांति निकेतन सेवा केन्द्र में आचार्य श्री महाश्रमण जी का 16 वां पदाभिषेक दिवस बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुनिश्री प्रबोध कुमार जी ने भक्तामर जप, प्रेक्षाध्यान के द्वारा किया।
सभा को सम्बोधित करते हुए मुनिश्री कमलकुमार जी ने कहा आचार्य महाश्रमण नम्रता की प्रतिमूर्ति है। सरलता, सहजता, विनम्रता, सजगता ,अप्रमत्तता आपके जीवन का अभिन्न अंग है। संघनिष्ठा, गुरूनिष्ठा ,आचार निष्ठा, मर्यादा निष्ठा बेजोड़ है। इन्हीं सब गुणों से प्रभावित हो आचार्य महाप्रज्ञ ने आपको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। मुनिश्री ने कहा कि आचार्य श्री महाश्रमण जी विनम्रता के समेरू है। मुनि श्री तरूण सागर जी ने एक कार्यक्रम में कहा कि हम सभी तो श्रमण हैं आप तो महाश्रमण है। कलिकाल सम्रज्ञ आचार्य श्री हेमचंद्र जी ने कहा कि जो नम्र आदमी स्वयं नमता नही वरन ओरो को भी भी नम्र बना देता है। उन्होंने कहा कि आप स्वयं सम्मान चाहते हो तो दूसरो का भी सम्मान करना सीखों . भगवान महावीर स्वामी ने कहा कि सभी आत्माऐं समान है, बराबर है। कोई कहे यह छोटा है, यह बड़ा है। वह उसका अज्ञान है।, भूल है। मुनि श्री ने कहा कि आचार्य श्री महाश्रमण जी बहुत परिश्रम करते हैं। 60 हजार किलोमीटर से अधिक पैदल विहार करना भारत के विभिन्न स्थानों के साथ नेपाल, भुटान आदि देशों में भी धर्म ओर अध्यात्म के लिए लोगों को प्रेरित करना, अणुव्रत, प्रेक्षा ध्यान, जीवन विज्ञान के साथ धर्म संघ के सभी आयामों के लिए रात दिन प्रयास रत है। आचार्य श्री महाश्रमण जी उच्च मनोबल के धनी है।
मुनिश्री श्रेयांस कुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति मुक्तक व गीतिका के माध्यम से दी। शासन श्री साध्वी श्री शशिरेखाजी ने कहा दो प्रकार के चमत्कार होते है एक सिंहासन का और एक चद्दर का। भिक्षु की गद्दी पर बैठने वाला भिक्षु जैसा यशस्वी बन जाता है।
साध्वी विशदप्रज्ञाजी ने कहा आचार्य महाश्रमणजी जो कीर्तिमान स्थापित किए है युगों युगों तक दुनिया उसे याद करती रहेगी। आपके तीनों नाम मोहन मुदित व महाश्रमण सार्थकता भरे नाम है। नाम के अनुरूप ही आप जीवन देख रहे है।
साध्वी श्री लब्धियशा जी ने कहा आपका जन्म मई महिने में हुआ और आपका नाम म से है दोनो की राशि है सिंह। सिंह पराक्रम का प्रतीक होता है। आपकी जीवन यात्रा श्रम की अकथ कहानी है पुरूषार्थ की परम गाथा है।
शासन श्री साध्वी प्रभा श्री जी ने अपने अनुभवों को बताते हुए कहा आपके प्रभाव से कट्टर मन्दिरमार्गी भी नतमस्त हो गये। साध्वी दीपमालाजी ने कविता के माध्यम से अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वी ध्रुवरेखा जी ने कहा आचार्य महाश्रमण विशेषताएं अमाप्य है . हम उन्हें शब्दों में नहीं बांध सकते। उनकी जागरूकता, अप्रमत्तता, संयम एक प्रेरणा देने वाला है। साध्वी स्वस्थप्रभा जी ने अनुत्तर गुणों की व्याख्या करते हुए कहा आचार्य महाश्रमण का आहार संयम, इन्द्रिय संयम, कायसंयम, दृष्टि संयम अनुत्तर है साध्वी विधिप्रभाजी ने आगमों के सुक्त द्वारा तुलना करते हुए कहा आचार्य महाश्रमण जी का जीवन ’संजमम्मि य वीरियं’ संयम की परिकाष्ठा है।
साध्वीवृंद ने समवेत स्वर में सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी। साध्वी करूणाप्रभाजी ने विकास के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा हमारा तेरापंथ धर्मसंघ व संघ के नायक आगे से आगे विकास की यात्रा कर रहे है। इस अवसर पर मुनिश्री की प्रेरणा से सामायिक , मौन, क्षमा की पंचरंगिया हुई। मुनि नमि कुमार जी ने 15 तपस्या का प्रत्याख्यान किया. मुनिश्री कमलकुमार जी ने फरमाया कि मात्र चार महिने में 39-23-22 की तपस्या का लक्ष्य बनाकर नमि मुनि ने आत्मकल्याण के साथ धर्मसंघ की प्रभावना बढ़ाने वाला काम किया है।



