अंतरायकर्मों से बचें तथा पुण्य अर्जित करें-साध्वीश्री रत्ननिधि
बीकानेर, 8 जून। विचक्षण ज्योति साध्वीश्री चन्द्र प्रभा की शिष्या साध्वीश्री चंदन बाला सान्निध्य में रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में चल रही विशेष प्रवचन माला में शनिवार को साध्वीश्री रत्न निधि ने कहा कि अंतरायकर्मों से बचें तथा पुण्यकर्मो अर्जन करें।
साध्वीश्री रत्न निधि ने स्वयं की शक्ति को पहचाने’’ विषयक प्रवचन माला के दूसरे 8 घातिय कर्मों से बचने का संदेश दिया गया है। ज्ञानावर्णीय, दर्शनावर्णीय, धारणावर्णीय, अंतराय, मोहनिय, नाम वर्णीय, गोत्र व वेदनीय कर्म। जो पूर्णतया गुणों का ज्ञात न कर सके वे अघातिया कर्म तथा ज्ञानवरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनी और अंतराय चार घातिया कर्म है। अंतराय यानि बाधा,रूकावट अर्थात जो कर्म जीव की दान,भोग, उपभोग की आत्म शक्ति गुणों को पूर्ण प्रकट नहीं होने देते वे अंतराय कर्म है। इन कर्मों के कारण आत्मा का अनंत बल शक्ति आदि कुछ ही अंशो में प्रकट होता है। इन आठ कर्मों के कारण व्यक्ति पाप बंधनों में बंधता रहता है।
उन्होंने दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय व वीर्यान्तराय अंतरायकर्मों का वर्णन करते हुए कहा कि इन कर्मों के उदय होने से व्यक्ति इच्छा व कामना के बावजूद कर्म नहीं कर सकता । दान नहीं कर सकते, लाभ प्राप्त नहीं कर सकते, वस्तुओं के भोग उपभोग नहीं कर सकते। खाने की सामग्री है लेकिन हम खा नहीं सकते। अंतराय कर्मों को जप, तप, साधना आराधना व भक्ति से तोड़ने का प्रयास व पुरुषार्थ करें तथा भावों में शुद्भावों में शुद्धता लाए।
जिनेश्वर युवक परिषद की ओर से आचार्यश्री के प्रवेश व प्रतिष्ठा महोत्सव की तैयारियां की जा रही है। संगठन के पदाधिकारी भी नियमित आचार्यश्री, मुनि व साध्वीवृंद के मार्ग दर्शन में काम कर रहा है।
जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष अजीत खजांची, शांति लाल सुराणा, अशोक पारख, निर्मल पारख व कंवर लाल सेठिया आदि खरतरगच्छ संघ के पदाधिकारियों ने आचार्यश्री व की वंदना की।