मनोरंजन से आत्मरंजन की ओर जाने का समय है चातुर्मास – मुनि हिमांशुकुमार
चेन्नई , 20 जुलाई। (स्वरूप चन्द दांती ) आचार्य श्री महाश्रमणजी के विद्वान सुशिष्य मुनि श्री हिमांशुकुमारजी ने कहा कि चातुर्मासकाल मनोरंजन से आत्मरंजन की ओर जाने का समय है, प्रदर्शन से आत्मदर्शन, अंह से अर्हम् बनने, हिंसा से अहिंसा की ओर, साधनों की दुनिया में रहते हुए साधना में जाने का काल चातुर्मासकाल है।
तेरापंथ जैन विद्यालय, साहूकारपेट में समायोजित कार्यक्रम में उपस्थित विशाल धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए मुनिश्री ने आगे कहा कि भगवान महावीर ने साधुचर्या को प्रशस्त माना है। वह नवकल्पी विहार करता है। आठ माह के आठ कल्प और वर्षावास का नवमां कल्प। वर्षा ऋतु में जहां बादलों से पाणी वरसता है, वहीं संतों के मुहं से जीनवाणी बरसती है। एक धरती को सरसब्ज करता है तो दूसरा जीवन को। एक बाहर की गर्मी को शांत करता है तो दूसरा भीतर के कषायों को शांत करता है। बादल देख कर किसान या अन्य सामान्य जन प्रसन्न होते है, वही संतजन को देख भव्यात्मा, हलूकर्मी जीव प्रसन्न होते हैं।
मुनिश्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि इस अतिविशिष्ट समय का साधना आराधना में उपयोग करना चाहिए। इस स्वर्णिम अवसर पर अपनी चेतना के उर्ध्वगामी बनने के लिए समय नियोजित करना चाहिए। पंचाचार की विशेष साधना करनी चाहिए। पर्व तिथियों में मन अधिक चंचल रहता है, अतः उन दिनों हरियाली- जमीकंद का वर्जन, रात्रिभोजन का त्याग इत्यादि धार्मिक कार्यों में बिताना चाहिए। आपने चातुमास्यकाल में करणीय कार्यों की विवेचना की।
मुनि श्री हेमंतकुमारजी ने कहा कि आराधक सफलता को प्राप्त करता है, वही विराधक असफलता को। चिकित्सा से पूर्व जैसे डॉक्टर टेस्टिंग इत्यादि से पूर्व तैयारी करता है, उसी तरह आत्म विकास के लिए चातुर्मास त्याग साधना की पूर्व तैयारी का समय है। वह जीवन को पवित्र, निर्मल, उन्नत बनाता है। मुनिश्री ने श्रावक समाज को मात्र चातुमास्यकाल का ही नहीं अपितु 365 दिनों के श्रावक बनने की प्रेरणा दी। फुलटाइम आराधना, साधना को सफल बनाती हैं अतः सदाबहार श्रावक, एवरग्रीन श्रावक बनने का आह्वान किया। अनेकों तपस्वियों, साधकों ने अपनी साधना के प्रत्याख्यान स्वीकार कियें।
दोपहर में मुनिवर ने विविध मंगल मंत्रोच्चार के साथ वर्षावास की स्थापना की। सांयकालीन चातुर्मासिक प्रतिक्रमण कर आराधकों ने अपनी आलोयणा कर मन को पवित्र बनाया।