नागणेची पुलिया काे खतरा , बारिश में धंस रहीं सड़कें
- क्योंकि सीवर लाइन की खुदाई में निकली रेत ही वापस भरी, पैकिंग सही नहीं
बीकानेर , 14 जुलाई। बारिश में सड़कों के धंसने का कारण सिस्टम की खामी है। सीवर लाइन आैर ड्रेनेज की खुदाई में निकली रेत को ही वापस गड्ढों में भर दिया जाता है, जिससे उसकी पैकिंग सही नहीं हो पाती। नतीजा बारिश में हर साल उन्हीं स्थानों से सड़क धंस जाती है।
गुरुवार को हुई भारी बारिश के कारण शहर में 70 से अधिक स्थानों पर सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं। काफी जगह से धंस भी गई, जिससे वहां गहरा गड्ढ़ा हो गया है। सीवर लाइन और ड्रेनेज की खुदाई के बाद उसकी पैकिंग सही तरीके से की जाए तो सड़क नहीं धंसेगी।
आम तौर पर ठेकेदार, मजदूर खुदाई में निकली रेत को ही वापस भर देते हैं। ऊपर तक रेत की ढेहरी बनाकर छोड़ दिया जाता है। उसमें पत्थर भी होते हैं, जिससे गड्ढ़े की पैकिंग नहीं हो पाती और बारिश में दबाव पड़ने से सड़क धंस जाती है। खुदाई के बाद हमेशा वहां बालू रेत भरनी चाहिए। वर्तमान में शहर में चल रहे अमृत -2 के कार्यों में भी वहीं से खोदी गई रेत को वापस भरा जा रहा है। आने वाले टाइम में वहां भी सड़क के धंसने की समस्या होगी।
नागणेची मंदिर की पुलिया की दीवार कच्ची है। इसलिए हर बारिश में वहां कटाव आता है। कई बार हादसे हो चुके हैं। उसे मजबूत प्रोटेक्शन वॉल की जरूरत है। इसके अलावा आसपास लगे बिजली के बड़े पोल भी हटने जरूरी हैं।
पूर्व में पीडब्ल्यूडी ने बीकेईसीएल को इस संबंध में कहा भी था। तत्कालीन कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल ने भी पवनपुरी वाले बड़े पोल शिफ्ट कराने के प्रयास किए थे, लेकिन कंपनी ने कुछ नहीं किया। यह पोल मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हैं। इन्हें हटाकर अंडरग्राउंड केबलिंग करनी चाहिए। कंपनी के पास 20 साल तक काम करने का एग्रीमेंट है।
इन स्थानों पर टूटी सड़कें
वेटरनरी कॉलेज मार्ग पर जमीन धंसने से गहरा गड्ढ़ा हो गया है। बल्लभ गार्डन मोड़ पर एक तरफ सड़क ही पानी में बह गई। शिवबाड़ी मार्ग के दोनों तरफ दो-तीन फीट गहरे कटाव हैं। रोडवेज बस स्टैंड के सामने सड़क बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है।
लालगढ़ रेलवे हॉस्पिटल से लेकर स्टेशन तक मार्ग कई जगह से क्षतिग्रस्त हो गया है। मुक्ता प्रसाद नगर, बंगलानगर, नगर निगम के निकट, पुरानी गिन्नाणी, हनुमान हत्था, गंगाशहर सहित शहर में हर कोने में ऐसे ही हालात हैं। कच्ची बस्तियों में पानी की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है।
इसलिए टूटती हैं सड़कें
सड़कों के बार-बार टूटने का प्रमुख कारण सीवरेज, ड्रेनेज वर्क, पेयजल सप्लाई की पाइप लाइन बिछाने और अंडरग्राउंड केबलिंग के कार्य हैं। इन कार्यों को करवाने के लिए कोई सिस्टम नहीं है। नई सड़क बनने के बाद विभिन्न विभाग चेतन होते हैं। टेंडर किए जाते हैं। दरअसल सड़क निर्माण और रिपेयरिंग करने से पहले इन सभी विभागों से प्रमाण पत्र लेना चाहिए कि उनका कोई काम बकाया नहीं है।
उसके बाद यदि कोई विभाग सड़क खोदता है तो उसकी मरम्मत भी उसी को करवानी चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है, जबकि इसका सिस्टम बना हुआ है। सड़क तोड़ने से पहले संबंधित विभाग से अनुमति लेनी जरूरी है। इसकी मात्र औपचारिकता निभाई जाती है। सबसे ज्यादा सड़क सीवर लाइन के कारण टूटती है। चैंबर ओवर फ्लो होने से आस-पास गड्ढ़ा बन जाता है। समय पर उसकी मरम्मत नहीं होती। धीरे-धीरे सड़क टूट जाती है।
हर साल बारिश में 50 लाख की सड़कें हो जाती हैं क्षतिग्रस्त
मानसून के दौरान भारी बारिश में सबसे ज्यादा नुकसान सड़कों को पहुंचता है। एक मोटे आकलन के अनुसार हर साल बारिश में 40 से 50 लाख की सड़कें टूटती हैं। ये सभी सड़कें पीडब्ल्यूडी, नगर निगम और यूआईटी के अधिकार क्षेत्र की हैं। मानसून जाने के बाद इनकी मरम्मत के टेंडर होते हैं। काम शुरू होने दो से तीन महीने बीत जाते हैं। तब तक आमजन को परेशानी का सामना करना पड़ता है।