शिव की भक्ति निष्काम भक्ति होती हैं -भरत भूषण महाराज

बीकानेर, 2 जनवरी । जिसके मन में छल कपट होता है। वह कभी शिव को प्राप्त नहीं कर सकता। जिसका मन पवित्र है,वहीं शिव का वास होता है। शिव की भक्ति निष्काम भक्ति होती हैं,जो कामनाएं लेकर जाता है। उस कामना को पूर्ण शिव अवश्य करते है। मन में छल कपट हो तो कोई कामना पूर्ण नहीं होती। ये उद्गार वृन्दावन से पधारे भरत भूषण महाराज ने सीताराम भवन में श्री राम कथा समिति के तत्वाधान चल रही 9 दिवसीय शिव पुराण कथा के चौथे दिन व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि मन में बैर रखने से मन खराब हो जाता है,मन तो चंचल है,इसको जितना पवित्र रखोगे उतना ही ईश्वर आपके करीब रहेगा।इसलिए आपके मन पर काबू रख शिव भक्ति करें और उसका जो फल प्राप्त होगा,वह आपके सामने होगा।

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महाराजश्री ने पार्वती जन्म और शिव की लीलाओं का सुन्दर चित्रण किया। शिव पार्वती मिलन की कथा कहते हुए कहा कि शिव को प्राप्त करने के लिए मां पार्वती का तप यह बताता है कि शिव को पाना और शिव मय हो जाने में क्या फर्क है। इससे पहले वृंदावन से पधारे पंडित विक्रम सिंह तथा अवध बिहारी ने मुख्य यजमान रामगोपाल गीता देवी चांडक,प्रेमरतन राजश्री चांडक,मोहित प्रीति चांडक,विष्णु कृतिका चांडक,मनोज सुप्रभा कोठारी,सरस्वती मूंधड़ा,सौरभ चांडक,
श्याम सोमानी, पवन जाजू ने मंत्रोचारण के साथ पोथी पूजन करवाई।इस अवसर पर घनश्याम कल्याणी,नारायण मिमानी,गोवर्धन दम्मानी,सुशील करनानी, लक्ष्मी नारायण बिहानी,पवन कुमार राठी,दिलीप कुमार उपाध्याय,विष्णु चांडक, नारायण दम्मानी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। कथा में वाद्य यंत्रों पर सोनू बाबा,विष्णु तिवारी तथा बंटी महाराज ने शानदार भजनों की प्रस्तुति दी। संपूर्ण पंडाल को भक्ति पूर्ण भाव से वातावरण बनाया। कथा के अंत में महाआरती का आयोजन किया गया।

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एक हाथ से भक्ति सनातन धर्म की पहचान नहीं
भरत भूषण महाराज ने कहा कि दुनियां में लोग कई चीजें दान करते है। कोई कपड़ा क ोई, खाना,अगर आप कुछ दान नहीं कर पा रहे है या किसी को कुछ दे नहीं पा रहे है तो शिव कथा कहती है कि,एक मुस्कान अपने चेहरे में तो ला सकते है। उन्हें एक मुस्कान भेंट कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जब भगवान ने शरीर पूरा दिया है तो आधी भक्ति क्यों? आधी भक्ति सनातन धर्म की पहचान नहीं है,एक हाथ से राम-राम बोलना या एक हाथ से भगवान की भक्ति करना हमारे सनातन धर्म की पहचान नहीं है। हमारे सनातन धर्म में दो हाथ से भक्ति होती है।

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