नाट्यकला में सभी कलाओं का समुचित उपयोग होता है- मधु आचार्य

  • हिन्दी रंगमंच में बीकानेर का योगदान विषय पर संवाद आयोजित

बीकानेर, 13 अक्टूबर।अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित ‘‘हिन्दी रंगमंच में बीकानेर का योगदान विषय’’ मासिक संवाद में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए रंगकर्मी, संपादक एवं साहित्यकार मधु आचार्य ने कहा कि बीकानेर का रंगमंच उत्तरभारत की नाट्य राजधानी के रूप में जानी जाती है क्योंकि बीकानेर में नाटकों के प्रदर्शन की एक गरिमामय परम्परा चली आ रही है।मधु आचार्य ने बताया कि परम्परा वहीं है जिसमें समय परिस्थिति अनुसार बदलाव होता रहे, वही बीकानेर रंगमंच में हुआ।

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बीकानेर रंगमंच में गद्य के साथ-साथ जब काव्य आधारित नाटकों का मंचन होने लगा तो उसमें केवल कविता ही नहीं उसके साथ-साथ अन्य अभिनव प्रयोग करके उस नाटक को बहुत की उच्चस्तरीय रूप में मंचन किया जाता था, और यह केवल पूरे उत्तर भारत में बीकानेर में ही देखने को मिलता था।

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मधु आचार्य ने कहा कि रंगमंच को न तो राज्य से आश्रय मिलता न समाज से, इन विकट परिस्थितियों में नाटक से कलाकारों का जुड़ना एवं नाटको का प्रदर्शन करना बहुत ही महत्ती का कार्य था। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दी रंगमंच में बीकानेर का इसलिए भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है कि यहां रंगमंच के साथ साहित्यकारों का भी गहरा जुड़ाव रहा जिससे रंगमंच और अधिक सशक्त हुए।

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आचार्य ने कहा कि साहित्य की सात कलाएं होती है और इन सात कलाओं का उपयोग केवल नाट्य कला में समुचित होता है। उन्होंने बताया कि बीकानेर में आज भी ऐसे कई परिवार देखने को मिल जाएगे जिसमें 3-4 पीढ़िया रंगकर्म से जुड़ी हुई तथा अपना योगदान दे रही है। उन्होंने रंगमंच में नए कलाकारों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जब आप नाटक को आत्मसात करेंगे तभी वह नाटक दर्शकों के दिल पर गहरी छाप छोड़ पायेगा।

संवाद श्रृंखला के मुख्य वक्ता वरिष्ठ रंगकर्मी दयानन्द शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हिन्दी रंगमंच का इतिहास लगभग 150 वर्ष पुराना है। हिन्दी नाटय का काल भारतेन्दू युग से माना जाता है, उससे पहले संस्कृत भाषा में नाटक लिखे जाते रहे है। उसके बाद लोक नाटक एवं पारसी शैली के नाटको का आयोजन होना प्रारम्भ हुआ। बीकानेर के रंगमंच पर बात करते हुए दयानन्द शर्मा ने कहा कि 1924 से बीकानेर में नाटक मंचन का आरम्भ हुआ। बीकानेर में बहुत ही उच्च दर्जे के कलाकारों ने रंगमंच पर अपनी छाप छोड़ी फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर आज की कमी खलती नजर आ रही है।

दयानन्द शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज भी थियेटर ऑलम्पिक में बीकानेर का एक ही नाटक पहुंचा है और भी बड़े रंगमंचों पर बीकानेर के एक-दो ही नाटक अपनी पेठ पहुंचा पाए है। इसके लिए हमें और तैयारी करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि बीकानेर में सैकेड़ो अभिनेता एवं अभिनेत्रियां है जो सीमित साधनो के कारण पिछड़ जाती है। उनको समाज एवं राज्य सरकार द्वारा सम्बल देना होगा तभी बीकानेर पूरे भारत में रंगमंच पर अपनी अमीट छाप छोड़ सकेगा। उन्होंने इस अवसर पर बीकानेर के रंगकर्मियों, नाटककारो, साहित्यकारो, नाट्य संस्थानों, रंगमंचों आदि का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि बीकानेर में ऐसे कई रंगमंच आयोजन हुए है जिसने पूरे भारत के रंगमंच का ध्यान हमारी ओर आकर्षित किया है।

कार्यक्रम के आरम्भ में रचनाकार एवं संपादक हरीश बी. शर्मा ने स्वागत उद्बोधन देते हुए कहा कि बीकानेर में रंगमंच की एक सशक्त परम्परा रही है और आज भी विद्यमान है। यहां के कुछ कलाकार आज राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके है।

संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए संस्था की गतिविधियों का परिचय दिया तथा उन्होंने कहा कि ऐसे संवादों के जरिए ही हम सामाजिक पहलूओं पर बात कर सकते है तथा सामाजिक सरोकारो जैसे कार्यों से जुड़ सकते है। कार्यक्रम के अंत में कहानीकार नदीम अहमद नदीम ने संस्था की तरफ से सभी को धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में अब्दुल शकूर, तरूण कुमार, रमेश गुप्ता, रामगोपाल व्यास, महेश उपाध्याय, संगीता शर्मा, मुकेश व्यास, आत्माराम भाटी, योगेन्द्र कुमार, मो. हनीफ उस्ता, इसरार हसन कादरी, संजय पुरोहित, जीत सिंह, नदीम अहमद नदीम, रामसहाय हर्ष, राजेन्द्र जोशी, रमेश शर्मा, सुरेश आचार्य, राजाराम स्वर्णकार, कमल रंगा, संजय वरूण, मनीष जोशी , बुलाकी शर्मा, डॉ. दिनेश शर्मा, अमित गोस्वामी, डॉ. असित गोस्वामी, सतेन्द्र शर्मा, आर के शर्मा, डॉ. आभा शंकर, सुरेश पूनिया, आर शंकरन्न, रोहित बोड़ा की गरिमामय उपस्थिति रही।

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