उच्च स्तरीय संगीत प्रशिक्षण कार्यशाला में पूर्व वाइस चांसलर टी. उन्नीकृष्णन ने प्रशिक्षुओं को विशेष प्रशिक्षण दिया
बीकानेर , 28 मई। विरासत संवर्द्धन संस्थान एवं सुर संगम संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में टी. एम. ओडिटोरियम में जारी उच्च स्तरीय संगीत प्रशिक्षण कार्यशाला में आज कोच्चि से समागत खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर टी. उन्नीकृष्णन ने प्रशिक्षुओं को अलग-अलग सेशन में वॉयस मोड्युलेशन, वॉयस कल्बर की तकनीक एवं बेहतर वॉयस क्वालिटी का विशेष प्रशिक्षण दिया।
वोवेल्स, वाइब्रेटो, फेलसिडो तथा संगीत में श्वांस नियंत्रण के बारे में विस्तार से समझाया एवं अभ्यास करवाया। फिल्मी गीतों एवं गजलों आदि में आवाज के गुणधर्मों के बारे में जानकारी एवं प्रेरणा दी। उन्नीकृष्णन ने स्वयं गीत व गजल गाकर कण्ठकला के उपयोग का मार्गदर्शन किया। उन्होंने स्वर यंत्र के अंगों वॉकल कॉर्ड, फॉल्स बॉकल कॉर्ड लेरिंग्स, फेरिंग्स व इन से सम्बन्धित मांसपेशियों के बारे में मेडिकल सांईस के अनुरूप पूरी जानकारी देते हुए बताया कि संगीत परफोरमेंस के लिए क्या क्या सावधानी रखनी चाहिए।
मौसम परिवर्तन, ज्यादा ऊंची आवाज में गाना या बोलना, रहन-सहन दिनचर्या एवं फूड हेबिट्स, एसिडिटी आदि से गले व आवाज में खरांश, हॉर्सनेश, ब्रॉकाइटिस, इंफेक्शन, लेरिंगाइटिस, फेरिंगाइटिस, शोर बॉट्स आदि समस्याओं के समाधान हेतु घरेलू उपाय व विशेषज्ञ चिकित्सकीय सलाहकार की तरह विस्तार से जानकारी दी। डॉ. टी. उन्नीकृष्णन ने प्रशिक्षुओं के प्रश्नों व जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी विशिष्टता एवं वॉयस क्षमता होती है। उसी अनुरूप उसे स्वर, रियाज व प्रस्तुति देनी चाहिए। किसी अन्य कलाकार की नकल की जगह स्वयं अपनी विधा का विकास करना चाहिए।
उन्होंने संगीत साधकों को सुबह जल्दी उठकर ध्यान, योगा, मौसम के अनुरूप अनुलोम विलोम, भ्ररित्रका, कपालभाती आदि ब्रिदिंग एक्सरसाइज करनी चाहिए। जिससे उनका स्वर यंत्र साफ व सही रहे। उन्होंने नियमित रियाज करने की सलाह दी। उन्होंने सलाह दी कि साधक का मानसिक स्टेट्स सदा एक जैसा रहना चाहिए। उसमें उतार चढ़ाव नहीं आना चाहिए। गुस्सा नहीं करना, अचानक हंसना, रोना, चिल्लाना, आदि मेण्टन डिस्ट्रेस है। यह संगीत के अभ्यास में बाधक है, इनसे बचना चाहिए। डॉ. उन्नीकृष्णन ने कई विद्यार्थियों के श्वांस व स्वर के गलतियों की जानकारी करवा कर उन्हें सही करने के उपाय बताये।
प्रशिक्षण के सत्रों में प्रशिक्षुओं को कुशल प्रशिक्षक दीपक माधुर व डॉ. गरिमा विजय ने सुगम संगीत का अभ्यास करवाया। उन्होंने हरिवंशराय बच्चन के गीत दिन दलता है जल्दी जल्दी व नीड़ का निर्माण फिर फिर गीतों का अभ्यास करवाया। इन सत्रों में पं पुखराज शर्मा ने राजस्थानी मांड की जानाकरी देते हुए मूमल गीत का अभ्यास करवाया। पं. शर्मा ने राजस्थानी रजवाड़ी गीतों की जानकारी भी दी।
प्रशिक्षण के समापन सत्र में विरासत संवर्द्धन संस्थान के अध्यक्ष टोडरमल लालानी ने कहा कि हमारा उद्येश्य है कि हमारी विरासत यानि धरोहर संरक्षित रहे व सवर्द्धित हो। लालानी ने विरासत संवर्द्धन संस्थान द्वारा किये गये आयोजनों की संक्षिप्त जानकारी देते हुए कहा कि सुर संगम के साथ इस प्रकार का उच्च स्तरीय प्रशिक्षण निश्चय ही बहुत सार्थक रहा है।
टी. एम. लालनी ने कहा कि के. सी. मालू जी राजस्थानी लोकगीतों को संग्रहित कर उनके प्रकशन का जो कार्य किया है, यह उल्लेखनीय है। उन्होंने कामना की कि राजस्थान की लोक संस्कृति की रोचकता अक्षुण रहेगी। टोडरमल लालानी ने कहा कि संगीत गायन में मैं तानसेन नहीं मगर ‘कानसेन’ अवश्य हूं। संगीत के प्रति मेरी बचपन से ही रुचि रही है। उन्होंने इस प्रशिक्षण कार्यशाला में विशेष सहयोगी रहे सम्पतलाल दूगड़, हेमन्त डागा एवं सभी सहयोगियों को धन्यवाद देते हुए सुर संगम के के. सी. मालू का पुनः धन्यवाद ज्ञापित किया। लालानी ने कहा कि इस बार प्रशिक्षण में प्रचण्ड गर्मी रही है। आगे सर्दियों या अनुकूल मौसम में इस तरह के आयोजन किये जायें तो प्रसन्नता होगी।
सुर संगम के अध्यक्ष के.सी. मालू ने इस प्रशिक्षण कार्यशाला में टी. एम. लालानी की व उनके ऑडिटोरियम में मिली आयोजन, आवास, भोजन आदि सभी प्रकार की अनुकूल सुविधाओं हेतु आभार व्यक्त किया। मालू ने कहा कि संगीत प्रशिक्षण कार्यशाला में भारत के प्रसिद्ध संगीत गुरु पण्डित भवदीप जयपुर वाले व प्रो. डॉ. टी. उन्नीकृष्णन् दीपक माथुर, पु.पुखराज जैसे लब्ध प्रतिष्ठित संगीत प्रशिक्षकों ने जो प्रशिक्षण दिया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। मालू ने इस कार्यशाला में टोडरमल लालानी के अमूल्य सहयोग हेतु आभार व्यक्त करते हुए उनके स्वस्थ, सुदीर्घ व कल्याणकारी जीवन की कामना की।
सभी प्रतिभागी इस 6 दिवसीय कार्यशाला से अभिभूत थे। उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि इस कार्यशाला में उन्हें बहुत कुछ सीखने का मिला है। विभिन्न रागों के साथ ही वॉयस नियंत्रण व उससे जुड़ी समस्याओं व उसके समाधान की इतनी सटीक जानकारी किसी पाठ्यक्रमों में उपलब्ध नहीं हो सकती, जो यहां आकर मिली है। उन्होंने प्रशिक्षण के साथ ही बीकानेर में प्राप्त अनुकूल सभी व्यवस्थाओं व आतिथ्य भाव के प्रति संतुष्टि व आभार व्यक्त किया।
सभी प्रतिभागियों को प्रो. डॉ. टी. उन्नीकृष्णन ने प्रमाण पत्र प्रदान कर प्रोत्साहित किया।