एमजीएसयू में नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान की रखी गई नींव, हुआ शिलान्यास

एमजीएसयू : स्वयं अपने द्वारा लिखित पत्रों में बैलोस स्वरूप में दिखते हैं नेताजी – आचार्य अन्नाराम शर्मा

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बीकानेर , 23 जनवरी। एमजीएसयू में अधिष्ठाता छात्र कल्याण, राष्ट्रीय सेवा योजना, व अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संयुक्त तत्वाधान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती समारोह आयोजित किया गया एवं भूमि पूजन के साथ सुभाष उद्यान की नींव रखी गई जहां भविष्य में नेताजी की मूर्ति प्रतिस्थापित की जाएगी। मुख्य कार्यक्रम के आरंभ में मां सरस्वती की प्रतिमा व नेताजी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन पश्चात अधिष्ठाता छात्र कल्याण व कार्यक्रम संयोजक डॉ. मेघना शर्मा ने स्वागत उद्बोधन देते हुए सुभाष पर रचे साहित्य के अध्ययन को विद्यार्थियों के व्यक्तित्व निर्माण हेतु महत्वपूर्ण बताया।

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वित्त नियंत्रक अरविंद बिश्नोई ने अपने उद्बोधन में कहा कि ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध नेताजी एक ऐसी दीवार बनकर खड़े हो गए थे जिसे भेदना अंग्रेजों के लिए एक समय में सर्वाधिक जटिल कार्य हो गया था। मंच संचालन करते हुए राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी डॉ. उमेश शर्मा ने मंच से अतिथियों का परिचय दिया।
विशिष्ट अतिथि डॉ. बसंती हर्ष ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के सांस्कृतिक मूल्यों को सुस्थापित करने के स्वप्न को बोस ने आगे बढ़ाया। महिला सशक्तिकरण की दिशा में पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर अपने व्याख्यानों में सुभाष चंद्र बोस ने हमेशा प्रहार किया।

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मुख्य वक्ता अखिल भारतीय साहित्य परिषद के क्षेत्रीय अध्यक्ष आचार्य अन्नाराम शर्मा ने अपने व्याख्यान में बताया कि नेताजी के व्यक्तित्व के अत्यंत विस्तृत स्वरूप को हम उनके द्वारा लिखे पत्रों में देख सकते हैं। उन्होंने स्वराज की परिकल्पना को जिया वह अपने आप को स्वाधीनता की लड़ाई हेतु झोंक डाला। सिविल सर्विस में चयनित होने के बावजूद उन्होंने त्यागपत्र इसलिए दे दिया क्योंकि वह ब्रिटिश सत्ता के अधीन कार्य न करने के अपने सिद्धांतों की रक्षा करना चाहते थे।अपने भ्राता शरद चंद्र बोस को उन्होंने सर्वाधिक पत्र लिखे हैं और हमेशा इस मूलभूत सिद्धांत के साथ जिए कि व्यक्ति के निर्माण से राष्ट्र का निर्माण होगा।

अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलगुरु आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि बोस जीवनभर स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्तित्व को सहेजे रहे। उन्होंने गांधी जी को एक पत्र लिखा जिसमें यह कहा कि आजाद भारत कैसा होगा, इसका मूल्यांकन हमें पहले ही करना होगा। अभिव्यक्ति की आजादी का महत्व तब मालूम पड़ता है जब उसे पर ताले लगते हैं। एक ऐसा सैनिक जिसने पूरे राष्ट्र में स्पंदन और स्फूर्ति भर दी, राष्ट्रवादिता का बिगुल बजाते हुए स्वयं को आहूत कर दिया वह व्यक्ति था सुभाष। दीक्षित ने सुभाष के पत्रों का संकलन व विभिन्न पक्षों का अध्ययन करना भी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक बताया।

अपने उद्बोधन में दीक्षित ने आगे कहा कि कई बार कांग्रेस से निराशा के भाव होने पर भी बोस ने एक भी पत्र में गांधी जी के विरोध में कभी कुछ नहीं लिखा और उन्हें हमेशा राष्ट्रपिता की उपाधि देकर ही संबोधित किया। बोस के दौर के राष्ट्रगान को कुलपति दीक्षित ने अपने मोबाइल के ज़रिए विद्यार्थियों को सुनाया और कहा कि यह भारत भाग्य विधाता नामक पुस्तक में समाहित है। आयोजन स्थल पर नेताजी के जीवन पर आधारित पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन सह अधिष्ठाता छात्र कल्याण, डॉ. प्रभु दान चारण द्वारा दिया गया। आयोजन में प्रो. अनिल कुमार छंगाणी, प्रो. राजाराम चोयल, डॉ. अनिल कुमार दुलार, डॉ. गौतम मेघवंशी, डॉ. धर्मेश हरवानी, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ प्रगति सोबती, डॉ संतोष कंवर शेखावत, डॉ. बिठ्ठल बिस्सा, डॉ. गिरिराज हर्ष, डॉ. प्रकाश सहारण, मुकेश पुरोहित, डॉ. सुरेंद्र गोदारा, साहित्य से जुड़ी इंद्रा मिश्रा, अब्दुल शकूर सिसोदिया के अलावा विभिन्न विभागों के अतिथि शिक्षक व विद्यार्थी शामिल रहे।

 

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