संकीर्ण विचारधारा से उबर कर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएं : डॉ मेहता
- हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए इसका रोजगारोन्मुखी होना आवश्यक है- छाजेड़
- अभियांत्रिकी के पाठ्यक्रम भी हिन्दी में उपलब्ध हो रहे हैं- हरदीपसिंह
बीकानेर , 14 सितम्बर। राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर परिसर पर आज हिन्दी दिवस के अवसर पर हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ एस सी मेहता ने कहा की देश के विभिन्न प्रांतों में रहने वाले सभी लोग अगर संकीर्ण विचारधारा से उबर कर सोचेंगे तो हिंदी राष्ट्रभाषा बन जाएगी ।
उन्होंने कहा की भारत में कई राज्य हैं एवं हर राज्य का एक मुख्यमंत्री है जो वहाँ की स्थानीय भाषा, संस्कृति एवं समाज का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन देश का प्रधानमंत्री तो एक ही होता है उसी तरह राज्य अपनी -अपनी भाषा में संवाद करें लेकिन देश की राष्ट्रभाषा तो एक ही हो सकती है एवं वह है हिन्दी ।
मेहता ने कहा कि आजादी से पूर्व महात्मा गांधी ने 1917 में कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह सरल है एवं अधिकांश भारतीयों द्वारा बहुत बड़े भूभाग में बोली जाती है । तब से लेकर अब तक हिंदी भाषा की प्रगति सिर्फ इतनी हुई कि 14 सितम्बर सन् 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया एवं इसी लिए प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाने लगा । इस दौरान संवैधानिक प्रगति चाहे मामूली हुई हो लेकिन वास्तविकता में हिन्दी भाषा देश के कोने-कोने तक ही नहीं बल्कि विश्व में एक विशिष्ट स्थान बनाने में सफल रही है ।
विशिष्ट अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप उपस्थित प्रतिष्ठित समाज सेवी, संपादक जैन लूणकरण छाजेड़ ने हिन्दी भाषा की सुरक्षा एवं संवर्धन विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा की संस्कृति और इसकी ऊंचाईयों को जानना है, तो उसकी भाषा को जानें। उन्होंने कहा कि हिंदी, इस कसौटी पर खरी उतरती है। यह भाषा वैज्ञानिकता लिए हुए है। यह हमारी अस्मिता की पहचान है। उन्होंने कहा कि हिंदी धीरे-धीरे दुनिया की भाषा बनने की ओर अग्रसर है। आज दुनिया के लगभग प्रत्येक देश के विश्वविद्यालय में हिंदी को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
पत्रकार छाजेड़ ने कहा कि सरकारी कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आज का कार्यक्रम भी उसका अंग है। उन्होंने बताया कि हिन्दी भाषा की सुरक्षा और संवर्द्धन के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। जैसे 1. शिक्षा प्रणाली में सुधार, 2. साहित्य और ,हित्यकारों का प्रोत्साहन, 3. मीडिया में हिन्दी का प्रयोग, 4. तकनीकी विकास, 5. सरकारी नीति और प्रयास, 6. सामाजिक जागरूकता, 7. युवाओं को प्रेरित करना, 8. अनुवाद और अंतरराष्ट्रीय प्रसार, 9. सांस्कृतिक गतिविधियों के तहत सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा दिया जाए।
उन्होंने जोर देकर कहा कि हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए इसका रोजगारोन्मुखी होना आवश्यक है इसलिए अधिक से अधिक तकनीकी पाठ्यक्रम हिन्दी में उपलब्ध हों । उन्होंने कहा की अच्छे पुस्तकालय हों, हिन्दी में अच्छा साहित्य उपलब्ध हो, जागरूकता कार्यक्रम समय समय पर होते रहें, अच्छे हिन्दी साहित्य का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो एवं इन सबकी शुरुआत अपने स्वयं एवं अपने घर से करनी चाहिए । उन्होंने प्रिन्ट, सोशल मिड़िया एवं मनोरंजन संसाधनों के माध्यम से हो रहे हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार पर भी अपने अनुभव साझा किए । शुरुआत हम अपने घर से करें। बच्चों को अपनी राष्ट्रभाषा बचपन से सिखाना चाहिए। कार्यशाला से पहले उन्होंने केंद्र के हर्बल गार्डन में पौधारोपण किया एवं केन्द्र के संग्रहालय का अवलोकन भी किया ।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित बीकानेर अभियांत्रिकी महाविद्यालय के प्रोफेसर हरजीत सिंह ने कहा कि अगर आप हिन्दी से प्रेम करते हैं तो हिन्दी को अपनाए । अगर आप मन से कोई भी कार्य करेंगे तो उसका सफल होना अवश्यम्भावी है । इन्होंने बताया की अब अभियांत्रिकी के पाठ्यक्रम भी हिन्दी में उपलब्ध हो रहे हैं एवं हम सभी प्रोफेसर यह सुनिश्चित करते हैं की कोई भी बच्चा अंग्रेजी कम आने की कीमत नहीं चुकाए । हमारा मुख्य ध्येय बच्चे को अभियांत्रिकी में निपूर्ण करना होता है न कि उसकी अंग्रेजी की परीक्षा लेना । उन्होंने अपने जीवन में भारतीय नौसेना एवं उसके पश्चात अभियांत्रिकी महाविद्यालय महाविद्यालय से जुड़े हुए भाषा संबंधित कई संस्मरण साझा किए ।
इस अवसर पर परिसर के राजभाषा अधिकारी सत्यनारायण पासवान ने अपना संदेश साझा किया एवं बताया की इस दौरान हिन्दी सप्ताह मनाया जाएगा एवं हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए कई प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएगी । आज के कार्यक्रम का संचालन सुहेब कुरेशी ने किया एवं कार्यक्रम मे डॉ रमेश,डॉ राव , डॉ कुट्टी , डॉ जितेन्द्र सिंह एवं केंद्र के अन्य अधिकारीयों एवं कर्मचारियों आदि ने भाग लिया ।