महिमा जन्मदाता की कार्यशाला में कहा अपने मां बाप पर जुबान की तेजी मत चलाना
कोयम्बतूर, 12 अगस्त। तेरापंथ जैन भवन में आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री दीप कुमार के सान्निध्य में “महिमा जन्मदाता की” कार्यशाला का आयोजन तेरापंथी सभा कोयम्बतूर द्वारा किया गया। साथ में सामूहिक एकासन का भी आयोजन हुआ।
मुनि श्री दीप कुमारजी ने कहा- मां – पिता का रिश्ता दुनिया का सबसे बड़ा रिश्ता होता है क्योंकि वह रिश्ता जन्म से नौ माह पहले ही शुरु हो जाता है। वे लोग किस्मत वाले होते हैं जिनके सिर पर मां – बाप का साया होता है । याद रखें माता – पिता बूढ़े पेड़ की तरह होते हैं जो फल भले न दें पर छाया जरूर देते हैं।
मुनिश्री ने कहा कि संसार में पृथ्वी बहुत विराट है, आकाश बहुत विशाल है और ब्रह्माण्ड अन्तहीन है किन्तु मां बाप की विशालता इससे भी अधिक है। मां विश्व भर की लाखों शब्द संपदा वाले शब्द भण्डार का सबसे छोटा किंतु अपने आप मैं परिपूर्ण वात्सल्य भावना से सिक्त रहस्यगर्भित शब्द है। माता-पिता का सबसे असली पहचान बच्चे ही होते हैं। बच्चों मैं उनके संस्कार सहज प्रतिविम्बित होते हैं।
उन्होंने कहा कि बच्चे नागरिकता का पहला पाठ मां के स्नेह और पिता के संरक्षण में ही सीखता है।मुनिश्री ने कहा- वर्तमान परिवेश में माता-पिता अपने मूल स्वरूप को भूलते जा रहे हैं। बच्चों को समय, संस्कार, संरक्षण नहीं दे पा रहे हैं, बहुत बड़ी विडम्बना दिखाई दे रही है। मुनिश्री ने विस्तार से महिमा जन्मदाता की विषय पर करीब 45 मिनट धारा प्रवाह प्रवचन किया। अनेक लोगों की आंखों से अश्रु धारा बह रही थी।
मुनिश्री काव्य कुमार जी ने कहा- मां – पिता के सिवाय अपना कोई नहीं होता। अपने मां-बाप पर इतना विश्वास करो जितना दवाइयों पर करते हो। वह भले ही कड़वी होगी पर फायदेमंद होगी।दुनिया में बिना स्वार्थ के सिर्फ माता – पिता ही प्यार कर सकते हैं।अपने मां बाप पर जुबान की तेजी मत चलाना क्योंकि वे ही लोग हैं जिन्होंने तुम्हे बोलना सिखाया।
मुनि श्री दीप कुमार जी ने सामूहिक एकासन के प्रत्याख्यान कराए। मुनि श्री जी की प्रेरणा से इसमें लगभग 151 लोगो ने प्रत्याख्यान किए। मुनि श्री जी ने तप की महत्ता के बारे में बताया ।