07 March 2023 10:48 AM
कीर्ति दुबे, बीबीसी संवाददाता
बीते दिनों दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी चर्चा में रही. सीबीआई ने दिल्ली सरकार की साल 2021 की शराब नीति में अनियमितताओं के सिलसिले में ये गिरफ़्तारी की है. इस गिरफ़्तारी को आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने राजनीति से प्रेरित बताया है. पार्टियों का कहना है कि केंद्र सरकार उन राज्यों के मंत्रियों और नेताओं को टार्गेट कर रही है जहाँ विपक्षी पार्टियाँ सरकार चला रही हैं.
इसी तरह इन दिनों छ्त्तीसगढ़ में एक और केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी पूरी तरह सक्रिय है. एक के बाद एक छ्त्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के मंत्रियों और कई नौकरशाहों को 2020 में हुए कोयले से जुड़े एक घोटाले के मामले में अक्टूबर 2022 से कुछ-कुछ दिनों के अंतराल पर पूछताछ के लिए समन किया जा रहा है और कई गिरफ्तारियाँ की जा चुकी हैं.
बीते कुछ महीनों से बार-बार ये बात विपक्ष और एक तबका दोहरा रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों को मोदी सरकार विपक्ष को 'काबू' में करने के लिए इस्तेमाल कर रही है. हालाँकि जब देश में यूपीए की सरकार थी तो सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में टिप्पणी की थी कि 'सीबीआई सरकार का तोता है.' केंद्र में बैठी सरकार अपने मातहत काम करने वाली एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ कर रही है, यह आरोप नया नहीं है. ऐसे आरोप अतीत में भी सरकारों पर लगते रहे हैं लेकिन एक नया ट्रेंड है प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी का बीते नौ सालों में हुआ पुरज़ोर इस्तेमाल. बीबीसी ने ऐसे ही कुछ मामलों को बारीक़ी से समझा, जानकारी जुटाई और ये भी समझना चाहा कि क्या बीते नौ सालों में ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ किया गया, इसके अलावा इसकी भी पड़ताल की गई जब विपक्षी पार्टी के नेता दल-बदलकर बीजेपी में शामिल हुए तो उनके ख़िलाफ़ शुरू की गई जाँचों का क्या हुआ? इसके लिए हमने महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, दिल्ली के लिए ऐसे मामले चुने जिनमें विपक्षी पार्टी के नेताओं को शिकंजे में लिया गया था.
बीते साल 23 फरवरी, 2022 को एनसीपी नेता नवाब मलिक को प्रवर्तन निदेशालय ने घंटों चली पूछताछ के बाद गिरफ़्तार कर लिया था. नवाब मलिक पर आरोप है कि उन्होंने बाज़ार से काफ़ी कम कीमत में दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के क़रीबी सलीम पटेल से संपत्ति खरीदी. ये 22 साल पुराना मामला है जिस पर ईडी ने प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्डरिंग एक्ट यानी पीएमएलए के तहत कार्रवाई की. इससे पहले जनवरी, 2021 में नवाब मलिक के दामाद समीर ख़ान को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने ड्रग से जुड़े मामले में गिरफ़्तार किया था. इसके बाद अक्टूबर, 2021 में शाहरूख़ ख़ान के बेटे आर्यन ख़ान को एनसीबी ने गिरफ़्तार किया था. इस पूरे मामले में नवाब मलिक ने कई प्रेस कॉन्फ्रेंस करके एनसीबी और बीजेपी पर आरोप लगाए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि एनसीबी और बीजेपी साजिश के तहत आर्यन ख़ान को किडनैप किया. उन्होंने इन केस को फर्ज़ी बताया था.
बीते साल अदालत ने आर्यन ख़ान को सबूतों के अभाव में सभी आरोपों से बरी कर दिया और समीर ख़ान को भी ज़मानत दे दी, लेकिन नवाब मलिक इस वक़्त जेल में हैं, ख़राब सेहत का हवाला देकर ज़मानत लेने की कोशिश कर रहे हैं. महाराष्ट्र की ही राजनीति में एक और नाम है नारायण राणे, नारायण राणे शिव सेना और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में रहे.
शिवसेना और बीजेपी गठबंधन की सरकार के दौरान 1999 में वो कुछ वक़्त के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे. साल 2016 में बीजेपी के पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने नारायण राणे पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया, सोमैया ने प्रवर्तन निदेशालय के तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर सत्यब्रत कुमार को एक चिट्ठी लिखकर नारायण राणे और उनके परिवार के बिजनेस की जाँच कराने की मांग की थी.नारायण राणे पर 300 करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिंग करने का आरोप है. अक्टूबर 2017 में नारायण राणे कांग्रेस से अलग हो गए और उन्होंने 'महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष' पार्टी बनाई और एनडीए के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया. आज नारायण राणे केंद्र सरकार में मंत्री हैं. क्या नारायण राणे के ख़िलाफ़ लगे गंभीर आरोपों की जाँच हुई, केंद्रीय एजेंसियों ने क्या कोई कार्रवाई की? इसका जवाब है--नहीं. ये दो मामले एक ही राज्य के हैं जहाँ कांग्रेस में रहते हुए राणे पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे और वे केंद्र सरकार में मंत्री हैं, जबकि 22 साल पहले के एक प्रॉपर्टी सौदे की वजह से एनसीपी नेता नबाव मलिक बीते साल से जेल में हैं.
2019 में बदला क़ानून और बढ़ी ईडी की ताक़त
साल 2019 में केंद्र सरकार ने एक नोटिफ़िकेशन जारी करके प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) में बदलाव किए. इसके तहत ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में स्पेशल पावर दिया गया. पीएमएलए के सेक्शन 17 के सब-सेक्शन (1) में और सेक्शन 18 में बदलाव कर दिया गया और ईडी को ये शक्ति दी गई कि वह इस क़ानून के तहत लोगों के आवास पर छापामारी, सर्च और गिरफ़्तारी कर सकती है. इससे पहले किसी अन्य एजेंसी की ओर से दर्ज की गई एफ़आईआर और चार्जशीट में पीएमएलए की धाराएँ लगने पर ही ईडी जांच करती थी, लेकिन अब ईडी खुद ही एफ़आईआर दर्ज करके गिफ़्तारी कर सकती है. दिलचस्प बात ये है कि पीएमएलए में बदलाव को मनी बिल की तरह पेश किया गया. मनी बिल को राज्यसभा में पेश नहीं करना पड़ता, इसे सीधे राष्ट्रपति की सहमति लेकर लोकसभा में पेश किया जाता है और वहीं से वह कानून बन जाता है.
ग़ौर करने की बात है कि उस वक़्त यानी 2019 में राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत नहीं था. विपक्ष ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि पीएमएलए में मनी बिल जैसी कोई भी बात नहीं है फिर भी इसे मनी बिल के तहत लोकसभा से पारित कराने के पीछे केंद्र सरकार की मंशा है कि वह इसे मनमाने ढंग से इस्तेमाल करना चाहती है.
पीएमएलए के इस बदलाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई लेकिन कोर्ट ने इस संशोधन को वाजिब ठहराया. केंद्र सरकार का तर्क था कि गंभीर वित्तीय गड़बड़ियों की जांच के लिए ये ज़रूरी है कि ईडी को अधिक शक्तियां दी जाएँ.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा बीते कुछ सालों से अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं. कभी असम की कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे हिंमत बिस्वा आज बीजेपी की सरकार में असम के मुख्यमंत्री हैं और बीजेपी के चुनावी अभियान में स्टार कैम्पेनर हैं. असम की तरुण गगोई सरकार में सबसे पावरफ़ुल मंत्री रहे हिमंत बिस्वा शर्मा और गोगोई के बीच रिश्ते 2011 के चुनाव के बाद बिगड़ते चले गए, जुलाई 2014 को हिमंत विस्वा शर्मा ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन तब तक उनका नाम शारदा चिट फ़ंड घोटाले से जुड़ चुका था. अगस्त 2014 में हिमंत बिस्वा शर्मा के गुवाहाटी स्थित आवास और उनके चैनल न्यूज़ लाइव के दफ़्तर पर सीबीआई की छापेमारी हुई. इस चैनल की मालिक उनकी पत्नी रिंकी भुयन शर्मा हैं. नवंबर 2014 को हिमंत बिस्वा शर्मा से सीबीआई के कोलकाता दफ़्तर में घंटों तक पूछताछ की गई. उस समय मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि हिमंत बिस्वा शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने शारदा ग्रुप के मालिक और इस मामले में मुख्य अभियुक्त सुदीप्तो सेन से 20 लाख रूपये हर महीने लिए ताकि समूह राज्य में अपना व्यापार ठीक से चला सके.जनवरी 2015 को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सारे चिट फ़ंड के केस की जाँच साबीआई को सौंपने के आदेश दिए और अगस्त 2015 में हिमंत बिस्वा शर्मा बीजेपी में शामिल हो गए. फ़रवरी 2019 में असम कांग्रेस के नेता प्रद्योत बर्दोलोई ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये आरोप लगाया कि "हिमंत बिस्वा शर्मा के बीजेपी में शामिल होते ही असम में शारदा चिटफ़ंड घोटाले की जाँच रोक दी गई है."
इस मामले की जाँच कहाँ तक पहुँची है इसकी कोई जानकारी नहीं है. लेकिन एक बात तय है कि बीजेपी में शामिल होने और राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें कभी सीबीआई ने पूछताछ के लिए नहीं बुलाया. हिमंत को बीजेपी ने पूर्वोत्तर में गठबंधन दल नॉर्थ-ईस्ट डेवलपमेंट अलायंस यानी नेडा का प्रमुख भी बनाया और वह बीजेपी के पूर्वोत्तर में विस्तार के हीरो माने जाते हैं.
असम के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से बीते साल अगस्त में तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को प्रवर्तन निदेशालय ने कोयले की चोरी से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए बुलाया. ये तीसरी बार था जब अभिषेक बनर्जी को कोलकाता के ईडी दफ़्तर में पूछताछ के लिए बुलाया गया.
कोयले के करोड़ों के ग़ैर-कानूनी खनन के इस मामले की जाँच सीबीआई और ईडी दोनों कर कर रही हैं. 19 मई 2022 को सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट दायर की और 41 लोगों को अभियुक्त बनाया, हालांकि इस चार्जशीट में अभिषेक बनर्जी का नाम नहीं है.
ये मामला है नवंबर 2020 का, जब इस्टर्न कोलफ़ील्ड लिमिटेड के विजिलेंस विंग को पश्चिम बीरभूम के इलाके से 'कोयले की बड़े पैमाने पर चोरी' के साक्ष्य मिले और इस आधार पर उसने एफ़आईआर दर्ज कराई. आरोप है कि यहाँ कोयले की खादान में तड़के ही ग़ैरकानूनी रूप से खुदाई करके बोरियों में भरकर कोयला ट्रक, साइकिल के ज़रिए लोड करके चोरी किए जा रहे थे.मामले में राजनीतिक ट्विस्ट तब आया जब 2021 में अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजिरा बनर्जी को ईडी ने पूछाताछ के बुलाया, ये समन 2021 में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले किया गया था यानी पूछताछ की पृष्ठभूमि में विधानसभा चुनाव था. ममता बनर्जी ने इस समन को 'बीजेपी की डराने की नाकाम कोशिश' बताया था और अब तक इस केस में जांच चल रही है.
दिसंबर 2020 में तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले शुभेंदु अधिकारी कभी ममता बनर्जी के क़रीबी और टीएमसी में पावरफ़ुल नेता माने जाते थे, लेकिन 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अधिकारी ने बीजेपी ज्वॉइन की और आज विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. बात है साल 2014 की. पत्रकार सैमुअल मैथ्यू ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया. इस स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया गया कि टीएमसी के मुख्य नेता शुभेंदु अधिकारी, मुकुल रॉय और फ़िरहाद हकीम जैसे कई अन्य नेता कैमरे पर लाखों की रिश्वत लेने की बात स्वीकार करते हुए दिख रहे हैं. इसे नारदा स्टिंग केस के नाम से जाना जाता है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमस की जीत के तुरंत बाद मई 2021 में सीबीआई ने इस केस में चार टीएमसी नेताओं को गिरफ्तार किया. जिसमें ममता बनर्जी की कैबिनेट के मंत्री फिरहाद हकीम और पश्चिम बंगाल के पंचायत मंत्री सुब्रता मुखर्जी भी थे.
इस मामले में ईडी ने सितंबर में एक चार्जशीट फ़ाइल की और इसमें फ़िरहाद हाकिम, सुब्रता मुख्रजी, टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पूर्व टीएमसी नेता सोवन चटर्जी का नाम शामिल किया गया. सोवन चटर्जी ने भी बंगाल के विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी छोड़ बीजेपी ज्वाइन की थी लेकिन कुछ महीनों बाद ही अपनी मनपसंद सीट से टिकट न मिलने पर उन्होंने बीजेपी भी छोड़ दी. इस चार्जशीट में ना तो शुभेंदु अधिकारी का नाम था और ना ही मुकुल रॉय का. ये दोनों ही नेता अब बीजेपी में हैं जबकि इस स्टिंग ऑपरेशन में शुभेंदु अधिकारी 5 लाख और मुकुल रॉय 15 लाख रूपये की रिश्वत लेने के लिए रज़ामंद हुए थे.
बीते साल मार्च में लोकसभा में दिए गए जवाब में वित्त मंत्रालय ने बताया था कि साल 2004 से लेकर 2014 तक ईडी ने 112 जगहों पर छापेमारी की और 5346 करोड़ की संपत्ति ज़ब्त की गई. लेकिन साल 2014 से लेकर 2022 के आठ वर्षों के बीजेपी के शासनकाल में ईडी ने 3010 रेड की और लगभग एक लाख करोड़ की संपत्ति अटैच की गई.
बीते साल 'इंडियन एक्सप्रेस' ने बताया कि पिछले आठ सालों में राजनीतिक लोगों के ख़िलाफ़ ईडी के मामले चार गुना बढ़े हैं. साल 2014 से 2022 के बीच 121 बड़े राजनेताओं से जुड़े मामलों की जाँच ईडी कर रही है, इनमें से 115 नेता विपक्षी पार्टियों से हैं यानी 95 फ़ीसदी मामले विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ हैं. अब इसकी तुलना यूपीए के समय से करें तो 2004 से लेकर 2014 के दस सालों में 26 नेताओं की जाँच ईडी ने की इनमें से 14 नेता विपक्षी पार्टियों के थे. हालांकि दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि हमारे पास ऐसा कोई डेटा नहीं है जो सांसदों और विधायकों के खिलाफ़ दर्ज़ केस की जानकारी देता हो. 'हम आम केस और राजनेताओं के केस को अलग-अलग तरह से नहीं देखते.' ईडी की तरह सीबीआई के मुकदमों के आंकड़े देखें तो यूपीए के दस सालों में 72 राजनेता सीबीआई के स्कैनर में आए और उनमें से 43 नेता विपक्ष के थे यानी तकरीबन 60 प्रतिशत. साल 2014 से लेकर 2022 तक एनडीए की सरकार में 124 नेता सीबीआई के शिकंजे में आए और इनमें से 118 नेता विपक्षी पार्टी के थे यानी 95 फ़ीसदी विपक्ष के नेता है.
मोदी सरकार पर ईडी के राजनीतिक इस्तेमाल करने के बार-बार आरोप लगते रहे हैं, कुछ जानकार महाराष्ट्र को इस विधि का टेस्टिंग ग्राउंड भी कहते हैं. बात है बीते साल मई की. जब शिवसेना का एक गुट एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी हो गया था. इन विधायकों को पहले गुजरात और फिर रातोंरात गुवाहाटी ले जाया गया. हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामे के बाद एकनाथ शिंदे गुट की सरकार बनी और इसके लिए जुलाई में पहला फ़्लोर टेस्ट हुआ तो उद्धव गुट के नेताओं ने विधानसभा में 'ईडी-ईडी' के नारे लगाए. शिंदे गुट पर उद्धव ने आरोप लगाया कि वह ईडी के डर और पैसों के लालच में शिवसेना के विधायकों को तोड़ रहे हैं और बीजेपी के साथ सरकार बना रहे हैं. इस नारे का जवाब देवेंद्र फडणवीस ने दिया कि- "ये ईडी की सरकार है और इस ईडी का अर्थ है एकनाथ और देवेंद्र फडणवीस की सरकार."
जब महाराष्ट्र में ये सियासी फेरबदल चल रहा था, उसी बीच बीजेपी के ख़िलाफ़ मुखर रहे शिव सेना नेता संजय राउत को ईडी ने 27 जुलाई, 2022 को समन किया. एक अगस्त , 2022 को राउत को मुंबई के गोरेगाँव में पात्रा चॉल रिडेवलपमेंट से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के एक केस में गिरफ़्तार कर लिया गया. पात्रा चॉल के रिडेवेलपमेंट का काम गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, महाराष्ट्र हाउसिंग डेवलपमेंट अथॉरिटी के साथ मिलकर कर रही थी. ईडी का कहना है कि गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन, हाउसिंग डेवेलेपमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) की सहायक कंपनी है. एचडीआईएल वो कंपनी है जिसकी जाँच पंजाब-महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक से जुड़े 4300 करोड़ रूपये के फ्रॉड केस में हो रही है. ईडी का कहना है कि एचडीआईएल ने करोड़ों रूपए प्रवीण राउत के खाते में ट्रांसफ़र किए. प्रवीण राउत संजय राउत के क़रीबी हैं. नवंबर 2022 में जब संजय राउत को एक सेशन कोर्ट ने ज़मानत दी तो उस वक्त कोर्ट ने कहा था- "कोर्ट में जो सबूत दिए गए और चर्चाएँ हुईं उनमें प्रवीण राउत पर तो भ्रष्टाचार के केस हैं, लेकिन संजय राउत को बेवजह गिरफ़्तार किया गया."
शिवसेना के नेता अर्जुन खोटकर 2016-2019 के बीच बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार में मंत्री रहे. ईडी उन पर महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले को जाँच कर रही है. ईडी ने जून 2022 में अर्जुन खोटकर के आवास पर छापेमारी की थी और उनकी 78 करोड़ की प्रॉपर्टी जब्त कर ली थी. जुलाई में उद्धव गुट छोड़ कर खोटकर शिंदे गुट में शामिल हो गए. जब वो शिंदे गुट में शामिल हो रहे थे उस वक्त उन्होंने कहा था कि 'वह हालात के हाथों मजबूर हैं.' शिंदे गुट में शामिल होने के बाद उनके ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कार्रवाई की कोई ख़बर नहीं है.
लगभग ऐसा ही मामला शिवसेना की नेता भावना गवली का भी है. महाराष्ट्र में भावना गवली के डिग्री कॉलेज हैं और उन पर पैसों के हेर-फेर का आरोप है. ईडी गवली के खिलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग के एक केस की जांच कर रही थी. ईडी का आरोप है कि गवली ने एक एनजीओ को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल दिया. उन पर करोड़ों की धोखाधड़ी करने का आरोप है. गवली शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हुईं और इसके बाद से ईडी इस मनी लॉन्ड्रिंग के केस में क्या कर रही है इसकी कोई जानकारी नहीं है.
आज जिस नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नाम है, ये केस सुब्रमण्यम स्वामी ने साल 2012 में दर्ज कराया. इस केस में 120 (आपराधिक साजिश) और 420 (धोखाधड़ी) जैसी धाराएँ लगाई गई हैं, पीएमएलए की इसमें कोई धारा नहीं थी लेकिन फिर भी ईडी ने इस मामले की जांच इस तर्क के साथ शुरू की कि इस मामले में आईटी विभाग की चार्जशीट है और ये दो धाराएं हैं . ऐसे में वह इस केस की जाँच कर सकती है जबकि ये मामला 2019 के पहले का है, तब तक ईडी के पास उन्हीं मामलों की जाँच करने का अधिकार था जिसमें पहले से दर्ज एफ़आईआर में पीएमएलए के सेक्शन लगाए गए हों.
यूपीए सरकार के संशोधन से पहले आतंकवाद जैसे मामलों को छोड़ दें तो मनी लॉन्ड्रिंग के मामले वहीं लागू किए जाते थे जहाँ 30 लाख की रक़म या उससे ज़्यादा का हेर-फेर हो इसलिए 2012 तक मनी लॉन्ड्रिंग के 165 मामले ही थे. लेकिन साल 2013 में किए गए संशोधन
में 30 लाख की सीमा को समाप्त कर दिया गया, और रक़म कितनी भी कम हो उसे जाँच के दायरे में लाया गया. लेकिन पीएमएलए एक्ट में सबसे गंभीर बदलाव 2019 में हुए जिसके केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को ज़बरदस्त रूप से शक्तिशाली बनाया. यूपीए ने अगर पीएमएलए की पहुंच को बढ़ाया तो मोदी सरकार ने इसे और कठोर बना दिया. इस एक्ट के सेक्शन 45 में जोड़ा गया जिसके तहत ईडी के अधिकारियों को ये पावर दिया गया कि वो किसी व्यक्ति को बिना वॉरंट गिरफ़्तार कर सकते हैं.
ग़ैर-क़ानूनी पैसों से बनाई गई संपत्ति के स्कोप को भी बढा दिया गया. इसके तहत ईडी को ये शक्ति भी दी गई है कि अगर एजेंसी को लगता है कि "कोई संपत्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ग़ैर-कानूनी तरीके से कमाए गए पैसों से बनाई गई है तो उस पर भी वह कार्रवाई कर सकती है.' अगर पुलिस किसी को समन करती है तो समन करने वाले को ये बताया जाता है कि उसे अभियुक्त के तौर पर समन किया जा रहा है या गवाह के तौर पर लेकिन ईडी को समन के लिए इस तरह की जानकारी देने की ज़रूरत नहीं होती. ईडी की पूछताछ में ईडी के अधिकारियों के सामने दिया गया बयान कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है जबकि अन्य मामलों में बयान तभी कानूनी रूप से वैध होता है जब वह मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी 164 के तहत रिकॉर्ड किया गया हो लेकिन पीएमएलए के तहत ईडी के ऊपर मजिस्ट्रेट की कोई निगरानी नहीं होती.
आम एफ़आईआर में जिस पर आरोप होता है उसके पास अधिकार होता है कि वह एफ़आईआर की कॉपी मांग सके लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग के केस में कॉपी अभियुक्त को देने का कोई प्रावधान नहीं है. जब तक ईडी इस मामले में चार्जशीट दायर न करे तब तक अभियुक्त को पता नहीं होता कि उस पर कौन सी धाराएँ लगी हैं. ईडी के लिए चार्जशीट दायर करने की मियाद 60 दिन है. पीएमएलए के खिलाफ़ एक दलील ये भी दी जाती है कि इस मामले पर खुद को निर्दोष साबित करने का बोझ अभियुक्त पर होता है. ज़मानत मिलने के लिए कई मुश्किलें होती हैं क्योंकि एफ़आईआर ना होने से कोर्ट में खुद पर लगे आरोपों के खिलाफ़ बहस कर पाना अभियुक्त से लिए मुमकिन नहीं होता.
(साभार -बीबीसी )
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