27 January 2023 11:08 PM
नई दिल्ली, 27 जनवरी। अडानी ग्रुप (Adani Group) के शेयरों में शुक्रवार को लगातार दूसरे सत्र में भारी गिरावट आई। इसका असर बैंक एवं फाइनेंशियल शेयरों पर भी देखने को मिला। भारतीय बैंकों ने अडानी ग्रुप की कंपनियों को करीब 80,000 करोड़ रुपये का कर्ज दे रखा है। दूसरी ओर एलआईसी (LIC) का अडानी ग्रुप की कंपनियों में 70,000 करोड़ रुपये से अधिक निवेश है। इस कर्ज और निवेश के डूबने की आशंका से बैंकों और एलआईसी के शेयरों में भारी बिकवाली देखी गई। बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank of Baroda) के शेयरों में सात फीसदी से अधिक गिरावट आई जबकि एसबीआई (SBI) का शेयर 4.69 फीसदी गिर गया। देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी का शेयर एक समय 4.3 फीसदी तक गिर गया था लेकिन बाद में यह 3.25 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुआ।
WealthMills Securities Pvt. के चीफ मार्केट स्ट्रैटजिस्ट क्रांति बाथिनी ने कहा कि मार्केट में निगेटिव सेंटिमेंट हावी है जिसका असर बैंक स्टॉक्स में दिख रहा है। इसकी एक वजह अडानी ग्रुप के बारे में आई रिपोर्ट है। अडानी ग्रुप की टॉप पांच कंपनियों पर पिछले चार साल में कर्ज दोगुना हो गया है। ब्रोकरेज फर्म CLSA की एक रिपोर्ट के मुताबिक अडानी ग्रुप के कुल कर्ज में भारतीय बैंकों की हिस्सेदारी 40 फीसदी से भी कम है। इसके मुताबिक अडानी ग्रुप के कुल कर्ज में बैंकों का 38 फीसदी, बॉन्ड्स और कमर्शियल पेपर्स का 37 फीसदी और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन का 11 परसेंट है। वित्त वर्ष 2022 में अडानी ग्रुप पर दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज था जिसमें करीब 80,000 करोड़ रुपये बैंकों का था।
एसबीआई का कितना कर्ज
कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने एक बयान में कहा कि सरकारी बैंकों ने अडानी ग्रुप के निजी बैंकों की तुलना में दोगुना कर्ज दिया है। इसमें से 40 फीसदी कर्ज एसबीआई ने दिया है। इससे उन लोगों का पैसा डूबने के कगार पर पहुंच गया है जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई एलआईसी और एसबीआई में निवेश की है। रमेश ने कहा कि अगर अडानी ग्रुप पर लगे आरोप सही हैं तो एसबीआई जैसे सरकारी बैंकों को भारी नुकसान हो सकता है। आदर्श पारसरामपुरिया की अगुवाई में एनालिस्ट्स में हाल में एक नोट में कहा कि अडानी ग्रुप में प्राइवेट बैंकों के मुकाबले सरकारी बैंकों का ज्यादा कर्ज है। एसबीआई का कहना है कि अडानी ग्रुप की कंपनियों में उसका कर्ज लिमिट से कम है। हालांकि बैंक ने इस राशि का खुलासा नहीं किया है।
एलआईसी ने अडानी ग्रुप की कंपनियों में अपना निवेश बढ़ाया है। 30 सितंबर, 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक एलआईसी का कुल इक्विटी पोर्टफोलियो 10.27 लाख करोड़ रुपये का था। इसमें से अडानी ग्रुप की कंपनियों में एलआईसी का निवेश करीब सात फीसदी है। हाल के महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने अडानी ग्रुप की कंपनियों में अपना निवेश कम किया है। पिछले साल सरकार एलआईसी का आईपीओ लाई थी। लेकिन इसका शेयर कभी भी अपने इश्यू प्राइस तक नहीं पहुंच पाया है।
एलआईसी का निवेश
एलआईसी ने हाल में अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी टोटल गैस और अडानी ट्रांसमिशन में अपना निवेश बढ़ाया है। अडानी एंटरप्राइजेज में एलआईसी का निवेश 30 सितंबर, 2022 को 4.02 फीसदी था जिसका मूल्य 17,966 करोड़ रुपये था। इसी तरह अडानी टोटल गैस में एलआईसी की 5.77 फीसदी, अडानी ट्रांसमिशन में 3.46 फीसदी और अडानी ग्रीन एनर्जी में 1.15 फीसदी हिस्सेदारी है। इसी तरह अडानी पोर्ट्स में एलआईसी की हिस्सेदारी 11.9 फीसदी है। आज इसमें से कई कंपनियों के शेयरों में 20 फीसदी तक गिरावट आई। इससे एलआईसी को 16,300 करोड़ का नुकसान हुआ है। अडानी ग्रुप की सात कंपनियों में एलआईसी का निवेश है।
इस बीच मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) भी इस मामले में सतर्क हो गया है। रॉयटर्स की एक खबर के मुताबिक सेबी पिछले साल अडानी ग्रुप द्वारा किए गए हरेक सौदे की बारीकी से जांच करेगा। अडानी ग्रुप ने हाल में कई बड़े सौदे किए हैं। इनमें अंबूजा सीमेंट्स और एसीसी लिमिटेड का अधिग्रहण शामिल है। साथ ही अमेरिका की शॉर्ट सेलर कपनी Hindenburg Research की रिपोर्ट की भी स्टडी की जाएगी। इस रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। हालांकि अडानी ग्रुप ने इस आरोपों का खंडन करते हुए अमेरिका कंपनी के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही है।
अमरीका की फॉरेंसिक फाइनेशियल रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने रिपोर्ट के जरिए अदानी ग्रुप पर शॉर्ट पोजीशन और धोखाधड़ी सहित कई आरोप लगाए हैं। इस रिपोर्ट आने के बाद से लगातार आदानी ग्रुप के शेयर्स में गिरावट जारी है। अब इस मुद्दे पर राजनाति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हिंडनबर्ग के द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की मांग की है। उन्होंने बयान जारी करते हुए कहा है कि "आम तौर पर एक राजनीतिक पार्टी को किसी कंपनी या बिजनेस ग्रुप के बारे में आई किसी अध्ययन रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। लेकिन अदानी ग्रुप के बारे में हिंडनबर्ग रिसर्च के फॉरेँसिक रिसर्च पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया की मांग की गई है। ऐसा क्योंकि क्योंकि अडानी ग्रुप कोई साधारण ग्रुप नहीं है। इसकी पहचान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तब से है जब वे मुख्यमंत्री थे।"
इसके साथ ही जयराम ने कहा कि "आदानी ग्रुप पर भारतीय जीवन बीमा कंपनी (LIC) और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) जैसे फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट और करोड़ों भारतीयों का बचत का पैसा जुड़ा हुआ है। इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा गहन जांच की जरूरत है।"
जयराम रमेश ने केंद्र की मोदी सरकार पर साधा निशाना
जयराम रमेश ने कहा कि फाइनेंशियल में गड़बड़ी के आरोप काफी खराब होंगे, लेकिन इससे भी बुरी बात यह है कि मोदी सरकार ने LIC, SBI सहित अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के द्वारा अदानी ग्रुप में निवेश किया है। इस रिपोर्ट ने भारत की फाइनेंश प्रणाली के जोखिम को उजागर किया है। LIC की बड़ी मात्रा में आदानी कि कंपनियों में है। राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों ने अडानी ग्रुप को निजी बैंकों की तुलना में दोगुना लोन दिया है, जिसमें उन्हें 40% लोन SBI द्वारा दिया जा रहा है। इस गैरजिम्मेदारी ने LIC और SBI में अपनी बचत का डालने वाले करोड़ों भारतीयों को जोखिम में डाल दिया है।
क्या हिंडनबर्ग की रिपोर्टों को आसानी से खारिज किया जा सकता है?: जयराम रमेश
जयराम रमेश ने rbi और SEBI से इस मामले की जांच की मांग करते हुए कहा कि "हम अडानी ग्रुप और वर्तमान सरकार के बीच के घनिष्ठ संबंधों को पूरी तरह से समझते हैं। लेकिन एक जिम्मेदार विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस पार्टी पर यह निर्भर है कि वह SEBI और RBI से वित्तीय प्रणाली के प्रबंधक के रूप में अपनी भूमिका निभाने और व्यापक जनहित में इन आरोपों की जांच करने का आग्रह करे। मोदी सरकार कोशिश कर सकती है और सेंसरशिप लगा सकती है। लेकिन भारतीय व्यवसायों और फाइनेंश मार्केटों के वैश्वीकरण के युग में क्या हिंडनबर्ग-प्रकार की रिपोर्टें जो कॉर्पोरेट कुशासन पर ध्यान केंद्रित करती हैं, को आसानी से दरकिनार कर दिया जा सकता है और "दुर्भावनापूर्ण" होने के नाते खारिज कर दिया जा सकता है?"
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