24 May 2022 11:33 PM
बीकानेर, 24 मई (थार न्यूज़)। हिंदी विश्व भारती अनुसंधान परिषद नागरी भंडार द्वारा राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य विद्वान स्व. अन्नाराम सुदामा की 99वीं जयंती के अवसर पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित एक संगोष्ठी का आयोजन स्थानीय महारानी सुदर्शन आर्ट गैलरी नागरी भंडार में रखा गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दार्शनिक एवं चिंतक प्रोफेसर घनश्याम आत्रेय ने कहा कि उनकी रचनाएं दिल को छूने वाली थीं और उनकी कविताओं में अध्यात्मिकता के दर्शन होते हैं। वे अपनी रचनाओं में मानव चरित्र के विभिन्न आयामों को खोल कर रख देते थे। श्रोता उनकी रचनाओं को सुनकर सुनते ही रह जाते थे।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. भंवर भादानी ने कहा कि स्व. अन्नाराम सुदामा का शताब्दी वर्ष शुरू हो चुका है, हमें उनकी स्मृति में लगातार पूरे वर्ष तक कार्यक्रम आयोजित करवाते रहना चाहिए। जिसमें उनकी साहित्यिक यात्रा के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से चर्चा की जानी चाहिए। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार संजय पुरोहित ने कहा कि आधुनिक राजस्थानी कहानी को स्थापित करने में एवं राजस्थानी कहानियों में मौलिकता को सर्वोपरि रखने का श्रेय अन्नाराम सुदामा को दिया जा सकता है। उनकी कहानियां रोचक तो होती ही थीं, साथ ही उनकी कहानियों में रोचकता के साथ-साथ व्यंग्य का पुट भी नजर आता है। ग्रामीण जनजीवन पर उनकी लेखनी में पैनी दृष्टि नजर आती है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनमोहन सिंह यादव ने कहा कि अन्नाराम सुदामा राजस्थानी भाषा साहित्य व्योम के ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र है, जो पाठको के मनोमस्तिष्क और साहित्य जगत में जीवंत रहेंगे, उन्होंने अपनी शब्द सम्पदा से भाषा को उन्नत और परिष्कृत किया, उनकी सादगी और स्वाभिमान मानव मात्र के लिए अनुकरणीय है। इससे पूर्व कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्था के मानद सचिव डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि अन्नाराम सुदामा एक ऐसे व्यक्तित्व थे जो सादगी एवं आमजन से जुड़ाव रखने वाले रचनाकार थे। अपनी कहानियों के परिवेश एवं जन जीवन को आसानी से समझने के लिए वे पैदल यात्राएं भी करते थे।
शिक्षा विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक ओमप्रकाश सारस्वत ने कहा कि स्व. सुदामा का कृतित्व एक सामाजिक जीवन का दस्तावेज था। वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा ने कहा कि युवा रचनाकारों को उनकी रचनाओं का अध्ययन एवं मनन करना चाहिए। राजस्थानी भाषा के अध्येता डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि उनकी रचनाओं में लोकोक्तियां और मुहावरों का खूबी के साथ प्रयोग किया गया है। उनकी लिखी पुस्तकें विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी शामिल की गई हैं। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शंकर लाल स्वामी ने कहा कि उनकी रचनाओं में उनके आदर्श जीवन मूल्यों की झांकी के दर्शन होते हैं। कवि कथाकार राजेंद्र जोशी ने कहा कि उनकी रचनाएं जनमानस को प्रेरित करती हैं।
डॉ. मोहम्मद फारुक चौहान ने कहा कि जब उनकी रचनाओं को पढऩा शुरू करते हैं तो रचना पूरी होने तक पढऩे के लिए जिज्ञासा क़ायम रहती है। डॉ. कृष्णलाल बिश्नोई ने उनकी रचनाओं के चुनिंदा अंशों का वाचन किया, जिसे श्रोताओं ने भरपूर सराहा। डॉ. प्रभा भार्गव ने उनके उपन्यास बाघ और बिल्लियों पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। कार्यक्रम में कवि राजेंद्र स्वर्णकार ने स्व. सुदामा की काव्य रस धारा पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का शुभारंभ स्व. सुदामा के तेलचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करके किया गया।
संगोष्ठी में नगर के अनेक रचनाकारों एवं स्व. अन्नाराम सुदामा के परिवार के अनेक सदस्यों ने सहभागिता की। जिनमें नंदकिशोर सोलंकी, डॉ. नितिन गोयल, शिवप्रकाश वर्मा, डॉ. राजेंद्र कुमार, ओम प्रकाश शर्मा, आत्माराम भाटी, गिरिराज पारीक, इरशाद अजीज, जुगल किशोर पुरोहित, प्रकाश सारस्वत, अमर सिंह खंगारोत, रमेश महर्षि, श्याम सुंदर, मयंक पारीक, विकास पारीक, इसरार हसन कादरी, समी उल हसन क़ादरी, मानवेंद्र, गिरिराज शर्मा, राजेश कुमार एडवोकेट, हरिनारायण सारस्वत आदि उपस्थित थे। संगोष्ठी का सफल संचालन संस्कृतिकर्मी डॉ. मोहम्मद फारुक चौहान ने किया। आभार अमरसिंह खंगारोत ने ज्ञापित किया।
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