बीकानेर में पहली बार कुंडलिया दिवस मनाया गया

कुंडलिया काव्य की एक सशक्त विधा है-डॉ. गुप्त

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बीकानेर, 20 नवम्बर। प्रज्ञालय संस्थान द्वारा नगर की समृद्ध साहित्यिक परंपरा में प्राचीन एवं महत्वपूर्ण छंद विधान का काव्य रूप कुंडलिया पर केन्द्रित आयोजन बीकानेर में पहली बार कुंडलिया दिवस के रूप में स्थानीय सुदर्शन कला दीर्घा नागरी भण्डार में वरिष्ठ आलोचक डॉ. उमाकांत गुप्त की अध्यक्षता एवं राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा के मुख्य आतिथ्य में कुंडलिया वाचन एवं कुंडलियों पर गंभीर चर्चा के साथ संपन्न हुआ।

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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि राजस्थानी भाषा साहित्य के लिए यह गौरव की बात है कि कुंडलिया छंद राजस्थानी के रासो साहित्य की देन है, क्योंकि इसके प्राचीनतम पद-छंद उल्लेख राजस्थानी के ‘हमीर रासो’ में मिलते हैं।रंगा ने आगे कहा कि कुंड़लिया अपने परंपरागत रूप-स्वरूप के साथ नव-बोध, नव कथ-शिल्प के साथ आधुनिक संदर्भो से रची-बसी अपनी यात्रा को आगे बढा रही है।

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कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक डॉ. उमाकांत गुप्त ने कुंडलिया छंद के इतिहास एवं उसके साहित्यिक पक्षों पर आलोचनात्मक एवं तथ्यात्मक गंभीर चर्चा करते हुए कुंडलियों के संदर्भ ने कहा कि तुलसीदास से लेकर आज आधुनिक काल तक कुंडलिया काव्य की एक सशक्त विधा है।

डॉ. गुप्त ने आगे कहा कि आज सभी भारतीय भाषाओं में कुंडलियों का रचाव हो रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस संदर्भ में महिला रचनाकार भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। जिससे काव्य की यह उपविधा निरंतर समृद्ध हो रही है।

कार्यक्रम में कवि रवि शुक्ल ने अपनी हिन्दी में रचित कुण्डलियों का वाचन करते हुए वातावरण को कुंड़लियामय बना दिया और सभी श्रोता कुण्डलियों की मीठी लय का आनंद लेने लगे। शुक्ल ने अपनी कुंडलियो की विषयवस्तु को समसामयिक संदर्भो में जोड़ते हुए कुंडलियों के नए तेवर प्रस्तुत किए।

कवि राजाराम स्वर्णकार ने राजस्थानी और हिन्दी में कुण्डलियों का वाचन करते हुए सभी उपस्थित गरिमायमय श्रोताओं का मन मोह लिया। आपने प्रकृति के साथ-साथ अन्य विषयों को केन्द्र में रखकर कुण्डलियों का वाचन किया।

प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए कवि गिरिराज पारीक ने आयोजन के महत्व को बताते हुए कुंडलियों पर महत्वपूर्ण कार्य करने वाले त्रिलोकसिंह ठकुरेला के इस क्षेत्र में की गई सृजनात्मक सेवाआंे का उल्लेख किया।

इस अवसर पर खासतौर से बंगाल कोलकाता से आए प्रवासी राजस्थानी वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं साहित्यकार श्रीमती दुर्गा पारीक का एवं उनके पति जवाहर पारीक का माला, शॉल, एवं दुपट्टा अर्पित कर प्रज्ञालय संस्थान द्वारा सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में जुगल किशोर पुरोहित, श्रीमती दुर्गा पारीक एवं जवाहर पारीक ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का सफल संचालन कवि रवि शुक्ल ने किया एवं आभार डॉ. फारूख चौहान ने ज्ञापित किया।

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