पौषधशाला रांगड़ी चौक मे उमड़ा जिन शासन की भक्ति का ज्वार, सोमवार से होंगें नियमित प्रवचन

  • मंगल गीतों के ध्वनी के साथ हुई भगवान आदिनाथ की स्नात्र पूजा

बीकानेर, 6 सितंबर । रांगड़ी चौक स्थित पौषधशाला में चल रहे चातुर्मास में श्रावक श्राविकाओं द्वारा जैनाचार्य गच्छाधिपति नित्यानंद सुरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न जैन मुनि पुष्पेन्द्र म सा व प्रखर प्रवचनकार जैन मुनि श्रृतानंद म. सा. के सानिध्य में प्रभु परमेश्वर की स्नात्र पूजा व आराधना की गई।

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आत्मानन्द जैन सभा चातुर्मास समिति के सुरेन्द्र बद्धानी के अनुसार इसमें बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने भाग लिया एवं श्रद्धालुओं ने स्नात्र पूजा का महत्व जाना व अष्ट प्रकारी पूजा अर्चना की। मुनि श्रुतानंद के सानिध्य में पुष्प पूजा, फल पूजा, केसर पूजा, धूप पूजा, दीप पूजा सहित विभिन्न पूजा की गई। इस तीर्थ की महिमा अपरंपार है, जहां आदिनाथ भगवान विराजमान है . . ., दर्शन ने आ सारी नगरी उमड़ी जावे, माता त्रिशला ने बधाई है, मेरू शिखर पर इंद्र इंद्राणी आवे है, 30 वर्ष की आयु में दुनिया को ज्ञान सिखावन ने राज सिंहासन छोड़ दियो . . ., ओ जिन जी तु मेरे दिल में, तु मेरे मन मे . . . जैसे अनेकों मंगल गीत पूजा के दौरान श्राविकाओं द्वारा बड़े उत्साह से गाये जा रहे थे जिससे पौषधशाला में जिन शासन की भक्ति का ज्वार उफन रहा था।

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उपस्थित श्रद्धालुओं को स्नात्र पूजा का महत्व बताते हुए मुनि श्रुतानंद ने कहा कि यह परमात्मा का अभिषेक होता है। इससे विभिन्न प्रकार के लाभ मिलते हैं। विद्या एवं धन की प्राप्ति होती है एवं परमात्मा से आत्मीय जुड़ाव होता है। जैन धर्म की सभी पूजाओं में इसका अत्यंत विशिष्ट स्थान है एवं सभी पूजाओं से पहले इसे आवश्यक रूप से पढ़ाया जाता है।

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उन्होंने कहा कि जब तीर्थंकर परमात्मा का जन्म होता है तब इन्द्रादिक देव मिलकर उन्हें मेरु पर्वत पर ले जाकर अभिषेक करते हैं। इसी क्रिया का पुनरावर्तन ही स्नात्र पूजा है। यह पूजा जिनेश्वर भगवान के प्रति हमारे सम्मान और भक्ति को व्यक्त करने का एक माध्यम है। भक्ति ही एकमात्र सरल और आसान मार्ग है, जिससे मोक्ष या मुक्ति प्राप्त होती है।

मुनि श्रूतानंद ने कहा कि जिस प्रकार हर काम के करने की एक विधि होती है एक तरीका होता है। उसी प्रकार पूजा की भी विधियां होती हैं। क्योंकि पूजा का क्षेत्र भी धर्म के क्षेत्र जितना ही व्यापक है। हर धर्म, हर क्षेत्र की संस्कृति के अनुसार ही वहां की पूजा विधियां भी होती हैं। जिस प्रकार गलत तरीके से किया गया कोई भी कार्य फलदायी नहीं होता, उसी प्रकार गलत विधि से की गई पूजा भी निष्फल होती है।
मंदिर श्री पदम प्रभु ट्रस्ट के अजय बैद ने बताया कि स्नात्र पुजा में आरती मंगल का चढ़ावें का लाभ उत्तमचंद, राजीव कुमार डागा परिवार ने लिया, मंगल दीपक का लाभ गुलाबाचंद, चंद्र कुमार कोचर परिवार ने तथा शांतिकलश पूजा का लाभ वृद्धिचंद, जयकुमार सुराना परिवार द्वारा लिया गया तथा दोपहर तीन बजे से प्रभु विमलनाथजी का भक्ति जाप किया गया ।

स्नात्र पूजा के दौरान अट्ठई की तपकत्र्ता श्राविका निहारिका कोचर की तपस्या की अनुमोदना की गई तथा आत्मानंद जैन सभा चातुर्मास समिति द्वारा बहुमान किया गया। रोशनलाल सुरेन्द्र कुमार कोचर परिवार द्वारा तपस्या के निमित 15000 आयम्बिल के तथा 5100 जीव दया के निमित भेंट दिये गये। आज की संघ पूजा व प्रभावना ओसवाल सॉप परिवार, जयपुर की ओर से की गई। सोमवार से नियमित दैनिक प्रवचन होंगें।

 

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