महावीर स्वामी ने कहा है ज्ञान ही मूल है-मुनि श्रुतानंद

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तपागच्छीय पौषधशाला मे ज्ञानपंचमी मनाई

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बीकानेर, 6 नवम्बर। रांगड़ी चौक में तपागच्छीय पौषधशाला में चल रहे चार्तुमास आयोजन के दौरान गच्छाधिपति नित्यानंद सुरीश्वरजी के शिष्यरत्न मुनि पुष्पेन्द्र म सा व प्रखर प्रवचनकार मुनि श्रुतानंद महाराज साहेब के सान्निध्य में जैन शास्त्रोक्त ज्ञान पंचमी मनाई गई ।

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प्रखर प्रवचनकार श्रृतानंद महाराज साहब ने ज्ञानपंचमी के अवसर पर अपने प्रचवन मे कहा कि एक बार अहिंसा के प्रवर्तक, शासन नायक, श्रमण भगवान महावीर स्वामी अपने ज्येष्ठ शिष्य गणधर गौतमादि के साथ राजगह नगर में पधारे। प्रभु आगमन का सुखद समाचार सुनकर महाराजा श्रेणिक धर्मस्नेही संघजन तथा जनता प्रभु के दर्शन वंदन एवं अमृतवाणी के श्रवण का लाभ प्राप्त करने आए। सभी को ज्ञान की आकांक्षा थी, सभी ज्ञान चाहते थे, प्रभ ने देशना दी ‘पढमं नाणं’ अर्थात ज्ञान ही प्रथम है, मूल है। ज्ञान की शक्ति अदभुत है। ज्ञान सुखी जीवन के लिये परमावश्यक है।

आत्मानंद जैन सभा चार्तुमास समिति के सुरेन्द्र बद्धानि व शांतिलाल हनु कोचर के अनुसार दीपावली के पाँचवे दिन अर्थात कार्मिक मास की शुक्ल पंचमी तिथि को ‘ज्ञान पंचमी’ मनाई जाती है। आज का दिन त्यौंहार धार्मिक पुस्तकों की साफ सफाई, पूजा की जाती है। पौषधशाला में गुरु भगवन ने मति ‘संवेदना आँख-कान-नाक-त्वचा-जीभ’ से मिला ज्ञान, श्रृत ‘अध्ययन’ से मिला ज्ञान, अवधि ‘अदृश्यता’ से मिला ज्ञान, मनःपर्यव ‘टेलीपेथी’ ज्ञान, केवल ‘सर्वज्ञान’ ज्ञान के मंत्रों के साथ खमासमणा करवाय , लोगस मंत्रों के जाप तथा पौढ़सी पढ़ी गई। इस अवसर पर पौषधशाला 700 से अधिक श्रावक श्राविकाओं ने सहभागिता निभाई। दोपहर तीन बजे विमलनाथ भगवान का सामुहिक जाप किया गया। इस अवसर पर एक्यूप्रेशर सेवा प्रदाता रमेश भोजक का बहुमान किया गया।

अजय बैद के अनुसार चार्तुमास आयोजन में अट्ठम से चौदहस तक प्रवचन रहेगा तथा कार्तिक पुनम के दिन मुनिवृंदजनों के साथ सकल संघ के श्रावक श्राविकाओं द्वारा समिति के अध्यक्ष शांतिलाल सेठिया के निवास स्थान पर चातुर्मास परिवर्तन किया जायेगा। इस अवसर पर एक घंटे का प्रवचन होगा तथा संकलसंघ की पूजा, प्रभावना तथा अल्पाहार का आयोजन होगा तथा रविवार के दिन श्रावक परिवार धर्मचंद, राकेश कुमार के निवास पर दोहपर 3 बजे से प्रवचन पूजा, प्रभावना तथा अल्पाहार का आयोजन होगा। ज्ञान पंचमी के अवसर पर आत्माराम प्रवीणचंद जैन द्वारा सभी श्रावक श्राविकाओं को पेन व पुस्तक की प्रभावना की गई।

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