मानिक बच्छावत का कोलकाता में निधन
- बीकानेर मूल के सुप्रसिद्ध कवि ,अनुवादक, कला समीक्षक थे
बीकानेर,12 अक्टूबर। बीकानेर मूल के सुप्रसिद्ध कवि अनुवादक , चित्रकार और देश के कला, साहित्य, संस्कृति क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले मानिक बच्छावत का कोलकाता में निधन हो गया।
उनके निधन की खबर सुनकर बीकानेर में उनके परिचित साहित्यकारों, कलाकारों ने शोक व्यक्त करते हुए कहा की मानिक बच्छावत ने अंतिम समय तक बीकानेर से न केवल व्यक्तिगत रिश्ता बनाए रखा बल्कि अपनी रचनाओं में भी बीकानेर को प्रस्तुत करते रहे ।
सोशल प्रोगेसिव सोसायटी बीकानेर के अध्यक्ष नदीम अहमद नदीम, इसरार हसन कादरी, राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष दुलाराम सहारण , गुलाम मोहियुद्दीन माहिर,सुनील गज्जानी , विजय शर्मा , डॉक्टर सीमा भाटी, इमरोज़ नदीम, अरमान नदीम ने मानिक बच्छावत के निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए शोक व्यक्त किया ।
उनकी काव्य कृति इस शहर के लोग में बीकानेर का परिवेश और विरासत विभिन्न पात्रों के माध्यम से उजागर हुआ है उनकी इस कृति का देश की विभिन्न भाषाओं सहित राजस्थानी में अनुवाद मोनिका गौड़ ने किया था इसी तरह सोशल प्रोगेसिव सोसायटी द्वारा उनकी किताब रेत की नदी का राजस्थानी अनुवाद संजय आचार्य वरुण, और सड़क पर जिंदगी का राजस्थानी अनुवाद राजश्री भाटी ने किया था ।
कवि और कला एवं संस्कृति को समर्पित व्यक्तित्व मानिक बच्छावत
बीकानेर से जुड़े, कोलकाता प्रवासी थे । मानिक बच्छावत की समकालीन दृश्य कलाओं में गहरी रुचि थी और वे 1960 के दशक से ही पेंटिंग्स के होनहार संग्रहकर्ताओं में से एक रहे। साथ ही कला और इसकी सुंदरता के एक सच्चे प्रशंसक के रूप में वे अपनी पीढ़ी के कलाकारों को एक साथ लाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे जो देश के इस हिस्से से सदी के सबसे प्रशंसित कलाकारों में से थे ।
आपकी प्रकाशित साहित्यिक कृतियों में, कविता और गद्य दोनों में, उल्लेखनीय हैं “नीम की छाँह” (1960), “एक टुकड़ा आदमी” (1967″, “तुम आओ मेरी कविता में” (2000), “पहचान” (2012), “सड़क पर जिंदगी” (2012) और कविता खंड में “जुलूसों का शहर” (1973), “आदम सवार” (1976), ” गद्य में “भारतीय नारियां” (2012) प्रमुख है ।
आप 1965-1970 तक एक काव्य पत्रिका “कविता इस समय” (2006), जैसे महत्वपूर्ण प्रकाशनों के संपादक भी रहे ।
1960 और 1970 के दशक में कला के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए मशहूर मानिक बच्छावत पिछले पचास साल से देश की कला की दुनिया का अभिन्न अंग बने हुए थे। कला और साहित्य जगत में मानिक बच्छावत का योगदान अतुलनीय रहेगा।