मन्त्र साधना से मिलती आत्मिक प्रसन्नता – साध्वी डॉ॰ गवेषणाश्री
- लोगस्स कल्प अनुष्ठान का हुआ आयोजन
माधावरम, चेन्नई , 17 अक्टूबर। (स्वरुप चन्द दाँती ) आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदुषी शिष्या साध्वी श्री डॉ गवेषणाश्रीजी ने शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर जैन तेरापंथ नगर, माधावरम्, चेन्नई में लोगस्स कल्प का अनुष्ठान कराते हुए कहा कि लोगस्स शक्ति जागरण का एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली प्रयोग है। यह अत्यधिक गंभीर और अनेक उत्तम गुणों से युक्त स्तोत्र है। इस पाठ में चौबीस तीर्थकरों की स्तुति की गई है। जिनकी स्तवना से सहज ही कर्मों की निर्जरा होती है और पवित्रता का विकास होता है। साधक इस लोगस्स की साधना से अपनी आत्मा का उत्कर्ष करते हैं।
साध्वीश्री ने आगे कहा कि इस मंत्र साधना के प्रयोग के अंतर्गत भावशुद्धि, लेश्या विशुद्धि और आत्मिक प्रसन्नता की अनुभूति होती है।
साध्वी श्री मयंकप्रभाजी ने कहा कि वैदिक संस्कृति के अनुसार आज चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। अनेक भाई-बहन चन्द्रमा के प्रकाश के नीचे सुई पिरोना, कुछ वाचन करना आदि अनेक क्रियाएं करते हैं। जैन दर्शन की मान्यतानुसार जैसे कमल सूर्य की प्रथम किरण से खिल जाता है, वैसे ही वीतराग आत्माओं के गुणानुवाद से सुख की प्राप्ति होती है। इस कल्प अनुष्ठान में अनेक भाई-बहनों ने भाग लिया। साध्वी श्री दक्षप्रभाजी की भी उपस्थिति रही।
साध्वी श्री मेरुप्रभाजी की चिकित्सकीय सेवाओं में प्रदत्त अनुकरणीय योगदान के लिए मेघराज वेद एवं श्रीमती कविता वेद का और साध्वी श्री मयंकप्रभाजी के संसार पक्षीय परिवार शहादा से पधारे हुए मेहमानों का तेरापंथ माधावरम ट्रस्ट द्वारा सम्मान किया गया।