प्रेमचंद भारतीय मन के कुशल चितेरे थे-रंगा
बीकानेर, 31 जुलाई। देश के ख्यातनाम हिन्दी और उर्दू के रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की 144वीं जयंती के अवसर पर प्रज्ञालय संस्थान के नत्थूसर गेट बाहर स्थित लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन में आज प्रातः एक परिसंवाद ‘प्रेमचंद की प्रासंगिकता’ छात्र/छात्राओं के बीच में रखा गया।
परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि प्रेमचंद की हर रचना आज भी प्रासंगिक है, और समय के सच को बयां करती है। प्रेमचंद भारतीय मन के कुशल चितेरे थे। उन्होंने हमेशा सामाजिक सरोकार को आगे रखा। प्रेमचंद आजादी से पहले समाज और अंग्रेजी शासन के खिलाफ लिख रहे थे। उन्होंने जनता के शोषण दुःख-दर्द और उत्पीड़न को बहुत सूक्ष्म तरीके से महसूस किया। और उसे अपने सृजन में ढाला।
परिसंवाद में भाग लेते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद् राजेश रंगा ने उनकी चर्चित कहानी ईदगाह का वाचन किया। उन्होने कहा कि वे बहु-आयामी प्रतिभा के धनी थे। प्रेमचंद प्रारंभिक दौर में सभी उपन्यास उर्दू में लिखे। जिनका हिन्दी अनुवाद हुआ। उनका 1918 में लिखा गया उपन्यास जिसे उन्होने पहले बाज़ारे हुस्न नाम से उर्दू में लिखा।
करूणा क्लब के हरिनारायण आचार्य ने इसी सेवासदन में बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि इस उपन्यास के माध्यम से प्रेमचंद ने भारतीय नारी की पराधीनता की समस्या को सामने रखा तो वरिष्ठ शिक्षाविद् राजेश रंगा ने ‘ठाकुर का कुआ’ कहानी के माध्यम से छुआछुत और ऊंच-नीच पर चर्चा की। वहीं किसान के जीवन पर आधारित उपन्यास प्रेमाश्रम के बारे में बताया।
भवानी सिंह ने परिसंवाद में भाग लेते हुए प्रेमचंद के बहुचर्चित उपन्यास ‘गोदान’ के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि इस उपन्यास ने भारतीय उपन्यास परंपरा की दिशा बदल दी थी।
परिसंवाद में सहभागियों के साथ कई छात्र/छात्राओं ने भी मुंशी प्रेमचंद के प्रति अपनी जिज्ञासा रखी, और बच्चों द्वारा ईदगाह कहानी चाव से सुनी गई। परिसंवाद का संचालन संस्कृतिकर्मी आशीष रंगा ने किया एवं सभी का आभार सुनील व्यास ने ज्ञापित किया।