अब ‘खेजड़ी की सांगरी” को मिलेगा भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग।, पहले से करीब दोगुनी कीमत पर एक्सपोर्ट होगी
बीकानेर, 24 जनवरी। स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय ने राजस्थान में बहुतायत में पाई जाने वाली ”खेजड़ी की सांगरी” को भौगोलिक संकेत (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन- जीआई) टैग देने हेतु चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया है। कुलपति डॉ अरुण कुमार ने बताया कि बड़ी खुशी की बात है कि इस आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है। उन्होने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने बायोटेक्नोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ सुजीत कुमार यादव के नेतृत्व में कड़ी मेहनत कर खेजड़ी की सांगरी को जीआई टैग देने हेतु करीब 700 पेज के डॉक्यूमेंट प्रस्तुत किए हैं। अब चेन्नई कार्यालय की ओर से जो भी आक्षेप भेजे जाएंगे, इसका जवाब एसकेआरएयू देगा। कुलपति ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय किसानों के हित के लिए कार्य कर रहा है। विभिन्न फसलों की नई-नई वैरायटी देने के साथ साथ किसानों की आय कैसे बढ़ाई जाए। इसको लेकर भी कार्य कर रहा है।
बायोटेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ सुजीत कुमार यादव ने बताया कि बौद्धिक संपदा संरक्षण का बड़ा टूल भौगोलिक संकेत ( जीआई) है। चेन्नई स्थित कार्यालय में इसका रजिस्ट्रेशन किया जाता है। भारत में अब तक करीब 600 उत्पादों को जीआई मिल चुका है। जिसमें से कृषि उत्पाद करीब 200 हैं। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के करीब 18 कृषि उत्पाद जीआई टैग हैं। राजस्थान में शुद्ध रूप से कृषि के क्षेत्र में अब तक केवल एक ”सोजत की मेहंदी” को ही जीआई टैग मिला हुआ है। फूड प्रोडेक्ट को इसमें शामिल कर लें तो ”बीकानेरी भुजिया” को जीआई टैग मिल चुका है। खेजड़ी एक पवित्र पौधा है। इसको लेकर राजस्थान में बहुत बड़ा बलिदान हुआ। इसके उत्पाद यूनिक हैं। विटामिन और मिनरल से भरपूर हैं।इसे लीगल प्रोटेक्शन भी मिलना चाहिए। लिहाजा इसे जीआई टैग हेतु आवेदन किया गया है। जो राजस्थान प्रदेश के लिए भी गौरव का विषय है।
डॉ यादव बताते हैं कि राजस्थान में खेजड़ी की सांगरी को जीआई टैग मिलेगा तो इसके तीन बड़े फायदे होंगे। बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन यानी खेजड़ी के पेड़ को संरक्षित किया जा सकेगा। खेजड़ी के पेड़ को कोई काटेगा नहीं। खेजड़ी के उत्पाद सांगरी को वैश्विक पहचान मिलेगी और सांगरी प्रोडक्ट को निर्यात करेंगे तो डब्ल्यूटीओ नॉर्म्स के अनुसार प्रीमियम प्राइस मिलेगा। यानी अब अगर सांगरी अगर 1500 रुपए प्रति किलो एक्सपोर्ट हो रही है तो जीआई टैग मिलने के बाद करीब दोगुनी कीमत पर एक्सपोर्ट होगी। डॉ यादव ने बताया कि जीआई टैग किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि समुदाय को मिलता है लिहाजा कोलायत के गोविंदसर गांव के उन किसानों की एक सोसायटी बनाई गई। जो खेजड़ी उत्पाद बेचते हैं। सोसायटी का रजिस्ट्रेशन करवाया गया है। कृषि विश्वविद्यालय ने सोसायटी की ओर से ही जीआई टैग का आवेदन प्रस्तुत किया है।