आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी समारोह के दूसरे दिन “संविधान” पर चिंतन और भक्ति संध्या से गूंजा गंगाशहर


गंगाशहर, 9 जुलाई। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के संस्थापक परम पूज्य आचार्य श्री भिक्षु की जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में गंगाशहर में आयोजित समारोह के दूसरे दिन का कार्यक्रम आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से अत्यंत प्रेरणादायक रहा। प्रातःकालीन सत्र में तेरापंथ भवन में आयोजित प्रवचन में उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी ने “रचित संविधान” विषय पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना वि. सं. 1817 की आषाढ़ी पूर्णिमा को हुई थी। जैसे-जैसे संघ का विस्तार हुआ, आचार्य भिक्षु ने इसकी मर्यादा और अनुशासन को सुरक्षित रखने हेतु वि. सं. 1832 में एक सुव्यवस्थित संविधान की रचना की। मुनिश्री ने कहा कि यह संविधान मात्र व्यवस्थाओं का संकलन नहीं, बल्कि शुद्ध साधुत्व और चरित्र आराधना का आधार है। इसमें न केवल साधु-साध्वियों के जीवन को विनययुक्त मार्ग पर स्थापित करने की कोशिश की गई, बल्कि धर्म में फैली कुरीतियों और विकृतियों को दूर करने का क्रांतिकारी प्रयास भी निहित है।





मुनि श्री ने समाज में बढ़ती असहिष्णुता और विनयहीनता पर चिंता जताते हुए कहा कि बड़ों के प्रति आदर, सहनशीलता और कर्तव्यबोध का भाव प्रत्येक घर में जागृत होना चाहिए। उन्होंने पितृ-पुत्र, सास-बहू जैसे पारिवारिक रिश्तों में स्नेह, वात्सल्य और सम्मान को पुनः स्थापित करने की प्रेरणा दी। साथ ही, उपस्थित श्रद्धालुओं को आत्म-संयम, परिवार-संरक्षा और संघ-सुरक्षा के लिए जागरूक रहने का आह्वान भी किया। इस अवसर पर मुनि श्री ने श्रावक-श्राविकाओं की तपस्याओं के पचखान भी करवाए।



भिक्षु भजन संध्या बनी भक्ति और श्रद्धा का संगम
इसी क्रम में सायं को तेरापंथी सभा गंगाशहर द्वारा भव्य भिक्षु भजन संध्या का आयोजन किया गया, जो सेवा केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी श्री विशदप्रज्ञा जी एवं साध्वी श्री लब्धियशा जी के सान्निध्य में संपन्न हुई। साध्वी श्री विशदप्रज्ञा जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म कंटालिया जैसे कठोर वातावरण में हुआ, पर उन्होंने सत्य की साधना करते हुए कांटों के बीच गुलाब की भांति धर्म संघ की स्थापना की। उन्होंने आगे कहा कि यह तेरापंथ धर्मसंघ का सौभाग्य है कि आचार्य भिक्षु का जन्म, अभिनिष्क्रमण, और देवलोक गमन सभी मंगलवार को हुए और यह त्रिशताब्दी जन्मोत्सव भी मंगलवार को ही मनाया गया। भजन संध्या में साध्वी श्री मननयशा जी व साध्वी श्री कौशलप्रभा जी ने गीतिका के माध्यम से आराध्य को श्रद्धांजलि दी। इसके अतिरिक्त मनोज छाजेड़, पवन छाजेड़, राजेन्द्र बोथरा, करणीदान रांका, मनोहर लाल दूगड़, धर्मेन्द्र डाकलिया, चैनरूप छाजेड़, श्रीमती रेखा चोरडिया, श्रीमती संतोष बोथरा सहित अनेक भजनकारों ने भावपूर्ण भजनों से श्रद्धा सुमन अर्पित किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन श्रीमती प्रेम बोथरा ने किया। इस भावप्रवण संध्या ने श्रद्धालुओं को भक्ति, अनुशासन और आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत कर दिया।