श्री आगम तप अनुष्ठान में भगवती सूत्र की आराधना

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  • महावीरजी मंदिर शुद्धिकरण 4 अगस्त को

बीकानेर, 1 अगस्त। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरिश्वरजी के सान्निध्य में श्री 45 दिवसीय श्री आगम तप अनुष्ठान के तहत गुरुवार को ढढ्ढा चौक के आगम वाटिका मंदिर में भगवती सूत्र का वंदन पूजन किया। शुकवार को ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र की आराधना की जाएगी।

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आचार्यश्री ने बताया कि अरिहंत उपदिष्ट एवं गणधरादि कृत आगमों पर आधारित भावोदधितारक शिव सुखकारक 45 आगमों में भगवती सूत्र में सर्वानुयोग के साथ जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जीवन, आदर्शों, संदेश, उपदेश व शिक्षाओं का वर्णन है। इस सूत्र के प्रारंभ में ही पंच परमेष्ठी और ब्राह्मी लिपि को भी नमस्कार किया गया है।

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उन्होंने बताया भगवती सूत्र में प्रथम गणधर श्री गौत्तम स्वामी, भगवान महावीर स्वामी को पूछे गए प्रश्नों के उत्तर तुंगिया नगरी के श्रावकों के श्री पार्श्वनाथ परम्परा में आए हुए शिष्यों को पूछे गए प्रश्नोत्तरों का समावेश है। विविध विषयों के प्रश्नोत्तरी वाले इस आगम का विशिष्ट व्याख्यान में वांचन किया जाता है। अभ्यासी व जिज्ञासुओं को विशेष उपयोगी है। इस सूत्र के 41 शतक, 100 से अधिक अध्ययन, 1000 उद्देश्य, 288000 पद है। विवाह पन्नति इस नाम के दस अर्थ तथा ऋषभदत्त, देवानंदा की दीक्षा और मोक्ष की वार्ता भी इसमें समाहित है।

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बीकानेर की साध्वीश्री चिदयशा आदिठाणा भी श्री भगवती या श्री व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र आगम की आराधना विधि में भागीदारी निभाई। श्रावक- श्राविकाओं ने एकासना की तपस्या के साथ मंत्र का जाप किया तथा दोहा ’’गौत्तम पूछे वीर वदे, प्रश्न छतीस हजार, विवाह पन्नति छे पांचमुं, सुणजो भावे उदार ।। को भाव के साथ गाया। आराधना विधि में पदक्षिणा, साथिया, काउसग्ग की पूजन वंदन क्रिया विधि की तथा मंत्र का जाप किया।

हृदय की कोमलता तथा भावों की शुद्धि

आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने ढढ्ढा चौक मेंं नियमित प्रवचन में गुरुवार को कहा कि हृदय की कोमलता तथा भावों की शुद्धि तथा जैन जीव विचार व कर्म सिद्धान्त के नियमों की पालना से धर्म-अध्यात्म की आराधना शुरू होती है। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने सब प्राणियों के प्रति करुणा, दया, मैत्री, समता व प्रेम रखने का संदेश दिया है।

उन्होंने कहा कि सुख-वैभव,धन सम्पति को हेय (छोड़ने जैसा) व परमात्म तत्व को उपादेय (ग्रहण करने योग्य) मानने वाला, सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह आदि सिद्धान्तों को अंगीकार कर नीतिगत व्यवहार, व्यापार से धन उपार्जित करने वाला, मोक्ष के लक्ष्य रखने वाला श्रावक कहलाता है। धन जीवन का आधार है लेकिन अन्याय, अनीति से उपार्जित धन पाप कर्म बंधन करता है। अनीति, अन्याय, बेईमानी, धोखाधड़ी से धन कमाने वालों की धर्म आराधना, साधना कभी सार्थक नहीं होती। मोहनीय कर्म से वशीभूत एक हाथ में माल व दूसरे हाथ में माला कभी परमात्म तत्व की प्राप्ति नहीं करवाती। बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर ने आचार्यश्री की ओर से प्रस्तुत विषय का विस्तार से वर्णन किया।

मंदिर शुद्धिकरण 4 अगस्त को

श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा ने बताया कि रविवार को सुबह छह से नौ बजे तक रांगड़ी चौक क्षेत्र मुकीम बोथरा मोहल्ले की बोहरों कर सेहरी के भगवान महावीर स्वामी के मंदिर में आचायश्री की प्रेरणा से मुनि व साध्वीवृंद के सान्निध्य में मंदिर जिनालय शुद्धिकरण किया जाएगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं पूजा के वस्त्र पहन कर जिन बिम्ब व मंदिर के शुद्धिकरण में भागीदारी निभाकर पुण्यार्जन कर सकेंगे।

गुरुवार को संघ पूजा का लाभ उदासर के ओम प्रकाश, हेमंत व अरिहंत कोठारी परिवार ने लिया। श्री जिनेश्वर युवक परिषद के अध्यक्ष संदीप मुसरफ ने बताया कि बाहर से आने वाले यात्रियों के भोजन व आवास की व्यवस्था महावीर भवन में की गई है। विभिन्न तपस्याओं के पारणे भी महावीर भवन में करवाएं जा रहे है।

मुनि ने अहिंसा धर्म पालने के लिए दी प्राणों की आहूति-मुनि पुष्पेन्द्र विजय

बीकानेर, 1 अगस्त। रांगड़ी चौक की तपागच्छीय पौषधशाला में गुरुवार को मुनि पुष्पेन्द्र विजय ने मेतार्य मुनि के कथानक के माध्यम से बताया कि जैनाचार्यों व मुनियों तथा धर्म निष्ठा श्रावकों ने अहिंसा धर्म की पालना के लिए अनेक कष्ट, तकलीफ सही यहां तक प्राणों तक की आहूति दी। मैतार्य मुनि ने एक पक्षी की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग कर जीव हिंसा को रोकने व अहिंसा परमोःधर्म पालन का संदेश दिया।

मुनि श्रुतानंद विजय ने समरादित्य सूत्र का वाचन विवेचन करते हुए कहा कि मनुष्य को उसकी इच्छा, रूचि व भावों के अनुसार पुण्य व पाप मिलता है। पाप प्रवृति व कर्म की रूचि व भावों से नारकीय तथा सद्कार्य, सद् व्यवहार व सही धर्म क्रिया से पुण्य मिलता है।

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