अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु की स्तुति वंदना, पंच परमेष्ठी श्रेणी तप शुरू

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बीकानेर, 25 जुलाई। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी के सान्निध्य में गुरुवार को ढढ्ढा चौक के सत्संग पांडाल में श्रावक-श्राविकाओं ने पंच परमेमिष्ठी श्रेणी तप का मंत्रोच्चारण से पचखान (’संकल्प’) लिया। पंच परमेष्ठि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु की स्तुति वंदना की गई।

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आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने कहा कि अरिहंतों की वीतरागता, सिद्धों का सिद्धत्व, आचार्यों का पंचाचार, उपाध्यायों के शुभ विचार, साधु का सद्व्यवहार और अपनी आत्मा को पंच परमेष्ठि मय करने के पंच परमेष्ठी श्रेणी तप अनुपम है। पंच परमेष्ठी में व्यक्ति विशेष की स्तुति वंदना नहीं कर सर्व अरिहंतों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों व साधुओं को नमन किया गया है।

मुनिश्री सम्यक रत्न सागर ने ’’मन की मारी, प्रभु की मानी’’ कहावत का स्मरण दिलाते हुए कहा कि देव, गुरु व धर्म के समर्पण बिना साधना नहीं हो सकता। गुरु के वचनों में शंका नहीं समर्पण जरूरी है। जैन दर्शन, जिन वचन कल्याणकारी है। सम्यक दर्शन जैन धर्म का प्राण है। इसकी प्राप्ति के लिए श्रद्धा व समर्पण जरूरी है। जिन वचनों का अनुशरण करते हुए जप,तप, साधना, आराधना व भक्ति करें। प्रवचन स्थल पर लूणकरनसर के बालक मनन डागा, पन्नालाल बोथरा व संतोष खजांची के 6-6 दिन की तपस्या की अनुमोदना की गई।

श्री जिनेश्वर युवक परिषद के अध्यक्ष संदीप मुसरफ ने बताया कि आचार्यश्री ने गुरुवार को ऊपर से नमक व चीनी उपयोग नहीं करने नियम दिलवाया। आयम्बिल की कंचनदेवी कोठारी ने अट्ठम तप की तपस्या बबीता नाहटा ने की। संघ पूजा का लाभ मूलचंद कमल चंद नाहटा परिवार ने लिया।
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छोटे नियम व व्रत से अनेक पापों से मुक्ति-मुनि पुष्पेन्द्र विजय

बीकानेर, 25 जुलाई। जैन श्वेताम्बर तपागच्छ के गच्छाधिपति जैनाचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी के आज्ञानुवर्ती मुनिश्री पुष्पेन्द्र विजय .ने गुरुवार को रांगड़ी चौक की तपागच्छीय पौषधशाला में राजकुमार वंकचुल की कहानी के माध्यम से कहा कि छोटे-छोटे नियम व व्रत की पालना कर हम अनेक पापों से बच सकते है।
मुनिश्री श्रुतानंद विजय ने आचार्य हरिभद्र सूरी के ग्रंथ समरादित्य कथा सूत्र के माध्यम से कहा कि जीवन में प्रत्येक प्राणी को भाग्य, सौभाग्य व दुर्भाग्य मिलता है। भाग्य से जैन धर्म, कुल में जन्म मिलता है। धन,सम्पति व वैभव सौभाग्य से मिलता है। सौभाग्य से मिली धन व सम्पति का संग्रह करना, उस पर अहंकार करना दुर्भाग्य है। सौभाग्य से मिले धन सम्पति को धर्म के कार्यों व दान पुण्य में लगावें।

 

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