मन की शांति केवल वर्तमान में जीने से प्राप्त होती है- मुनि हिमांशु कुमार

पर्यूषण पर्व के ध्यान दिवस पर मुनिश्री हिमांशु कुमार जी का प्रवचन

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चेन्नई , 7  सितम्बर।  पर्यूषण पर्व के सातवें दिन, ध्यान दिवस के उपलक्ष में मुनिश्री हिमांशु कुमार जी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए मानव जीवन के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि हमारे मानव शरीर में विभिन्न प्रकार की बाहरी बाधाएं और मानसिक विकार हमें कभी भी घेर सकते हैं। बीमारी और शारीरिक दुर्बलता से व्यक्ति शक्तिहीन हो जाता है, और शक्तिहीन व्यक्ति साधना करने में असमर्थ होता है।

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आवश्यकता इस बात की है कि हम इन समस्याओं से सचेत होकर साधना के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ें।मुनिश्री ने बताया कि पारिवारिक संबंध और उनसे जुड़ी अपेक्षाएं भी व्यक्ति को संयम और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ने से रोक सकती हैं। हमें अपने संबंधों को समझना चाहिए, उनका महत्व पहचानना चाहिए, लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वे हमारी साधना में बाधक न बनें।

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उन्होंने कहा कि आज का समय हमें साधना और मार्गदर्शन के लिए श्रेष्ठ अवसर प्रदान कर रहा है। हमें इस अवसर का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए क्योंकि भविष्य में ऐसा समय भी आ सकता है जब न मार्ग हों और न मार्गदर्शक। मुनिश्री ने ध्यान दिवस के उपलक्ष्य  में विषय “मन की शांति” पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अतीत की स्मृतियों और भविष्य की कल्पनाओं में उलझा व्यक्ति शांत नहीं रह सकता। मन की शांति केवल वर्तमान में जीने से प्राप्त होती है।

 

यदि हम छोटे-छोटे प्रयासों से मन को साधना शुरू करें और उसमें निरंतरता बनाए रखें, तो हमारे जीवन में असंभव लगने वाले कार्य भी संभव हो सकते हैं। मुनिश्री ने यह भी कहा कि हमें घटनाओं को स्वीकार करते हुए उनका साक्षी बनना चाहिए और उनमें उलझने से बचना चाहिए। शरीर, स्वास, और मन पर नियंत्रण से ही सच्चे आत्म-संतोष और स्वस्थ आत्मा का निर्माण होता है।

 

भगवान महावीर की आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन करते हुए, मुनिश्री ने कहा कि उत्थान और पतन हमारे अपने कार्यों पर निर्भर होते हैं। साधना हमें ऊंचाइयों की ओर ले जाती है, जबकि अनावश्यक और गलत कर्म हमें पतन की ओर धकेलते हैं। हमें भगवान महावीर से प्रेरणा लेकर मोक्ष की आराधना करनी चाहिए।

 

मुनिश्री हेमंत कुमार जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए और कहा कि आज की दुनिया में व्यक्ति अपनी सुरक्षा को लेकर अत्यधिक चिंतित है। वह धन और बाहरी साधनों को ही सुरक्षा का सबसे बड़ा स्रोत मानता है, जबकि सच्ची सुरक्षा आत्मा में होती है। हमें आत्मा की साधना के प्रति जागरूक होना चाहिए और अपने भीतर अस्वस्थ विचारों को प्रवेश न देने का संकल्प करना चाहिए।

 

हेमंत कुमार जी ने बताया कि आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया के कारण व्यक्ति अपनी मानसिक और शारीरिक शांति खो रहा है। हमें अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में रखनी चाहिए और इसके लिए ध्यान का अभ्यास अति आवश्यक है। यदि व्यक्ति ध्यान का नियमित अभ्यास करे और उसमें पुरुषार्थ लगाए, तो वह स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकता है।

 

इस प्रकार, ध्यान दिवस पर व्यक्त किए गए इन विचारों ने साधकों को आत्मचिंतन, संयम और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

मुनिश्री ने बड़ी तपस्या करने वाले सभी तपस्वियों को सामूहिक प्रत्याख्यान करवाया।प्रत्याख्यान का नयनाभिराम दृश्य देखकर उपस्थित जन समुदाय ने भाव-विभोर होकर ॐ अर्हम की ध्वनि से तपस्या की अनुमोदना की।रविवार को  संवत्सरी पर्व पर दिन भर के कार्यक्रम और व्यवस्थाओं से संबंधित सूचनाओं की जानकारी मंत्री गजेंद्र खाँटेड ने दी .

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