डॉ. टैस्सीटोरी की स्मृति में दो दिवसीय ‘ओळू समारोह’ के दूसरे दिन राजस्थानी मान्यता के लिए संकल्प लिया

  • राजस्थानी भाषा को संवैधानिक-राजभाषा की मान्यता शीघ्र मिले-राजेश रंगा

 

बीकानेर, 23 नवम्बर। करोड़ों लोगों की अस्मिता एवं जन भावना के साथ सांस्कृतिक पहचान हमारी मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता एवं दूसरी राजभाषा का वाजिब हक शीघ्र मिले। इसी केन्द्रीय भाव के साथ प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा गत साढ़े चार दशकों से चली आ रही परंपरा के चलते महान् इटालियन विद्वान राजस्थानी पुरोधा डॉ. लुईजि पिओ टैस्सीटोरी की 105वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित होने वाले दो दिवसीय ‘‘ओळू समारोह’’ के दूसरे दिन आज प्रातः लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन में अनेकों राजस्थानी महिला एवं पुरूष एवं युवाओं ने मान्यता का संकल्प लिया।

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राजस्थानी के समर्थक एवं वरिष्ठ शिक्षाविद् राजेश रंगा ने कहा कि हमें हमारी मां, मातृभुमि एवं मातृभाषा के प्रति सजग रहकर मान-सम्मान करना चाहिए। हमारी मातृभाषा जिसका हजारों वर्षों पुराना साहित्यिक-सांस्कृतिक वैभवपूर्ण इतिहास है। साथ ही हमारी मातृभाषा राजस्थानी भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से सभी मानदण्डों पर खरी उतरती है, ऐसे में हमारी मातृभाषा को शीघ्र मान्यता केन्द्र व राज्य सरकार को देनी चाहिए। रंगा के इस कथन पर महिला पुरूष एवं युवा राजस्थानी समर्थकों ने समर्थन किया।

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युवा शिक्षाविद् भवानीसिंह ने कहा कि राजस्थानी भाषा भारतीय भाषाओं में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। ऐसी भाषा की अनदेखी करना दुखद पहलू है। अब सरकारों को भाषा के प्रति अपना संवेदनशील एवं सकारात्मक व्यवहार रखते हुए भाषा की मान्यता पर शीघ्र निर्णय लेना चाहिए।

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दो दिवसीय ‘ओळू समारोह’ के संयोजक राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने कहा कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलना एवं दुसरी राजभाषा बनना ही डॉ. टैस्सीटोरी को सच्ची श्रृद्धांजलि है। रंगा ने आगे कहा कि करीब आधी सदी से प्रज्ञालय एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ डॉ. टैस्सीटोरी के राजस्थानी के समग्र क्षेत्र में किए गए महत्वपूर्ण कार्यो का जन-जन तक ले जाने का सकारात्मक प्रयास कर रहा है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए युवा संस्कृतिकर्मी आशीष रंगा ने बताया कि आज प्रातः महिला पुरूष और युवा के साथ-साथ सैकड़ों बालक-बालिकाओं को राजस्थानी मान्यता एवं मातृभाषा को जीवन व्यवहार में अधिक से अधिक प्रयोग करने के साथ मातृभाषा राजस्थानी के प्रति अपने आत्मिक एवं भावनात्मक भाव के साथ मान्यता संकल्प दिलवाया गया।

इस अवसर पर संकल्प के प्रति अपना समर्थन जताने के साथ कई बालक-बालिकाओं ने मातृभाषा राजस्थानी से संबंधित छोटी-छोटी राजस्थानी भाषा की बाल कविता का वाचन भी किया।

राजस्थानी मान्यता संकल्प के इस आत्मिक एवं भावनात्मक आयोजन में अलका, बबीता, सीमा पालीवाल, मीनाक्षी व्यास, सीमा स्वामी, हेमलता व्यास प्रीति राजपुत, चन्द्रकला, किरण, गिरधर गोपाल जोशी प्रतापसिंह, मुकेश देराश्री, किशोर जोशी, उमेश सिंह, रमेश हर्ष, राजकुमार, श्रीकिशन, मुकेश स्वामी, आनन्द दम्माणी, मुकेश तंवर, अशोक शर्मा, सुनील व्यास, महावीर स्वामी, कार्तिक मोदी, तोलाराम सारण, हेमलता व्यास, सीमा पालीवाल, नवनीत व्यास सहित अनेक राजस्थानी भाषा मान्यता के समर्थकों ने कहा कि अब समय आ गया है कि राजस्थानी भाषा को उसका वाजिब हक शीघ्र मिले।

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